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जींद में बीजेपी ने मारी बाजी , जाट लैंड में बनाया रिकॉर्ड
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हरियाणा के जींद में अब तक बीजेपी का कोई प्रत्याशी चुनाव नहीं जीता था. लेकिन सीएम मनोहरलाल खट्टर और प्रदेश अध्यक्ष सुभाष बराला की रणनीति काम आई. जाटलैंड में पार्टी ने यह चुनाव जीतकर पुराना रिकॉर्ड तोड़ दिया है. मनोहरलाल खट्टर सरकार में यह पहला उपचुनाव था. वो भी लोकसभा चुनाव से ठीक पहले. इसलिए पार्टी ने इसे नाक का सवाल बनाया हुआ था. जब पार्टी राजस्थान, एमपी और छत्तीसगढ़ में हार का सामना कर रही थी तब भी हरियाणा में बीजेपी ने पांच नगर निगमों का चुनाव जीत लिया था.
यहां जाटों के बाद सबसे अधिक पंजाबी वोटर बताए जाते हैं इसलिए सत्तारूढ़ भाजपा ने पंजाबी (गैर जाट) कार्ड खेला था. पार्टी ने यहां इनेलो के विधायक रहे डॉ. हरीचंद मिड्ढा के बेटे कृष्ण मिड्ढा को टिकट दिया था. इसलिए उसे सहानुभूति वोट भी मिला. हरीचंद मिड्ढा की मौत के बाद यह सीट खाली हुई थी. वह यहां पर दो बार से विधायक थे. बीजेपी प्रवक्ता राजीव जेटली ने इस जीत पर जींद की जनता का धन्यवाद करते हुए कहा है कि हमारी पार्टी सबको साथ लेकर चलती है इसलिए सबने बीजेपी का साथ दिया.
जाटों के बाद यहां सबसे अधिक संख्या पंजाबी और वैश्य समाज की है. यहां पर करीब 1.70 लाख वोटर हैं जिसमें से 55 हजार जाट हैं. ऐसे में भाजपा को छोड़कर अन्य तीन प्रमुख पार्टियों ने जाटों पर ही दांव लगाना उचित समझा था. इसलिए पंजाबी उम्मीदवार उतारने वाली बीजेपी की रणनीति कामयाब रही. क्योंकि जाट वोट बंट गए.
लोकनीति-सीएसडीएस (सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसायटी) के एक सर्वे में जाट बीजेपी से नाराज बताए गए थे. ऐसे में जाट बहुल सीट पर जाटों का वोट लेकर कमल खिलाने की सबसे बड़ी चुनौती बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष सुभाष बराला की थी. इसलिए उन्होंने खापों से संपर्क कर काफी हद तक जाटों को भी बीजेपी की तरफ करने की कोशिश की. उनकी जिम्मेदारी इसलिए भी सबसे बड़ी थी क्योंकि वे प्रदेश अध्यक्ष हैं, जाट हैं और पार्टी के कई बड़े नेता दबी जुबान से गैरजाट की राजनीति करते नजर आते हैं. मनोहरलाल खट्टर और सुभाष बराला की जोड़ी ने पांच के पांच नगर निगमों का चुनाव जीतकर पहले ही बढ़त बनाई हुई थी.
जाट बहुल इस सीट पर 1972 के बाद कोई जाट विधायक नहीं बना था. इस बार भी यह रिकॉर्ड कायम है. तीन-तीन जाट कंडीडेट होने से जाट वोटबैंक बंट गया और इसका सीधा फायदा बीजेपी को मिला. इस सीट पर कभी भाजपा का खाता भी नहीं खुला था. बीजेपी ने यह रिकॉर्ड तोड़ते हुए पहली बार जाटलैंड की इस सीट पर अपना खाता खोलकर इतिहास रच दिया है.हरियाणा के वरिष्ठ पत्रकार नवीन धमीजा का कहना है कि जींद का परिणाम न सिर्फ हरियाणा की भविष्य की राजनीति तय करेगा बल्कि इससे प्रदेश में लोकसभा चुनाव को लेकर भी मतदाताओं के मूड का पता चलेगा. उम्मीद है कि बीजेपी अब लोकसभा चुनाव के साथ ही विधानसभा चुनाव भी करवा दे. क्योंकि विधानसभा चुनाव में सात-आठ माह का ही वक्त बचा हुआ है. इस जीत से बीजेपी का मनोबल बढ़ा हुआ है.
उपचुनाव के लिए सोमवार को वोट डाले गए थे. 1.72 लाख से अधिक रजिस्टर्ड वोटरों में से करीब 76 फीसदी ने मतदान करके 21 प्रत्याशियों के सियासी भाग्य का फैसला ईवीएम में बंद कर दिया था. धमीजा के मुताबिक बीजेपी ने कांग्रेस के बड़े नेता रणदीप सुरजेवाला को हरा कर कांग्रेस का मनोबल तोड़ने की कोशिश की है. रणदीप कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता और मीडिया प्रभारी भी हैं इसलिए उनकी ये हार उनके कद के मुताबिक काफी निराशाजनक है.सुरजेवाला को हरियाणा कांग्रेस में मौजूद गुटबाजी का सीधा-सीधा नुकसान उठाना पड़ा है. हरियाणा कांग्रेस में फिलहाल पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डॉ. अशोक तंवर, रणदीप सिंह सुरजेवाला, किरण चौधरी और कुलदीप बिश्नोई के अलग-अलग गुट हैं. बीजेपी इस गुटबाजी का फायदा उठाने में कामयाब रही.
सोर्स
न्यूज़ 18 नेटवर्क
यहां जाटों के बाद सबसे अधिक पंजाबी वोटर बताए जाते हैं इसलिए सत्तारूढ़ भाजपा ने पंजाबी (गैर जाट) कार्ड खेला था. पार्टी ने यहां इनेलो के विधायक रहे डॉ. हरीचंद मिड्ढा के बेटे कृष्ण मिड्ढा को टिकट दिया था. इसलिए उसे सहानुभूति वोट भी मिला. हरीचंद मिड्ढा की मौत के बाद यह सीट खाली हुई थी. वह यहां पर दो बार से विधायक थे. बीजेपी प्रवक्ता राजीव जेटली ने इस जीत पर जींद की जनता का धन्यवाद करते हुए कहा है कि हमारी पार्टी सबको साथ लेकर चलती है इसलिए सबने बीजेपी का साथ दिया.
जाटों के बाद यहां सबसे अधिक संख्या पंजाबी और वैश्य समाज की है. यहां पर करीब 1.70 लाख वोटर हैं जिसमें से 55 हजार जाट हैं. ऐसे में भाजपा को छोड़कर अन्य तीन प्रमुख पार्टियों ने जाटों पर ही दांव लगाना उचित समझा था. इसलिए पंजाबी उम्मीदवार उतारने वाली बीजेपी की रणनीति कामयाब रही. क्योंकि जाट वोट बंट गए.
लोकनीति-सीएसडीएस (सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसायटी) के एक सर्वे में जाट बीजेपी से नाराज बताए गए थे. ऐसे में जाट बहुल सीट पर जाटों का वोट लेकर कमल खिलाने की सबसे बड़ी चुनौती बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष सुभाष बराला की थी. इसलिए उन्होंने खापों से संपर्क कर काफी हद तक जाटों को भी बीजेपी की तरफ करने की कोशिश की. उनकी जिम्मेदारी इसलिए भी सबसे बड़ी थी क्योंकि वे प्रदेश अध्यक्ष हैं, जाट हैं और पार्टी के कई बड़े नेता दबी जुबान से गैरजाट की राजनीति करते नजर आते हैं. मनोहरलाल खट्टर और सुभाष बराला की जोड़ी ने पांच के पांच नगर निगमों का चुनाव जीतकर पहले ही बढ़त बनाई हुई थी.
जाट बहुल इस सीट पर 1972 के बाद कोई जाट विधायक नहीं बना था. इस बार भी यह रिकॉर्ड कायम है. तीन-तीन जाट कंडीडेट होने से जाट वोटबैंक बंट गया और इसका सीधा फायदा बीजेपी को मिला. इस सीट पर कभी भाजपा का खाता भी नहीं खुला था. बीजेपी ने यह रिकॉर्ड तोड़ते हुए पहली बार जाटलैंड की इस सीट पर अपना खाता खोलकर इतिहास रच दिया है.हरियाणा के वरिष्ठ पत्रकार नवीन धमीजा का कहना है कि जींद का परिणाम न सिर्फ हरियाणा की भविष्य की राजनीति तय करेगा बल्कि इससे प्रदेश में लोकसभा चुनाव को लेकर भी मतदाताओं के मूड का पता चलेगा. उम्मीद है कि बीजेपी अब लोकसभा चुनाव के साथ ही विधानसभा चुनाव भी करवा दे. क्योंकि विधानसभा चुनाव में सात-आठ माह का ही वक्त बचा हुआ है. इस जीत से बीजेपी का मनोबल बढ़ा हुआ है.
उपचुनाव के लिए सोमवार को वोट डाले गए थे. 1.72 लाख से अधिक रजिस्टर्ड वोटरों में से करीब 76 फीसदी ने मतदान करके 21 प्रत्याशियों के सियासी भाग्य का फैसला ईवीएम में बंद कर दिया था. धमीजा के मुताबिक बीजेपी ने कांग्रेस के बड़े नेता रणदीप सुरजेवाला को हरा कर कांग्रेस का मनोबल तोड़ने की कोशिश की है. रणदीप कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता और मीडिया प्रभारी भी हैं इसलिए उनकी ये हार उनके कद के मुताबिक काफी निराशाजनक है.सुरजेवाला को हरियाणा कांग्रेस में मौजूद गुटबाजी का सीधा-सीधा नुकसान उठाना पड़ा है. हरियाणा कांग्रेस में फिलहाल पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डॉ. अशोक तंवर, रणदीप सिंह सुरजेवाला, किरण चौधरी और कुलदीप बिश्नोई के अलग-अलग गुट हैं. बीजेपी इस गुटबाजी का फायदा उठाने में कामयाब रही.
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10:38:00 PM
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क्या डबवाली में BJP की इस गलती को नजर अंदाज किया जा सकता है,आखिर प्रशासन ने क्यों नहीं की कार्रवाई
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