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सुनो जी ,स्कूलवालों ने डेयरी में लिखकर भेजा है ,इस साल से 'हेयर कटिंग 'भी स्कूल की बताई हुई दुकान पर ही हुआ करेगी
निजी स्कूल संचालकों की मनमानी शुरू
डबवाली न्यूज़
नया शैक्षणिक सत्र शुरू होते ही निजी स्कूलों की मनमानी भी शुरू हो गई है। शहर के निजी स्कूल संचालकों ने एडमिशन के साथ-साथ बुल्डिंग फंड, स्कूल वैन फेयर भी बढ़ा दिए गए हैं। वर्दी, किताबों-कॉपियों के नाम पर भी अभिभावकों से कई जगह वसूली शुरू हो गई है। निजी स्कूलों की फीस बुक में नए-नए कॉलम बनाकर मेंटिनेस के नाम पर भी अभिभावकों से वसूली की जा रही है। हालांकि मार्च-अप्रैल में फीस वसूली का सिलसिला भी चलता रहेगा। शिक्षा विभाग व स्थानीय प्रशासन के तमाम दावों के बावजूद निजी स्कूलों की मनमानी थमने का नाम नहीं ले रही है। हर साल की तरह इस बार भी अभिभावक निजी स्कूलों की मनमानी का शिकार हो रहे हैं।
स्कूल वर्दी और किताबों के नाम पर हो रही लूट :
स्कूल वर्दी में लगने वाला स्कूल के नाम का बैच, बैल्ट व टाई आदि के लिए स्कूलों द्वारा दुकानें निर्धारित की गई हैं, जिससे अभिभावकों को यह अतिरिक्त पैसा देने के लिए बाध्य होना पड़ रहा है। कमोवेश स्थिति वर्दी की भी ऐसी ही है, जिसमें अभिभावकों से अतिरिक्त वसूली की जा रही है। स्कूूूल वर्दी लगभग 1000-1200 रूपये में मिल रही है जबकि मार्किट में इसकी कीमत 800 रुपये है। वर्दी में स्कूल का लोगो होने के कारण अभिभावकों को मजबूरी में चिन्हित दुकान से ही खरीदनी पड़ती है। इसी प्रकार किताबें भी या तो स्कूल कैंपस में मिलती हैं या इन्हींदुकानों पर ही मिलेंगी।
हर साल बढ़ती है 5 से 10 फीसदी फीस :
निजी स्कूल हर साल 5 से 10 फीसदी फीस हर साल बढ़ा देते हैं। ऐसे में अभिभावक भी परेशान हैं। बच्चों के भविष्य की ङ्क्षचता होने के चलते वे बिना विरोध किए स्कूल संचालकों की इस मनमानी का शिकार हो रहे हैं।
यदि हम स्थानीय कुछ निजी स्कूलों की बात करें तो इन्होंने लूटने के अनेक तरीके अपनाएं हुए हैं। ये अपने स्टॉफ को एक सैशन में ही या तो हटा देते या उसे इतना मजबूर कर देते हैं कि वह टीचर अपने आप ही स्कूल कैंपस छोडक़र चला जाता है और उसकी सिक्योरिटी के तौर पर रखी गई प्रथम माह की सैलरी स्कूल संचालक हड़प लेते हैं। इतना ही नहीं स्कूल वैन पर सहायक भी नियुक्त नहीं करते जिससे जहां स्टूडेंट्स से ये काम करवाया जाता है, वहीं ऐसे में स्कूल वैन से गिर कर कई बच्चे गिर कर चोटिल हो चुके हैं।
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क्या? निजी स्कूल करेंगे अभिभावकों पर रहम
हर वर्ष शैक्षणिक सत्र शुरू होते ही प्राईवेट स्कूलों की लूट भी शुरू हो जाती है। प्राईवेट स्कूलों के संचालक अभिभावकों को लूटने का ऐसा कोई भी रास्ता नहीं छोड़ते, फिर वह चाहे स्कूल की ऊंची फीस हो, एडमीशन हो, स्कूल यूनीफार्म हो या फिर किताबें। देखा गया है कि लगभग सभी प्राईवेट स्कूल संचालक निजी पब्लिशर्ज की पुस्तकें लगवाते हैं और मोटा कमीशन लेते हैं।
डबवाली के कुछ स्कूलों ने तो सारी हदें ही पार कर दी है। इन्होंने अपने स्कूल के बाहर ही तीन-तीन बुक सैलर की दुकानें खुलवा दी हैं और एक यूनीफार्म की शॉप भी। यहीं से किताबें व यूनीफार्म खरीदी जा सकती है और कहीं से नहीं। अब जिन अभिभावकों के बच्चे उक्त स्कूल में पढ़ते हैं उन्हें एलकेजी व यूकेजी के लिए भी 1896 व 1985 रूपयों का सैट खरीदना पड़ रहा है। इस प्रकार स्कूल संचालकों द्वारा अभिभावकों को निचोड़ा जा रहा है। उल्लेखनीय है कि इससे पहले टाई, बेल्ट, शूज, यूनीफार्म का ही खेल खेला जाता रहा है लेकिन अब प्राईवेट स्कूल संचालकों द्वारा किसी एक निजी पब्लिशर्ज की पुस्तकें लगाई जा रही हैं। जोकि ओपन मार्किट में उपलब्ध ही नहीं हैं। उक्त अस्थायी दुकानें खुलवाकर बुक सैलर के साथ स्कूल संचालक चांदी कूटने में लगे हैं। बता दें कि प्राईवेट स्कूल संचालकों को नियमानुसार एनसीईआरटी की पुस्तकें ही पढ़ाई जानी चाहिए, लेकिन प्रत्येक प्राईवेट स्कूल द्वारा निजी पब्लिशर्ज की पुस्तकें लगाई गई हैं। क्योंकि एनसीईआरटी की पुस्तकें बिकने पर स्कूल संचालकों को कोई कमीशन नहीं मिलता। इसलिए प्राईवेट पब्लिशर्ज की पुस्तकें थोपी जाती हैं। ऐसे में हर स्कूल के हर कक्षा के बच्चे के बैग मेें यही किताबें मिलती हैं।
डबवाली न्यूज़
नया शैक्षणिक सत्र शुरू होते ही निजी स्कूलों की मनमानी भी शुरू हो गई है। शहर के निजी स्कूल संचालकों ने एडमिशन के साथ-साथ बुल्डिंग फंड, स्कूल वैन फेयर भी बढ़ा दिए गए हैं। वर्दी, किताबों-कॉपियों के नाम पर भी अभिभावकों से कई जगह वसूली शुरू हो गई है। निजी स्कूलों की फीस बुक में नए-नए कॉलम बनाकर मेंटिनेस के नाम पर भी अभिभावकों से वसूली की जा रही है। हालांकि मार्च-अप्रैल में फीस वसूली का सिलसिला भी चलता रहेगा। शिक्षा विभाग व स्थानीय प्रशासन के तमाम दावों के बावजूद निजी स्कूलों की मनमानी थमने का नाम नहीं ले रही है। हर साल की तरह इस बार भी अभिभावक निजी स्कूलों की मनमानी का शिकार हो रहे हैं।
स्कूल वर्दी और किताबों के नाम पर हो रही लूट :
स्कूल वर्दी में लगने वाला स्कूल के नाम का बैच, बैल्ट व टाई आदि के लिए स्कूलों द्वारा दुकानें निर्धारित की गई हैं, जिससे अभिभावकों को यह अतिरिक्त पैसा देने के लिए बाध्य होना पड़ रहा है। कमोवेश स्थिति वर्दी की भी ऐसी ही है, जिसमें अभिभावकों से अतिरिक्त वसूली की जा रही है। स्कूूूल वर्दी लगभग 1000-1200 रूपये में मिल रही है जबकि मार्किट में इसकी कीमत 800 रुपये है। वर्दी में स्कूल का लोगो होने के कारण अभिभावकों को मजबूरी में चिन्हित दुकान से ही खरीदनी पड़ती है। इसी प्रकार किताबें भी या तो स्कूल कैंपस में मिलती हैं या इन्हींदुकानों पर ही मिलेंगी।
हर साल बढ़ती है 5 से 10 फीसदी फीस :
निजी स्कूल हर साल 5 से 10 फीसदी फीस हर साल बढ़ा देते हैं। ऐसे में अभिभावक भी परेशान हैं। बच्चों के भविष्य की ङ्क्षचता होने के चलते वे बिना विरोध किए स्कूल संचालकों की इस मनमानी का शिकार हो रहे हैं।
यदि हम स्थानीय कुछ निजी स्कूलों की बात करें तो इन्होंने लूटने के अनेक तरीके अपनाएं हुए हैं। ये अपने स्टॉफ को एक सैशन में ही या तो हटा देते या उसे इतना मजबूर कर देते हैं कि वह टीचर अपने आप ही स्कूल कैंपस छोडक़र चला जाता है और उसकी सिक्योरिटी के तौर पर रखी गई प्रथम माह की सैलरी स्कूल संचालक हड़प लेते हैं। इतना ही नहीं स्कूल वैन पर सहायक भी नियुक्त नहीं करते जिससे जहां स्टूडेंट्स से ये काम करवाया जाता है, वहीं ऐसे में स्कूल वैन से गिर कर कई बच्चे गिर कर चोटिल हो चुके हैं।
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क्या? निजी स्कूल करेंगे अभिभावकों पर रहम
हर वर्ष शैक्षणिक सत्र शुरू होते ही प्राईवेट स्कूलों की लूट भी शुरू हो जाती है। प्राईवेट स्कूलों के संचालक अभिभावकों को लूटने का ऐसा कोई भी रास्ता नहीं छोड़ते, फिर वह चाहे स्कूल की ऊंची फीस हो, एडमीशन हो, स्कूल यूनीफार्म हो या फिर किताबें। देखा गया है कि लगभग सभी प्राईवेट स्कूल संचालक निजी पब्लिशर्ज की पुस्तकें लगवाते हैं और मोटा कमीशन लेते हैं।
डबवाली के कुछ स्कूलों ने तो सारी हदें ही पार कर दी है। इन्होंने अपने स्कूल के बाहर ही तीन-तीन बुक सैलर की दुकानें खुलवा दी हैं और एक यूनीफार्म की शॉप भी। यहीं से किताबें व यूनीफार्म खरीदी जा सकती है और कहीं से नहीं। अब जिन अभिभावकों के बच्चे उक्त स्कूल में पढ़ते हैं उन्हें एलकेजी व यूकेजी के लिए भी 1896 व 1985 रूपयों का सैट खरीदना पड़ रहा है। इस प्रकार स्कूल संचालकों द्वारा अभिभावकों को निचोड़ा जा रहा है। उल्लेखनीय है कि इससे पहले टाई, बेल्ट, शूज, यूनीफार्म का ही खेल खेला जाता रहा है लेकिन अब प्राईवेट स्कूल संचालकों द्वारा किसी एक निजी पब्लिशर्ज की पुस्तकें लगाई जा रही हैं। जोकि ओपन मार्किट में उपलब्ध ही नहीं हैं। उक्त अस्थायी दुकानें खुलवाकर बुक सैलर के साथ स्कूल संचालक चांदी कूटने में लगे हैं। बता दें कि प्राईवेट स्कूल संचालकों को नियमानुसार एनसीईआरटी की पुस्तकें ही पढ़ाई जानी चाहिए, लेकिन प्रत्येक प्राईवेट स्कूल द्वारा निजी पब्लिशर्ज की पुस्तकें लगाई गई हैं। क्योंकि एनसीईआरटी की पुस्तकें बिकने पर स्कूल संचालकों को कोई कमीशन नहीं मिलता। इसलिए प्राईवेट पब्लिशर्ज की पुस्तकें थोपी जाती हैं। ऐसे में हर स्कूल के हर कक्षा के बच्चे के बैग मेें यही किताबें मिलती हैं।
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Reviewed by DabwaliNews
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5:55:00 PM
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क्या डबवाली में BJP की इस गलती को नजर अंदाज किया जा सकता है,आखिर प्रशासन ने क्यों नहीं की कार्रवाई
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