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जिला सिरसा में कोरोना मामलों को लेकर चर्चाओं का दौर जारी = ‘कुछ तो गड़बड़ है!’ मरीज का ऑडियो हुआ वायरल



डबवाली न्यूज़ डेस्क (इंदरजीत अधिकारी द्वारा विशेष कवर स्टोरी)
सिरसा में कोरोना संक्रमितों को लेकर जो स्थिति बनी हुई है, उससे अनेक चर्चाएं जन्म ले रही है। एक व्यक्ति को कोरोना पॉजिटिव बताया जाता है और ठीक दूसरे दिन उसकी रिपोर्ट नेगेटिव आ जाती है? उस व्यक्ति को बाइज्जत घर भेज दिया जाता है लेकिन पूरी कालोनी 28 दिन के लिए कंटेनमेंट जोन में तब्दील कर दी जाती है। लोग अपने ही घरों से बाहर नहीं निकल सकते। हाल ही में 22 लोगों की रिपोर्ट नेगेटिव आने पर उन्हें घर भेज दिया गया, जिनकी चार दिन पहले ही पॉजिटिव रिपोर्ट आई थी। ऐसे में चर्चाएं जन्म ले रही है कि आखिर ऐसा क्या हो रहा है? क्या खेल खेला जा रहा है?
आखिर कोरोना के नाम पर कुछ गड़बड़ की जा रही है? कैसे एक दिन पहले पॉजिटिव की रिपोर्ट आती है और दूसरे दिन नेगेटिव की? आखिर स्वास्थ्य विभाग क्या कर रहा है? जिन दो दर्जन लोगों को हाल ही में नेगेटिव रिपोर्ट आने पर घर भेजा गया, उनका सिरसा के स्वास्थ्य विभाग ने ऐसा क्या उपचार किया कि वे स्वस्थ हो गए? ऐसी कौन-सी जन्मघुट्टी तैयार की गई है सिरसा में?
जिस प्रकार की स्वास्थ्य विभाग की कार्यशैली है, उससे शंकाएं जन्म लेती है कि कहीं कुछ गड़बड़ है। चूंकि कोरोना की आजतक कोई दवा नहीं खोजी जा सकी है, फिर ऐसा चमत्कार कैसे हो रहा है? शंका जन्म लेती है कि कहीं लैब की रिपोर्ट में तो कहीं कोई गड़बड़ नहीं? जो लैब कोरोना का टेस्ट करती है, उनकी रिपोर्ट की प्रमाणिकता पर सवाल उठने लगे है। आखिर 24 घंटे में मरीज के शरीर में ऐसे क्या हारमोन पैदा हो जाते है कि रिपोर्ट नेगेटिव आ जाती है और स्वास्थ्य विभाग भी तसल्ली कर लेता है?
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- कंटेनमेंट जोन वालों को परेशानी
 सिरसा में बढ़ते मरीजों की वजह से कंटेनमेंट जोन की संख्या में भी बढ़ौतरी हुई है। साथ ही इन क्षेत्रों के लोगों की समस्याएं भी। अचरज इस बात को लेकर हो रहा है कि स्वास्थ्य विभाग जिस व्यक्ति की वजह से पूरी कालोनी को कंटेनमेंट जोन और 2 किलोमीटर के दायरे को बफर जोन बना देता है, वह व्यक्ति अगले ही दिन स्वस्थ करार देकर घर भेज दिया जाता है। उसके परिवार व संपर्क में आए लोगों की रिपोर्ट भी नेगेटिव आ जाती है। मगर, कंटेनमेंट जोन में आए लोग 28 दिनों के लिए अपने ही घरों में बंधक बना दिए जाते है। चर्चा इस बात को लेकर छिड़ रही है कि आखिर कंटेनमेंट जोन बनाने के लिए कोई विशेष बजट का प्रावधान है? कंटेनमेंट जोन बनने से किसे लाभ हो रहा है? किसके हित साधे जा रहे है?
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- कहीं पल्ला तो नहीं झाड़ रहें
 स्वास्थ्य विभाग द्वारा जिस प्रकार दो-चार दिनों में ही कोरोना पॉजिटिव की रिपोर्ट नेगेटिव आने पर घर भेजा जा रहा है, उससे यह भी सवाल उठने लगे है कि कहीं स्वास्थ्य विभाग अपना पल्ला तो नहीं झाड़ रहा। चूंकि आइसोलेशन वार्ड में मरीज की देखभाल व खानपान की जिम्मेवारी स्वास्थ्य विभाग की है। यह अलग विषय है कि स्वास्थ्य विभाग को इसकी एवज में क्या हासिल होता है। अस्पताल में दाखिल मरीज की जिम्मेवारी का निर्वहन भी बड़ी बात है। ऐसे में कौन जिम्मेवारी लें? बेहतर है अगले दिन या दो-चार दिन बाद ही मरीज को घर भेज दिया जाए? कहीं स्वास्थ्य विभाग ज्यादा लोगों की जिम्मेवारी से बचने की तो कोशिश नहीं कर रहा?
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- मरीज का ऑडियो हुआ वायरल
सिरसा। आजकल सोशल मीडिया पर एक व्यक्ति का ऑडियो वायरल हो रहा है। इसे कोरोना पॉजिटिव करार दिया गया था और उसे आइसोलेशन वार्ड में दाखिल किया गया था। उपचार अवधि में ही उसके मित्र से हुई बातचीत की यह रिकार्डिंग वायरल हो रही है। जिसमें उपचाराधीन व्यक्ति द्वारा स्वयं को स्वस्थ और कोरोना की रिपोर्ट को झूठा बताया जा रहा है। बातचीत में वह कहता है कि उसे दो-चार दिन में नेगेटिव रिपोर्ट बताकर वापस घर भी भेज दिया जाएगा और उसका कथन सच भी साबित होता है। वायरल ऑडियो में युवक आइसोलेशन वार्ड में मरीजों की अनदेखी और उन्हें समय पर भोजन-पानी तक न देने की अव्यवस्था भी उजागर करता है। ऐसे में वायरल ऑडियो स्वास्थ्य विभाग की कारगुजारियों को कटघरे में खड़ा करता है।
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- स्थिति स्पष्ट करें प्रशासन
 कोरोना को लेकर तरह-तरह की हिदायत जारी करने वाले प्रशासन को वर्तमान स्थिति को स्पष्ट करना चाहिए। पिछले दो माह से अधिक समय का अंतराल बीत चुका है, मगर प्रशासन की ओर से एक बार भी प्रेस से संवाद नहीं किया गया है? जनता के ढेरों सवाल है कि आखिर कोरोना के लिए कितना बजट मिला? कितनी राशि खर्च की गई? किस मद पर खर्च की गई? कंटेनमेंट जोन पर कितना खर्च किया गया? किन लोगों को सैनेटाइजर और मास्क दिए? अब जब प्रशासन प्रेस से मुखाति होगा, तभी इन सवालों के जवाब भी सामने आएंगे।
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- आरटीआई को किया भोथरा
 कोरोना काल में प्रशासन द्वारा किए गए खर्च और मिले बजट को लेकर तो प्रशासन ने मौन साधा हुआ है। वहीं आरटीआई में मांगी जानकारी से भी पल्ला झाड़ा गया है। आरटीआई एक्टिविस्ट पवन पारिक एडवोकेट ने उपायुक्त कार्यालय से इस संदर्भ में जानकारी मांगी थी। उपायुक्त कार्यालय की नजारत शाखा द्वारा कोविड-19 से बचाव न बजट मिलने और न ही खर्च करने की जानकारी दी गई है। पवन पारिक ने राज्य सूचना आयोग को भेजी शिकायत में बताया कि इसी नजारत शाखा द्वारा ही कोविड-19 से बचाव हेतु खरीद कमेटी के गठन का पत्र जारी किया गया था। इसलिए विभागीय अधिकारी जानकारी देने से बचने की कोशिश कर रहे है। इसलिए वह अपील की बजाए शिकायत कर रहा है।

क्रेडिट (इंदरजीत अधिकारी) सिरसा

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क्या डबवाली में BJP की इस गलती को नजर अंदाज किया जा सकता है,आखिर प्रशासन ने क्यों नहीं की कार्रवाई