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राजस्थान में भाजपा 120 के रिकार्ड को करेगी पार
-मोदी फैक्टर, महंगाई व जातिगत समीकरण कांग्रेस की लुटिया डूबोएंगे
-आजाद एक दर्जन व राजपा आधा दर्जन सीटों पर कर सकते है जीत दर्ज
चुनाव विश्लेषक-महावीर सहारण
मो. 93548-62355
ऐतिहासिक 75.20 प्रतिशत मतदान के साथ ही राजस्थान प्रदेश की जनता ने संभवता कांग्रेस की सरकार को सताहीन करने का फैंसला कर दिया है। हालांकि शुरूआती दौर से ही भाजपा की बढ़त मानी जा रही थी, लेकिन चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस धीरे-धीरे कमजोर पड़ती गई। प्रदेश में नरेन्द्र मोदी का जादू जमकर चला तथा भारी मतदान का एक प्रमुख कारण मोदी के जादू को भी माना जा रहा है। दूसरा महंगाई ने भी कांग्रेस की राह रोकी तो बीकाना क्षेत्र में बीडी अग्रवाल की जमींदारा पार्टी व मीणा बाहुल्य, डांग क्षेत्र में डॉ. किरोड़ी लाल मीणा की राजपा ने कांग्रेस का परम्परागत मीणा वोट तोड़कर कांग्रेस को जबरदस्त नुक्सान किया है। अधिक मतदान का एक अन्य कारण ये भी रहा कि अधिकांश सीटों पर राजपा, बसपा, बागियों ने मुकाबला तिकोना बना दिया तथा जातिगत ध्रुवीकरण बड़े पैमाने पर हुआ। जाट बाहुल्य शेखावटी व मारवाड़ के इलाकों में जाट मतदाताओं ने मुख्यमंत्री गहलोत पर जमकर गुस्सा निकाला है। लगता है शायद जाट मतदाता चुनाव के दिन का इंतजार कर रहे थे। महत्वपूर्ण बात ये है कि राजस्थान में जाट मतदाता परम्परागत रूप से कांग्रेस के पक्ष में मतदान करते रहे हैं। राजस्थान की राजनीति के जानकार इस बात से गुरेज नहीं कर सकते कि प्रदेश में परम्परागत रूप से राजपूत मतदाता भाजपा के पक्ष में खड़ा होता रहा है। जबकि जाट व अनुसूचित जाति-जनजाति वर्ग कांग्रेस का पक्षधर रहा है। जब-जब जाट मतदाता कांग्रेस के विरोध में गया है कांग्रेस को सता खोनी पड़ी है। चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस के रणनीतिकार शायद परिस्थितियों को भाप गए थे इसलिए गुज्जर नेता किरोड़ी बैंसला व डेरा सच्चा सौदा सिरसा का समर्थन कांग्रेस ने जोड़तोड़ करके हासिल किया व अपनी स्थिति को मजबूत करने का प्रयास किया। लेकिन गुज्जर मतदाता भाजपा के पक्ष में शुरूआत में ही लामबंद हो चुके थे। इसलिए किरौड़ी बैंसला का चुनाव प्रचार के आखिरी दौर में कांग्रेस को समर्थन कोई चमत्कार करने में सफल नहीं हो पाया तथा गुज्जर मतदाता भाजपा के पाले में खड़े दिखाई दिए। इसी प्रकार बीकाना क्षेत्र में डेरा सच्चा सौदा सिरसा द्वारा आखिरी समय पर कांग्रेस के पक्ष में मतदान करने का फतवा भी कारगर साबित नहीं हो पाया। क्योंकि कांग्रेस हनुमनगढ़, गंगागनर जिलों में जमींदारा पार्टी द्वारा उनके वोट बैंक में प्रभावी सेंध लगा देने के कारण काफी ज्यादा पिछड़ चुकी थी। डॉ. किरोड़ी लाल मीणा द्वारा एक दर्जन से ज्यादा सामान्य सीटों पर मीणा (अनुसूचित जनजाति) प्रत्याशी उतारने का रणनीतिक फैसला उनकी पार्टी के लिए तो कारगर सिद्ध हुआ है। उन्हें वोट प्रतिशत बढ़ाने का अवसर इससे मिल गया लेकिन क्योंकि मीणा परम्परागत रूप से कांग्रेस का वोट बैंक रहा है। इसलिए जाहिर है कि डॉ. मीणा की यह रणनीति कांग्रेस पर उसी प्रकार भारी पड़ी जैसे मत्सयांचल के अलवर, भरतपुर व धौलपुर में बसपा ने कांग्रेस के अनुसूचित जाति के वोट बैंक में सेंध लगाकर भाजपा की जीत पिछली बार व अबकी बार तय कर दी। बागी फैक्टर ने भी कांग्रेस का भाजपा के मुकाबले ज्यादा नुक्सान किया है। कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष डॉ. चन्द्रभान (मंडावा), पूर्वमंत्री रामलाल जाट (आसींद), पूर्वमंत्री जकिया इनाम(टोंक), विधानसभा उपाध्यक्ष राम नारायण मीणा (देवली-उनीयारा), प्रतिभा सिंह (नवलगढ़), विधानसभा अध्यक्ष दीपेन्द्र सिंह शेखावत (श्री माधोपुर), जयदीप डूडी (भादरा), विनोद चौधरी (हनुमानगढ़), रामेश्वर डूडी (नौखा), खुशवीर सिंह (मारवाड़ जंक्शन), लीला मदेरना (ओसियां), अमरीदेवी (लूणी), कैलाश मीणा (मनोहर थाना), धीरज गुज्जर (जहाजपुर), गोपाल सिंह (भीम), गोबिंद सिंह डोटासरा (लक्ष्मणगढ़), मदन मेघवाल (पिलानी), जितेन्द्र सिंह (खेतड़ी), राजेन्द्र पारिक (सीकर), राजेन्द्र यादव (कोटपुतली), हजारी लाल नागर (दुदू), बृज किशोर शर्मा (हवा महल), विजेन्द्र सूपा (नगर), ब्रह्मदेव कुमावत (मसूदा), शोकत अली (नागौर), जाकिर हुसैन (मकराना) सहित दो दर्जन सीटों पर बागियों ने कांग्रेस के समीकरणों को बिगाड़ दिया है तथा उपरोक्त सीटों में से अधिकांश पर कांग्रेस प्रत्याशी चुनाव हार रहे हैं। आधा दर्जन के करीब ऐसी सीटें है जहां कांग्रेस के बागियों ने राजपा, सपा आदि की टिकटें प्राप्त करके कांग्रेस के प्रत्याशियों को कड़ी चुनौती दे रहे हैं। हालांकि बागी तो भाजपा में भी काफी हैं लेकिन भाजपा प्रत्याशी बागियों के चलते झूंझनू, फतेहपुर, नौखा, लूणकरणसर, मंडावा, आमेर, भरतपुर, करौली, मालपुरा, खींवसर, बाड़मेर, वल्भनगर, भीम, डग सीटों पर मुश्किलों का सामना कर रहे हैं। इनमें से बागियों ने कई सीटों पर तो भाजपा उम्मीदवारों की हार तय कर दी है।
इस चुनाव की सबसे महत्वपूर्ण बात यह रही कि 6 माह पूर्व गहलोत सरकार द्वारा शुरू की गई कल्याणकारी योजनाओं का कोई लाभ कांग्रेस को मिलता हुआ नजर नहीं आया। जातिगत समीकरण नतीजों को स्पष्ट रूप से प्रभावी करते हुए नजर आए। भाजपा के एक-दो दिगज्ज को छोड़कर अधिकांश जीत की ओर पहुंच रहे हैं, लेकिन कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष डॉ. चन्द्रभान से लेकर एक दर्जन वरिष्ठ नेता चुनावी हार की ओर बढ़ रहे हैं।
समूचे प्रदेश का ग्राऊंड लेवल पर चुनावी तस्वीर का अवलोकन किया गया तो एक महत्वपूर्ण परिस्थिति सामने उभरकर आई जो यह तय कर रही है कि भाजपा बड़ी बढ़त के साथ सत्ता संभालने जा रही है। विगत चुनाव में श्री गंगानगर(6-1), हनुमानगढ़(5-1), सीकर (8-1), झूंझनू (7-1), उदयपुर (8-2), चितौडग़ढ़ (5-0), टोंक (4-0), बाड़मेर (7-1), बारां (4-0), जालौर (5-1), बांसवाड़ा (5-0), डूंगरपुर (4-0), दौसा (5-0), सवाई माधोपुर (4-0), करौली (4-1) सहित 15 जिलों की 81 विधानसभा सीटों में भाजपा को केवल 9 सीटें ही मिल पाई थी। लेकिन अबकी बार समूचा चुनावी परिदृश्य बदला हुआ है तथा भिन्न-भिन्न कारणों के चलते भाजपा गंगानगर (4), हनुमानगढ़ (5), सीकर (5), झूंझनू (4), उदयपुर (5), चितौडग़ढ़ (3), टोंक (2), बाड़मेर (5), बारां (2), जालौर (3), बांसवाड़ा (3), डूंगरपुर (2), दौसा (3), सवाई माधोपुर (2), करौली (2) यानि 50 सीटों पर जीत दर्ज करने जा रही है। इन जिलों में कुछ कांटे के मुकाबले वाली सीटों की बढौतरी ही हो सकती है। इस प्रकार विगत चुनाव के मुकाबले कम से कम 41 सीटों की बढौतरी इन 15 जिलों में भाजपा को होने जा रही है। यह आंकलन चुनावी तस्वीर को स्पष्ट कर रहा है। अब हम देख लेते है कि बाकी प्रदेश में जहां भाजपा को 69 सीटें मिली थी क्या भाजपा वो सीटे बरकरार रख पा रही है। अगर भाजपा पिछली 69 सीटें बरकरार भी रख लेती है तो आंकड़ा 119 के पास पहुंचता है।
अब हम उन जिलों का आंकलन कर लेते हैं जहां भाजपा ने अच्छा प्रदर्शन किया था। जिला जयपुर (19-10), जोधपुर (10-6), नागौर (10-5), राजसमदं (4-3), चुरू (6-4), बुंदी (3-2), पाली (6-4), सिरोही (3-2), अलवर (11-7), भरतपुर (7-6), धौलपुर (4-3), बीकानेर (7-4) की 90 विधानसभा सीटों में भाजपा 56 जीतने में सफल रही थी। इस चुनाव में जिस प्रकार के हालात बने हैं उससे यह तो कत्तई नहीं लग रहा कि भाजपा 56 में से कोई सीट खोने जा रही है। विश्लेषण उपरांत जिला जयपुर में (19-14), जोधपुर (10-6), नागौर (10-6), राजसमदं (4-2), चुरू (6-5), बुंदी (3-2), पाली (6-4), सिरोही (3-2), अलवर (11-7), भरतपुर (7-5), धौलपुर (4-2), बीकानेर (7-4) यानि 90 में से 59 सीटों पर भाजपा की यकीनी जीत है। इस प्रकार भाजपा उन 12 जिलों में पूर्व की भांति उतनी ही मजबूत है। बाकी बची 29 सीटों में से भाजपा को 2008 के चुनाव में 13 सीटें मिली थी। यहां भी किसी भी सूत्र में पिछले आंकड़े से ये सीटें कम नहीं होने जा रही है। इस प्रकार अगर हम देखें तो भाजपा बड़ी जीत दर्ज करने के नजदीक पहुंचती प्रतीत हो रही है तथा किरोड़ी लाल मीणा की राजपा आधा दर्जन सीटों पर जीत दर्ज कर सकती है व एक दर्जन के करीब आजाद व अन्य छोटे दलों के उम्मीदवार विधानसभा में पहुंच रहे हैं। बसपा का आंकड़ा दो के आसपास ही ठहर रहा है लेकिन इतना तय है कि भाजपा इस चुनाव में अपने 2003 के आंकड़े यानि 120 सीट को यकीनी तौर पर पीछे छोड़ रही है।
इस चुनाव की सबसे महत्वपूर्ण बात यह रही कि 6 माह पूर्व गहलोत सरकार द्वारा शुरू की गई कल्याणकारी योजनाओं का कोई लाभ कांग्रेस को मिलता हुआ नजर नहीं आया। जातिगत समीकरण नतीजों को स्पष्ट रूप से प्रभावी करते हुए नजर आए। भाजपा के एक-दो दिगज्ज को छोड़कर अधिकांश जीत की ओर पहुंच रहे हैं, लेकिन कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष डॉ. चन्द्रभान से लेकर एक दर्जन वरिष्ठ नेता चुनावी हार की ओर बढ़ रहे हैं।
समूचे प्रदेश का ग्राऊंड लेवल पर चुनावी तस्वीर का अवलोकन किया गया तो एक महत्वपूर्ण परिस्थिति सामने उभरकर आई जो यह तय कर रही है कि भाजपा बड़ी बढ़त के साथ सत्ता संभालने जा रही है। विगत चुनाव में श्री गंगानगर(6-1), हनुमानगढ़(5-1), सीकर (8-1), झूंझनू (7-1), उदयपुर (8-2), चितौडग़ढ़ (5-0), टोंक (4-0), बाड़मेर (7-1), बारां (4-0), जालौर (5-1), बांसवाड़ा (5-0), डूंगरपुर (4-0), दौसा (5-0), सवाई माधोपुर (4-0), करौली (4-1) सहित 15 जिलों की 81 विधानसभा सीटों में भाजपा को केवल 9 सीटें ही मिल पाई थी। लेकिन अबकी बार समूचा चुनावी परिदृश्य बदला हुआ है तथा भिन्न-भिन्न कारणों के चलते भाजपा गंगानगर (4), हनुमानगढ़ (5), सीकर (5), झूंझनू (4), उदयपुर (5), चितौडग़ढ़ (3), टोंक (2), बाड़मेर (5), बारां (2), जालौर (3), बांसवाड़ा (3), डूंगरपुर (2), दौसा (3), सवाई माधोपुर (2), करौली (2) यानि 50 सीटों पर जीत दर्ज करने जा रही है। इन जिलों में कुछ कांटे के मुकाबले वाली सीटों की बढौतरी ही हो सकती है। इस प्रकार विगत चुनाव के मुकाबले कम से कम 41 सीटों की बढौतरी इन 15 जिलों में भाजपा को होने जा रही है। यह आंकलन चुनावी तस्वीर को स्पष्ट कर रहा है। अब हम देख लेते है कि बाकी प्रदेश में जहां भाजपा को 69 सीटें मिली थी क्या भाजपा वो सीटे बरकरार रख पा रही है। अगर भाजपा पिछली 69 सीटें बरकरार भी रख लेती है तो आंकड़ा 119 के पास पहुंचता है।
अब हम उन जिलों का आंकलन कर लेते हैं जहां भाजपा ने अच्छा प्रदर्शन किया था। जिला जयपुर (19-10), जोधपुर (10-6), नागौर (10-5), राजसमदं (4-3), चुरू (6-4), बुंदी (3-2), पाली (6-4), सिरोही (3-2), अलवर (11-7), भरतपुर (7-6), धौलपुर (4-3), बीकानेर (7-4) की 90 विधानसभा सीटों में भाजपा 56 जीतने में सफल रही थी। इस चुनाव में जिस प्रकार के हालात बने हैं उससे यह तो कत्तई नहीं लग रहा कि भाजपा 56 में से कोई सीट खोने जा रही है। विश्लेषण उपरांत जिला जयपुर में (19-14), जोधपुर (10-6), नागौर (10-6), राजसमदं (4-2), चुरू (6-5), बुंदी (3-2), पाली (6-4), सिरोही (3-2), अलवर (11-7), भरतपुर (7-5), धौलपुर (4-2), बीकानेर (7-4) यानि 90 में से 59 सीटों पर भाजपा की यकीनी जीत है। इस प्रकार भाजपा उन 12 जिलों में पूर्व की भांति उतनी ही मजबूत है। बाकी बची 29 सीटों में से भाजपा को 2008 के चुनाव में 13 सीटें मिली थी। यहां भी किसी भी सूत्र में पिछले आंकड़े से ये सीटें कम नहीं होने जा रही है। इस प्रकार अगर हम देखें तो भाजपा बड़ी जीत दर्ज करने के नजदीक पहुंचती प्रतीत हो रही है तथा किरोड़ी लाल मीणा की राजपा आधा दर्जन सीटों पर जीत दर्ज कर सकती है व एक दर्जन के करीब आजाद व अन्य छोटे दलों के उम्मीदवार विधानसभा में पहुंच रहे हैं। बसपा का आंकड़ा दो के आसपास ही ठहर रहा है लेकिन इतना तय है कि भाजपा इस चुनाव में अपने 2003 के आंकड़े यानि 120 सीट को यकीनी तौर पर पीछे छोड़ रही है।
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क्या डबवाली में BJP की इस गलती को नजर अंदाज किया जा सकता है,आखिर प्रशासन ने क्यों नहीं की कार्रवाई
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