सिंगापुर की ‘नूर’ पर बरसा ‘इश्क दा नूर’


www.dabwalinews.com। फिरे फसलां देणा पूछदी, गोरी जटट् नाल ब्याही लग्ग दी। यह पंजाबी गीत सिंगापुर की आतिक नूर विद्या यति पर सटीक बैठता है। एक भारतीय से हुए प्रेम को निभाने के लिए यह युवती नौकरी, परिवार को छोड़कर हरियाणा के एक गांव गोरीवाला में आकर बस गई है। मल्टीनेशनल कंपनी के एक मॉल में कार्य करने वाली नूर घर में चूल्हा-चौका के साथ पति का खेत में हाथ बंटाती है, यहां तक कि पशुओं को नहलाने के साथ उनकी देखभाल कर रही है। विदेशी युवती की दिनचर्या ग्रामीणों के लिए आकर्षण का केंद्र बनी हुई है।
विदेशी बहू अपने पति की पशुपालन के काम में सहायता करती हुई।
गांव गोरीवाला निवासी मनदीप ने पंजाब की एक आईटीआई से इलैक्ट्रीशियन का कोर्स करने के बाद वर्ष 2006 में सिंगापुर की राह पकड़ी थी। वहां एक कंपनी में उसे इलैक्ट्रीशियन सुपरवाइजर की नौकरी मिली। करीब दो साल एक मॉल में शॉपिंग करते समय उसकी मुलाकात मॉल कंट्रोल कर रही आतिक नूर विद्या यति से हुई। पंजाबी मुंडे ने फिर फ्रेंडशिप के लिए परपोज किया। दोनों एक-दूसरे को समझने लगे। करीब तीन साल तक चली फ्रेंडशिप के बाद नूर ने शादी का प्रस्ताव रखा। बिना मौका गंवाए 2011-12 में दोनों ने शादी कर ली। शादी करने के बाद अपने परिजनों को मनाने के लिए मनदीप भारत लौट आया। परिजनों को विश्वास में लेकर उसने अपनी नूर को यहां बुला लिया। अगस्त 2013 में गांव गोरीवाला आई नूर पर भारतीय रंग चढ़ चुका है। पेंट-शर्ट और स्कर्ट पहनने वाली गोरी पंजाबी सूट में नजर आती है। सिर पर चुनरी, मत्थे पर सिंदूर, चूड़ियां और पांवों में जूती पहने नूर गोरी से पंजाबी बहू के रूप में नजर आती है। अपने मुल्क में अंग्रेजी भाषा बोलने और समझने वाली लड़की हिंदी और पंजाबी भाषा भी समझने लगी है। सुबह उठकर अपनी सास जसवंत कौर और पति मनदीप को सत श्री अकाल कहती है। उनके साथ गुरुद्वारा जाती है। बाद में चूल्हा-चौका संभालती है। पशुपालन करने की जिम्मेदारी भी इस गोरी ने अपने हाथों ले रखी है।
मॉम, वट् इज दिस
जसवंत कौर के अनुसार करीब दो वर्ष पहले जब नूर गांव आई थी, तो वह उसे ग्वार के खेत में ले गई। फसलों के बारे में जानकारी न होने पर उससे पूछने लगी मॉम, वट् इज दिस। अंग्रेजी मेरी समझ से परे थी। मनदीप ने मुझे मतलब समझाया। बाद में जैसे मैं ग्वार की फली तोड़ रही थी, ठीक उसी तरह तोड़ने लगी। धीरे-धीरे उनकी विदेशी बहू सब काम सीख गई है। मैं आराम करती हूं, बहू काम करती है।
पेंट-शर्ट, स्कर्ट पहनने वाली युवती अब गोरीवाला की बहू
पंजाबी लिवास में, हाथों में खनक रही चूड़ियां
हर रोज जाती है गुरुद्वारा, पशुपालन खेती कार्यों में देती है सहयोग
भारतीय संस्कृति को समझते हुए नूर ने बिना दबाव के अपना पहनावा बदला। वर्ष 2014 में बेटे अरमान को जन्म दिया, जो अब एक साल का हो चुका है। पंजाबी बहू की तरह वह अपने दायित्व का निर्वाह कर रही है।
-मनदीप सिंह
मैं थोड़ी-थोड़ी पंजाबी बोलना सीख गई हूं। सत श्री अकाल कहना बेहद अच्छा लगता है। मेरा जी लग्ग गया। पंजाबी संस्कृति बहुत मुश्किल है, पर इसको समझने के बाद जीवन में उतारने का मजा ही कुछ और है।
-आतिक नूर विद्या यति

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