इंकलाब का नारा लिए विदा लेने की ठानी थी लटक गए फांसी पर किंतु मुख से उफ्फ तक ना निकली थी
डबवाली न्यूज़
गोल्डन एरा मिलेनियम स्कूल डबवाली NH-9 मलोट रोड पर स्थित मे शनिवार को भगत सिंह,सुखदेव व राजगुरु के शहीदी दिवस के मौके पर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की गई स्कूल अध्यक्ष डॉ दीप्ति शर्मा ने शहीदी दिवस के बारे में बताते हुए कहा कि 23 मार्च का दिन देश के लिए लड़ते हुए अपने प्राणों को हंसते-हंसते न्यौछावर करने वाले तीन वीर सपूतों का शहीद दिवस है
उन्होंने कहा कि यह दिवस न केवल देश के प्रति सम्मान और हिंदुस्तानी होने व गौरव का अनुभव कराता है बल्कि वीर सपूतों के बलिदान को भीगे मन से श्रद्धांजलि देता है उन्होंने बताया कि उन अमर क्रांतिकारियों के बारे में आम मनुष्य की वैचारिक टिप्पणी का कोई अर्थ नहीं है उनके उज्जवल चरित्रों को बस याद किया जा सकता है कि ऐसे मानव भी इस दुनिया में हुए हैं जिनके आचरण किंवदंति है उन्होंने बताया कि भगत सिंह ने अपने अति संक्षिप्त जीवन में वैचारिक क्रांति की जो मशाल जलाई, उनके बाद अब किसी के लिए संभव न होगी उन्होंने कहा कि भगत सिंह चाहते थे कि इनमें कोई खून खराबा न हो तथा अंग्रेजों तक उनकी आवाज पहुंचे निर्धारित योजना के अनुसार भगत सिंह तथा बुटकेश्वर दत्त ने 8 अप्रैल 1929 को केंद्रीय असेंबली में एक खाली स्थान पर बम फैंका था इसके बाद उन्होंने स्वयं गिरफ्तारी देकर अपना संदेश दुनिया के सामने रखा उनकी गिरफ्तारी के बाद उन पर एक ब्रिटिश पुलिस अधिकारी जेपी सांडर्स की हत्या में भी शामिल होने के कारण देशद्रोह और हत्या का मुकदमा चला उन्होंने आगे बताया कि बम फेंकने के बाद भगत सिंह द्वारा फेंके गए पन्नों में यह लिखा था आदमी को मारा जा सकता है उसके विचार को नहीं बड़े साम्राज्य का पतन हो जाता है लेकिन विचार हमेशा जीवित रहते हैं और बहरे हो चुके लोगों को सुनाने के लिए ऊंची आवाज जरूरी है आगे उन्होंने बताया कि यह मुकदमा भारतीय स्वतंत्रता की इतिहास में लाहौर षड्यंत्र के नाम से जाना जाता है करीब 2 साल जेल प्रवास के दौरान भी भगत सिंह क्रांतिकारी गतिविधियों से भी जुड़े रहे और लेखन में अध्ययन भी जारी रखा 23 मार्च 1931 की रात भगत सिंह सुखदेव और राजगुरु की देशभक्ति को अपराध की संज्ञा देकर फांसी पर लटका दिया गया मृत्युदंड के लिए 24 मार्च की सुबह तय की गई थी लेकिन किसी बड़े जनाक्रोश की आशंका से डरी हुई अंग्रेज सरकार ने 23 मार्च की रात्रि को ही इन क्रांति वीरों की जीवन लीला समाप्त कर दी रात के अंधेरे में ही सतलुज के किनारे उनका अंतिम संस्कार भी कर दिया गया लाहौर षड्यंत्र के मुकदमे में भगत सिंह को फांसी की सजा दी गई थी तथा केवल 24 वर्ष की आयु में ही 23 मार्च 1931 की रात में उन्होंने हंसते-हंसते "इंकलाब जिंदाबाद" के नारे लगाते हुए फांसी के फंदे को चूम लिया अंत में डॉक्टर दीप्ति शर्मा जी ने नम आंखों से इन शहीदों की श्रद्धांजलि को याद करते हुए कहा
इंकलाब का नारा लिए
विदा लेने की ठानी थी
लटक गए फांसी पर
किंतु मुख से उफ्फ तक ना निकली थी
देश भक्ति को देख तुम्हारी
सबने अश्रुधारा बहाया था
हंसते हंसते देश की खातिर
फांसी को गले लगाया था
इंकलाब का नारा लिए
विदा लेने की ठानी थी
लटक गए फांसी पर
किंतु मुख से उफ्फ तक ना निकली थी
देश भक्ति को देख तुम्हारी
सबने अश्रुधारा बहाया था
हंसते हंसते देश की खातिर
फांसी को गले लगाया था
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