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फर्जी फर्मों के सरगनाओं की कमर तोडऩे के लिए टैक्स रिसर्च यूनिट को सौंपने होंगे मामले


राजस्व की वसूली के लिए मुख्यालय स्तर पर उठाना होगा कदम, मामला दर्ज करवाने भर से बढ़ रहे हौंसले
डबवाली न्यूज़ डेस्क(स्पेशल रिपोर्ट: इंदरजीत अधिकारी )
फर्जी फर्में बनाकर करोड़ों की टैक्स चोरी करने वालों की कमर तोडऩे के लिए कराधान विभाग की टैक्स रिसर्च यूनिट को मामले सौंपने होंगे, तभी सरकार को राजस्व भी प्राप्त हो सकेगा। पुलिस में मामला दर्ज होने भर से कोई प्रगति नहीं हो पा रही है, जिसकी वजह से फर्जी फर्मों का कारोबार फल-फूल रहा है। जानकारी के अनुसार कराधान विभाग में टैक्स रिसर्च यूनिट है, जिसमें विभाग के तेजतर्रार और एक्सपर्ट अधिकारी शामिल है। इस यूनिट के पास मामला पहुंचने पर वे पाताल तक पहुंच जाते है, जिसके कारण अपराधियों का बच निकलना मुश्किल हो जाता है। लेकिन राज्य सरकार द्वारा टैक्स चोरी के मामलों को इस यूनिट के हवाले ही नहीं किया जाता। बल्कि पुलिस में मामला दर्ज करवाकर इतिश्री कर ली जाती है। एफआईआर दर्ज होने पर पुलिस विभाग का उप निरीक्षक या सहायक उपनिरीक्षक स्तर का अधिकारी इसकी जांच करता है। पुलिस अधिकारी टैक्स चोरी के मामलों के अधिक जानकार नहीं होते, इसलिए केस में प्रगति नहीं हो पाती। यही वजह है कि सिरसा में 100 से अधिक मामले दर्ज होने के बावजूद आजतक एक पैसे की भी रिकवरी नहीं हुई। जिन लोगों ने टैक्स चोरी करके करोड़ों की अकूत संपत्ति जुटाई, वे सफेदपॉश बनकर खुले घूमते है। जानकार बताते है कि फर्जी फर्मों का कारोबार करके सरकार को चूना लगाने वालों पर अंकुश लगाने के लिए टैक्स रिसर्च यूनिट को मामले सौंपने होंगे। इस यूनिट के एक्सपर्ट करोड़ों रुपये के राजस्व की वसूली का मार्ग बनाएंगें। क्योंकि विभाग के एक्सपर्ट ही फर्जी फर्मों के कारोबारियों की रग-रग से वाकिफ है और वे बेहतर ढंग से इनका ईलाज करने में सक्षम है। फिलहाल कराधान विभाग के जिन अधिकारियों पर जिम्मेवारी है, उनका फर्जी फर्म संचालकों के प्रति नरम रवैया रहा है। इसलिए वे पुलिस में मामला दर्ज करवाकर मौन साध लेते है। वैसे विभाग के अनेक अधिकारी भी टैक्स चोरी के मामले में नामजद हो चुके है। चंूकि टैक्स चोरी का यह खेल विभागीय अधिकारियों की ही कथित मिलीभगत से अंजाम तक पहुंचता है।

ईडी की लेनी होगी सहायता
फर्जी फर्मों के खेल का खात्मा करने के लिए ईडी (प्रवर्तन निदेशालय) की मदद लेनी होगी। चूंकि फर्जी फर्मों का कोराबार करने वालों द्वारा बेनामी संपत्तियां जुटाई जाती है। ऐसे में इन लोगों पर तब तक असर नहीं होगा, जब तक इनकी जुटाई संपत्तियों को कुर्क नहीं किया जाता। जानकार बताते है कि फर्जी फर्मों का संचालन करने वालों पर नकेल कसने के लिए ईडी मददगार साबित हो सकती है। जिन लोगों द्वारा फर्जी फर्में बनाकर करोड़ों रुपये की टैक्स चोरी की या टैक्स रिफंड हासिल किया, ऐसे लोगों को ईडी ही चुन-चुनकर टैक्स की वसूली कर सकती है। जब धोखाधड़ी करके जुटाई गई संपत्ति ईडी द्वारा जब्त की जाएगी, तब ऐसे लोगों का साम्राज्य टूटेगा और उन्हें सजा मिल पाएगी। जब तक उनकी संपत्ति कुर्क नहीं होगी, तब तक उनका खेल चलता रहेगा। वे किसी न किसी चाट वाले को, पान वाले को, माली को मोहरा बनाकर अपना काला धंधा चलाते रहेंगे।

मामले में पुलिस भी बेबस
फर्जी फर्मों के इस खेल में भले ही पुलिस द्वारा एफआईआर दर्ज कर ली जाती है। लेकिन दोषियों को सजा दिलवा पाने में पुलिस भी बेबस है। चूंकि टैक्स चोरी का मामला बेहद पेचिदा है और इसकी समझ हरेक के बस की बात नहीं। पुलिस द्वारा मामला दर्ज करने के बाद एएसआई अथवा एसई को जांच अधिकारी नियुक्त कर दिया जाता है। भले ही पुलिस के ये अधिकारी क्राइम मामलों के एक्सपर्ट हों, लेकिन टैक्स चोरी जैसे पेचिदा मामलों से अनभिज्ञ है। पुलिस महानिरीक्षक संजय सिंह ने स्वयं ऐसे मामलों को टैक्स रिसर्च यूनिट को सौंपने की अनुशंसा की है, क्योंकि पुलिस विभाग के पास ऐसे मामलों के एक्सपर्ट नहीं है। एक्सपर्ट न होने के कारण पुलिस बेबस है और एफआईआर की संख्या में बढ़ौतरी होती जाती है।
एसीएस अथवा ईटीसी को उठाना होगा कदम
प्रदेश में टैक्स चोरी का मामला करोड़ों का है। लोकायुक्त हरियाणा के आदेश पर पहली बार एसआईटी का गठन तत्कालीन आयुक्त श्रीकांत जाधव की अध्यक्षता में किया गया था। जिसने प्रारंभिक जांच में ही हजारों करोड़ के घोटाले का पर्दाफाश किया था। वर्तमान में भी फर्जी फर्मों का खेल बदस्तूर जारी है। ऐसे में टैक्स चोरी रोकने और फर्जी फर्मों के संचालकों से राजस्व की वसूली करने के लिए एसीएस (अतिरिक्त मुख्य सचिव)अथवा कराधान विभाग के ईटीसी हरियाणा (आबकारी एवं कराधान आयुक्त) को पहल करनी होगी। मुख्यालय स्तर पर एक्शन लिए जाने से ही सरकार व जनता को इस कोढ़ से मुक्ति मिल पाएगी।

नेताओं से जुड़े है सरगनाओं के तार
प्रदेशभर में फर्जी फर्मों का जाल फैलाकर करोड़ों रुपये की टैक्स चोरी करने वालों के हाथ लंबे है। ऐसे लोगों द्वारा जहां कई बैंक अधिकारियों व कई कराधान विभाग के अधिकारियों को अपना वेतनभोगी बनाया हुआ है, वहीं उन्होंने नेताओं को अपना सरप्रस्त भी बनाया हुआ है। चुनाव में मोटा फंड देकर वे नेताओं के चहेते है, जिसके कारण उनकी गर्दन चंगुल में फंसने से बच पाती है। इन नेताओं की शह पर ही वे अपना काला कारोबार धड़ल्ले से कर पा रहे है। ऐसे नेताओं के चेहरे भी बेनकाब करने की जरूरत है।


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