तेजी से बढ़ रहा झोपड़पट्टी का रोग, सुध लेने वाला नहीं कोई

दो दशक से अधिक समय से सैंकड़ों परिवार जीवन बसर कर रहे,सुध लेने वाला नहीं कोई
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 किलियांवाली अनाज मंडी क्षेत्र, मालवा रोड सहित विभिन्न ,इलाकों में लगातार झोपड़पट्टी का विस्तार होता जा रहा है।
लगभग 400 से अधिक परिवार यहां झोपडिय़ों में आसरा लिए हुए हैं। इनमें मुख्य रूप से नाथ समुदाय के लोग निवास करते हैं जो अपना पुश्तैनी धंधा सांप पकड़ा, बीन बजाने को छोडक़र अन्य व्यवसाय को अपना चुके हैं। नाथ समुदाय के साथ-साथ कचरा बीनने वाले और कबाड़ का कार्य करने वाले भी अनेक परिवार यहा आश्रित हैं।
सुविधाएं के नाम इनके पास कुछ भी नहीं है। अनाज मंडी यानि मार्केट कमेटी द्वारा अलाट की दुकानों के आस-पास लगे नलों से पानी लाकर अपनी पूर्ति करते हैं तो वहीं बरसात व अन्य प्राकृतिक प्रकोप का सामना भी करने को मजबूर हैं। इन झोपडिय़ों में रहने वाले सुनील कुमार, लड्डू, बब्बू, सुनीता, रमेश, विजयंती देवी,रेशमा, सीमा, सुशीला, सुदेश, रेखा, सीमा आदि बताती हैं कि वे पिछले 20 वर्षों से भी अधिक समय से यहां की
झोपड़पट्टी में रह रहे हैं और उनके पुरूष सदस्य अब गांव-गांव जाकर खेस-चद्दर आदि कपड़ों की फेरी लगाकर दो जून की रोटी का इंतजाम करते हैं। सरकारी सुविधाओं के बारे में उन्होंने बताया कि पंजाब सरकार द्वारा उनके राशन कार्ड, आधार कार्ड व यहां तक पहचानपत्र बनाकर दिए हुए हैं। चुनाव के समय विभिन्न दलों के नेता यहां चुनावी मौसम में वोट की गुहार लगाने के लिए आते हैं और बड़े-बड़े दावे कर वोट हथिया लेने के बाद इधर का रूख तक नहीं करते। हर बार नेताओं द्वारा उन्हें स्थाई ठिकाना बनाने के लिए भूमि देने का वायदा किया जाता है लेकिन चुनाव संपन्न होने के बाद उनकी आवासीय योजना की तरफ कोई ध्यान देने नहीं आता। उक्त लोगों ने बताया कि अधिकतर बच्चे स्कूल नहीं जाते बहुत कम बच्चे ही सरकारी स्कूल में जाते हैं लेकिन बाकी बच्चे दिन भर मेहनत मजदूरी करने में ही जुटे रहते हैं। पंजाब में सरकार चाहे अकाली-भाजपा की रही हो या कांग्रेस की किसी हुक्मरान ने उनकी मूलभूत सुविधाओं की ओर कभी ध्यान नहीं दिया।
सब वोट की खातिर हो रहा है
चुनाव से पूर्व भारी तादाद में मतदाता पहचान पत्र बनाए जाते हैं ताकि वोट बंैक में को पक्का किया जा सके। इसके लिए प्रत्येक राजनीतिक दल के नेता लोभवश इन झोपड़पट्टियों को बढ़ावा देते हैं। जैसे-जैसे समय बीतता है सरकार व संबंधित विभाग के लिए यह झोपडपट्टियां सिरदर्द बन जाती हैं। यहां रहने वाले लोग धीरे-धीरे सरकार से स्थाई आवास के लिए भूमि मांगने लगते हैं। सरकार के पास इन्हें बसाने के लिए कोई विकल्प नहीं होता। ऐसे में इन लोगों को धोखे में रखकर हर बार वोट हथिया लिया जाता है।

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