सरकारी न्याय :- पराली पर प्रतिबंध, पटाखों पर छूट
यह कहां का न्याय आप खुद ही फैसला करें बार-बार किसान हतैषी होने का होका देने वाली सरकार,
गत दिन सरकार ने एक नया फैसला जारी करते हुए धान की पराली जलाने पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया है। इसके साथ ही ऐसा करने वाले किसानों पर भारी भरकर जुर्माने का प्रावधान भी बनाया गया है। यह नियम तो पहले से लागू है मगर इस बार सरकार ने इस नियम को सख्ती से लागू करते हुए किसानों पर जबरदस्ती भारी जुर्माने के रूप में आर्थिक बोझ डालना भी शुरू कर दिया है। इस फैसले के बाद किसानों के सामने एक नई दूविधा खड़ी हो गई है। वह असमंजस की स्थिती में है कि आखिर वह करे तो क्या करे। वहीं दूसरी ओर पटाखे बनाने वाले व बेचने वाले व्यापारी वर्ग का पूर्ण सहयोग किया जा रहा है। पहले पटाखे बनाने वालों को बिना रोक टोक लाईसेंस दे दिया जाता है। उसके बाद स्वयं सरकार के आदेश पर प्रशासन पटाखें बेचने वालों के लिए इन्हें बेचने के लिए जगह निर्धारित करवाता है। बकायदा उनके लिए सुरक्षा प्रबंधों का इंतजाम किया जाता है, पुलिस कर्मचारियों के साथ-साथ फायेर ब्रिगेड की भी डयूटी लगाई जाती है।उपरोक्त दोनों बातों से स्पष्ट है कि सरकार की नजर में धान की पराली जलाने से जो प्रदूषण फैलता है वह पटाखों के प्रदूषण से कहीं अधिक मात्रा में व खतरनाक है। यह तो आप भी जानते हैं कि पटाखों का प्रदूषण यहां बेहद अधिक हानिकारक है वहीं यह बहुत बड़ी मात्रा में फिजूल खर्ची भी है। यह सिद्ध हो चुका है कि पटाखे बनाने के लिए खतरनाक रसायनों व ज्वलनशील पदार्थों का प्रयोग किया जा रहा है। ऐसे में सरकार का यह अनोख न्याय कहां तक ठीक है आप ही बताईऐ।
उधर पराली को जलाना किसान की मजबूरी है। वरना किसान कहां चाहता है कि वह पराली को आग लगाए। उसे तो बस इतना बता दिया जाए कि वह इस पराली का करे तो क्या करे ? आपमें बहुत से लोग कहेंगे कि इस पराली को इकट्ठा कर बेचा जा सकता है मगर वह यह नहीं जानते कि प्रत्येक किसान के लिए यह संभव नहीं। पहले तो उसे उस पराली को खेत से बाहर निकालने के लिए मजदूर नहीं मिलते ऊपर से इतनी अधिक मात्रा में पराली को रखने की जगह उसके पास नहीं है, ऐसा करने में यहां उसके समय की बर्बादी होगी वहीं आर्थिक बोझ भी बढ़ेगा। इसके बाद भी तय नहीं कि उसके द्वारा एकत्रित यह पराली बिकेगी या नहीं। धरतीपुत्र यहां पहले ही दो वर्ष की मंदी के बाद से कर्जे के बोझ तले हैं वहीं सरकार के इस फैसले के बाद से उसकी इस वर्ष की उम्मीद पर भी पानी फिरता हुआ नजर आ रहा है। उधर अगर वह इस पराली को खेत में जोतने की कोशिश करता तो वह भी असंभव है। कुछ किसानों ने ऐसा करना चाहा मगर 6 से 7 बार जुताई करने के बाद भी खेत पूरी तरह से तैयार नहीं हो पाया। एक नकारत्मकता यह भी है कि यह पराली जल्दी से मिट्टी में नहीं मिलती, जो दूसरी फसल की जड़ों को नुकसान भी पहुंचाती है। एक किसान का बेटा होने के नाते व सरकार के इस फैसले के बाद से कई किसानों का रिएेक्शन जानने पर पता चला कि सरकार किसानों के साथ नाइंसाफी कर रही है। वह दावा तो किसान हितैषी होने का करती है मगर सच्चाई कुछ और है। अगर सरकार सच में बढ़ते प्रदूषण के प्रति चिंतित है तो वह सर्वप्रथम न केवल पटाखे चलाने व बेचने पर प्रतिबंध लगाए ब्लकि इसके निर्माण पर भी पूर्ण प्रतिबंध लगाए। इन नियमों की अवेहलना करने वाले लोगों पर भारी भरकम जुर्माने के साथ सजा का भी प्रावधान बनाया जाए। यहां तक किसान की बात है तो सरकार ऐसा प्रबंध करे कि इस पराली व भूसे के रूप में जलने वाले इस सूखे चारे का बड़ा बाजार बना दिया जाए, तो यह समस्या अपने आप समाप्त हो जाएगी। किसान हमेशा देशहित में सोचता है मगर उसकी अावाज को समझा जाए।
अच्छा लगे तो ज्यादा से ज्यादा शेयर करें। आपका पेट भरने के लिए खून पसीना बहाने वाले धरतीपूत्र की आवाज सरकार तक पहुंचनी जरूरी है।
उधर पराली को जलाना किसान की मजबूरी है। वरना किसान कहां चाहता है कि वह पराली को आग लगाए। उसे तो बस इतना बता दिया जाए कि वह इस पराली का करे तो क्या करे ? आपमें बहुत से लोग कहेंगे कि इस पराली को इकट्ठा कर बेचा जा सकता है मगर वह यह नहीं जानते कि प्रत्येक किसान के लिए यह संभव नहीं। पहले तो उसे उस पराली को खेत से बाहर निकालने के लिए मजदूर नहीं मिलते ऊपर से इतनी अधिक मात्रा में पराली को रखने की जगह उसके पास नहीं है, ऐसा करने में यहां उसके समय की बर्बादी होगी वहीं आर्थिक बोझ भी बढ़ेगा। इसके बाद भी तय नहीं कि उसके द्वारा एकत्रित यह पराली बिकेगी या नहीं। धरतीपुत्र यहां पहले ही दो वर्ष की मंदी के बाद से कर्जे के बोझ तले हैं वहीं सरकार के इस फैसले के बाद से उसकी इस वर्ष की उम्मीद पर भी पानी फिरता हुआ नजर आ रहा है। उधर अगर वह इस पराली को खेत में जोतने की कोशिश करता तो वह भी असंभव है। कुछ किसानों ने ऐसा करना चाहा मगर 6 से 7 बार जुताई करने के बाद भी खेत पूरी तरह से तैयार नहीं हो पाया। एक नकारत्मकता यह भी है कि यह पराली जल्दी से मिट्टी में नहीं मिलती, जो दूसरी फसल की जड़ों को नुकसान भी पहुंचाती है। एक किसान का बेटा होने के नाते व सरकार के इस फैसले के बाद से कई किसानों का रिएेक्शन जानने पर पता चला कि सरकार किसानों के साथ नाइंसाफी कर रही है। वह दावा तो किसान हितैषी होने का करती है मगर सच्चाई कुछ और है। अगर सरकार सच में बढ़ते प्रदूषण के प्रति चिंतित है तो वह सर्वप्रथम न केवल पटाखे चलाने व बेचने पर प्रतिबंध लगाए ब्लकि इसके निर्माण पर भी पूर्ण प्रतिबंध लगाए। इन नियमों की अवेहलना करने वाले लोगों पर भारी भरकम जुर्माने के साथ सजा का भी प्रावधान बनाया जाए। यहां तक किसान की बात है तो सरकार ऐसा प्रबंध करे कि इस पराली व भूसे के रूप में जलने वाले इस सूखे चारे का बड़ा बाजार बना दिया जाए, तो यह समस्या अपने आप समाप्त हो जाएगी। किसान हमेशा देशहित में सोचता है मगर उसकी अावाज को समझा जाए।
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