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डबवाली का एक डॉक्टर ऐसा भी जो हस्ता और रोता है मरीजों के संग
एक मरीज के लिए भगवान से कम नहीं होते डॉक्टर... कोविड-19 में भी दे रहे हैं अपनी सेवाएं
डबवाली (सुदेश कुमार आर्य)कहते हैं कि डॉक्टर भगवान का रूप होते हैं और भगवान के इन्हीं अवतारों के सम्मान में धरती पर एक जुलाई को डॉक्टर्स-डे मनाया जाता है।डॉक्टर्स का पेशा ही ऐसा है कि रात हो या दिन अपनी ड्यूटी पर रहते हुए ही नहीं बल्कि ड्यूटी के बाद भी मरीजों की सेवा के लिए तत्पर रहते हैं। मरीज कौन हैै? गरीब है या अमीर, उसका मजहब क्या है? इन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता। इनके कदम नहीं रूकते। इनका एक ही मकसद है, सिर्फ मरीज के दर्द को दूर करना। तभी तो लोग इनको धरती पर भगवान का दूसरा रूप मानते हैं। समाज के लिए यह एक रोल मॉडल हैं। इस डॉक्टर्स-डे पर हम आपसे रू-ब-रू करवा रहे हैं हमारे डबवाली शहर के ऐसे ही एक डॉक्टर से जो अपने पेशे के साथ-साथ समाजसेवा में भी अग्रणी भूमिका निभा रहे हैं। जी हां, हम बात कर रहे हैं डॉ. विवेक करीर ''सोनू की जो डबवाली में कॉलोनी रोड पर डॉ. विवेक डायग्नोस्टिक सैंटर के नाम से अल्ट्रासाऊंड एवं एक्स-रे सैंटर का संचालन कर रहे हैं।
ऐसे बहुत ही कम डॉक्टर्स होंगे जो मरीज के सिर पर हाथ रखते हों, उसका हाथ अपने हाथों में लेकर हालचाल पूछते हों। बीमारी और आराम के बारे में ऐसे पूछते हों, जैसे वह कोई उनका पारीवारिक सदस्य हो। ऐसा करते हुए दिखे तो समझ जाइए कि वह डॉ. विवेक करीर हैं। सामान्य परिवार में पले बढ़े डॉ. विवेक करीर हर मरीज को अपने परिवार के सदस्य जैसा मानते हैं। डॉ. करीर ने सोचा भी न था कि इस लाईन में आने के बाद लोग उन्हें इस तरह से चाहने लगेंगे। आज वह कई सामाजिक संगठनों से जुड़कर गरीबों और असहायों की निस्वार्थ भाव से सहायता करने के लिए उत्सुक रहते हैं। अपने सैंटर में आने वाले गरीब व जरूरतमंद का ईलाज भी नि:शुल्क करने से पीछे नहीं हटते। शायद इसी वजह से इनके मरीज इनको भगवान से कम नहीं मानते। जीवन बहुत ही महत्वपूर्ण है। ऐसे में कोई भी ईलाज न मिल पाने के चलते न मरे। इसके लिए डॉ. करीर एक एनजीओ के साथ मिलकर कैंसर के रोगियों का ईलाज करने व करवाने के लिए भी तैयार रहते हैं। डॉ. करीर ने बताया कि रुपया उनके लिए कोई मायने नहीं रखता। उनका मकसद अपने मरीज को बेहतर ईलाज उपलब्ध कराना है। जिससे कि उसकी पीड़ा को कम किया जा सके। इसके बदले में मरीज से जो आशीर्वाद मिलता है, सही मायने में वही उनके द्वारा की गई सेवा का प्रतिफल है।
एक अच्छे इंसान ही नहीं यह प्राकृतिक प्रेमी भी हैं और एक नेचर लवर होने के साथ-साथ अच्छा संगीत सुनना और पुराने फिल्मी गीत गाना और संगीत में भी इनकी बेहद रूचि है। यह फोटोग्राफी भी बेहद मस्त करते हैं। पक्षियों व प्राकृतिक नजारों को कैद करना इनका शौंक है। प्रैस क्लब डबवाली के ऐसोसिएट मैंबर हैं और शहर की कई सामाजिक व शिक्षण संस्थाओं के साथ जुड़कर अपनी कला का प्रदर्शन करने से भी नहीं चूकते।
एक अच्छे इंसान ही नहीं यह प्राकृतिक प्रेमी भी हैं और एक नेचर लवर होने के साथ-साथ अच्छा कर्णप्रिय संगीत सुनना और पुराने फिल्मी गीत गाना तथा संगीत में भी इनकी रूचि है। यह फोटोग्राफी भी बेहद मस्त करते हैं। पक्षियों व प्राकृतिक नजारों को कैद करना इनका शौंक है। एनजीओ अपने तथा प्रैस क्लब डबवाली के ऐसोसिएट मैंबर हैं और शहर की कई सामाजिक व शिक्षण संस्थाओं के साथ जुड़कर अपनी कला का प्रदर्शन करने से भी नहीं चूकते।
डॉ. विवेक करीर का जन्म 28 जून, 1976 को पंजाब के शहर अबोहर अध्यापक दम्पत्ति के घर हुआ। इनके पिता अमृत लाल करीर व माता कृष्णा देवी करीर धार्मिक विचारों के इंसान हैं और अपनी रिटायर्ड लाईफ आनंद से व्यतीत कर रहे हैं। डॉ. विवेक करीर की प्राथमिक व हाई स्कूल की शिक्षा फाजिल्का में हुई जबकि हायर ऐजूकेशन इन्होंने श्री एमपी शाह कॉलेज जामनगर (गुजरात) से एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी की। एक डॉक्टर होने के नाते मेरी माताजी सदैव मुझसे कहती हंै कि 'पहले देश की सेवा सर्वोपरि है, परिवार बाद में आता है। उन्होंने कहा कि कोरोना का संकट समाप्त होने के बाद जीवन आसान नहीं होगा, क्योंकि अन्य बीमारियों के रोगियों की संख्या बढऩे की आशंका है।
कोरोना काल में भी दे रहे हैं अपनी सेवाएं
कोविड-19 जैसी आपातकालीन स्थिति में भी इनकी सेवाएं जारी हैं। ऐसी स्थिति के दौरान एक डॉक्टर को अतिरिक्त सतर्कता बरतनी पड़ती है, क्योंकि एक छोटी सी भूल भी मरीज तथा उनकी स्वयं की जिंदगी पर भारी पड़ सकती हैं। ऐसे में यदि मरीज को कुछ भी हुआ तो उसके अभिभावाकों एवं सामाजिक अवहेलना को भी एक डॉक्टर को ही झेलना पड़ता है। फिर भी हौंसला उनके परिवार वालों का भी होता है जो उन्हें हर समय देश की सेवा के लिए आशीर्वाद देते हैं और उन्हें प्रोत्साहित करते हैं।
डॉ विवेक क़रीर |
ऐसे बहुत ही कम डॉक्टर्स होंगे जो मरीज के सिर पर हाथ रखते हों, उसका हाथ अपने हाथों में लेकर हालचाल पूछते हों। बीमारी और आराम के बारे में ऐसे पूछते हों, जैसे वह कोई उनका पारीवारिक सदस्य हो। ऐसा करते हुए दिखे तो समझ जाइए कि वह डॉ. विवेक करीर हैं। सामान्य परिवार में पले बढ़े डॉ. विवेक करीर हर मरीज को अपने परिवार के सदस्य जैसा मानते हैं। डॉ. करीर ने सोचा भी न था कि इस लाईन में आने के बाद लोग उन्हें इस तरह से चाहने लगेंगे। आज वह कई सामाजिक संगठनों से जुड़कर गरीबों और असहायों की निस्वार्थ भाव से सहायता करने के लिए उत्सुक रहते हैं। अपने सैंटर में आने वाले गरीब व जरूरतमंद का ईलाज भी नि:शुल्क करने से पीछे नहीं हटते। शायद इसी वजह से इनके मरीज इनको भगवान से कम नहीं मानते। जीवन बहुत ही महत्वपूर्ण है। ऐसे में कोई भी ईलाज न मिल पाने के चलते न मरे। इसके लिए डॉ. करीर एक एनजीओ के साथ मिलकर कैंसर के रोगियों का ईलाज करने व करवाने के लिए भी तैयार रहते हैं। डॉ. करीर ने बताया कि रुपया उनके लिए कोई मायने नहीं रखता। उनका मकसद अपने मरीज को बेहतर ईलाज उपलब्ध कराना है। जिससे कि उसकी पीड़ा को कम किया जा सके। इसके बदले में मरीज से जो आशीर्वाद मिलता है, सही मायने में वही उनके द्वारा की गई सेवा का प्रतिफल है।
एक अच्छे इंसान ही नहीं यह प्राकृतिक प्रेमी भी हैं और एक नेचर लवर होने के साथ-साथ अच्छा संगीत सुनना और पुराने फिल्मी गीत गाना और संगीत में भी इनकी बेहद रूचि है। यह फोटोग्राफी भी बेहद मस्त करते हैं। पक्षियों व प्राकृतिक नजारों को कैद करना इनका शौंक है। प्रैस क्लब डबवाली के ऐसोसिएट मैंबर हैं और शहर की कई सामाजिक व शिक्षण संस्थाओं के साथ जुड़कर अपनी कला का प्रदर्शन करने से भी नहीं चूकते।
एक अच्छे इंसान ही नहीं यह प्राकृतिक प्रेमी भी हैं और एक नेचर लवर होने के साथ-साथ अच्छा कर्णप्रिय संगीत सुनना और पुराने फिल्मी गीत गाना तथा संगीत में भी इनकी रूचि है। यह फोटोग्राफी भी बेहद मस्त करते हैं। पक्षियों व प्राकृतिक नजारों को कैद करना इनका शौंक है। एनजीओ अपने तथा प्रैस क्लब डबवाली के ऐसोसिएट मैंबर हैं और शहर की कई सामाजिक व शिक्षण संस्थाओं के साथ जुड़कर अपनी कला का प्रदर्शन करने से भी नहीं चूकते।
डॉ. विवेक करीर का जन्म 28 जून, 1976 को पंजाब के शहर अबोहर अध्यापक दम्पत्ति के घर हुआ। इनके पिता अमृत लाल करीर व माता कृष्णा देवी करीर धार्मिक विचारों के इंसान हैं और अपनी रिटायर्ड लाईफ आनंद से व्यतीत कर रहे हैं। डॉ. विवेक करीर की प्राथमिक व हाई स्कूल की शिक्षा फाजिल्का में हुई जबकि हायर ऐजूकेशन इन्होंने श्री एमपी शाह कॉलेज जामनगर (गुजरात) से एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी की। एक डॉक्टर होने के नाते मेरी माताजी सदैव मुझसे कहती हंै कि 'पहले देश की सेवा सर्वोपरि है, परिवार बाद में आता है। उन्होंने कहा कि कोरोना का संकट समाप्त होने के बाद जीवन आसान नहीं होगा, क्योंकि अन्य बीमारियों के रोगियों की संख्या बढऩे की आशंका है।
कोरोना काल में भी दे रहे हैं अपनी सेवाएं
कोविड-19 जैसी आपातकालीन स्थिति में भी इनकी सेवाएं जारी हैं। ऐसी स्थिति के दौरान एक डॉक्टर को अतिरिक्त सतर्कता बरतनी पड़ती है, क्योंकि एक छोटी सी भूल भी मरीज तथा उनकी स्वयं की जिंदगी पर भारी पड़ सकती हैं। ऐसे में यदि मरीज को कुछ भी हुआ तो उसके अभिभावाकों एवं सामाजिक अवहेलना को भी एक डॉक्टर को ही झेलना पड़ता है। फिर भी हौंसला उनके परिवार वालों का भी होता है जो उन्हें हर समय देश की सेवा के लिए आशीर्वाद देते हैं और उन्हें प्रोत्साहित करते हैं।
सुदेश कुमार आर्य |
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डबवाली का एक डॉक्टर ऐसा भी जो हस्ता और रोता है मरीजों के संग
Reviewed by DabwaliNews
on
5:43:00 PM
Rating: 5
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क्या डबवाली में BJP की इस गलती को नजर अंदाज किया जा सकता है,आखिर प्रशासन ने क्यों नहीं की कार्रवाई
fv
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1 comment:
Bahut badiya dr sahab lage raho. Very good sir salute to you.
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