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फर्जी फर्मों का मक्कडज़ाल एफआईआर में देरी के लिए कौन जिम्मेवार?

 डबवाली न्यूज़ डेस्क 
फर्जी फर्में बनाकर सरकारी खजाने को करोड़ों रुपये का चूना लगाने वाले समाज के कंटकों के खिलाफ पुलिस द्वारा एफआईआर दर्ज करने में हुई देरी के लिए किसे जिम्मेवार समझा जाए, यह बड़ा सवाल है? जिला पुलिस की ओर से पिछले तीन दिनों में डेढ़ दर्जन फर्मों के खिलाफ धोखाधड़ी व गबन का मामला दर्ज किया है। आबकारी एवं कराधान विभाग की ओर से इन फर्मों के खिलाफ मामले दर्ज करवाए गए है और सिरसा शहर, सिविल लाइन थाना, ओढां और डबवाली थानों में यह मामले दर्ज किए गए है। अचरज की बात तो यह है कि पुलिस की ओर से आबकारी एवं कराधान विभाग के उन पत्रों के हवाले से मामले दर्ज किए गए है, जोकि लगभग 11 माह पूर्व यानि नवंबर-2019 में दिए गए। पिछले 11 माह से विभाग के इन शिकायत पत्रों को आखिर किसने दबा रखा था? किसके आदेश पर पुलिस महकमा हाथ पर हाथ धरे बैठा था? पुलिस विभाग को आखिर किसके इशारे का इंतजार था? दरअसल, कराधान आयुक्त हरियाणा द्वारा नवंबर-2019 में उप आबकारी एवं कराधान आयुक्त सिरसा को अनेक फर्मों के नामों की सूची देकर उनके खिलाफ पुलिस में एफआईआर दर्ज करवाने के आदेश दिए थे। कराधान विभाग की ओर से इन आदेशों का हवाला देते हुए पुलिस विभाग को 12 दिसंबर 2019 को ही मामला दर्ज करने के लिए पत्र भेजा। कराधान विभाग द्वारा स्वयं को पाक साफ साबित करते हुए गेंद पुलिस विभाग के पाले में डाल दी। अब जिला पुलिस द्वारा अक्टूबर-2020 में दिसंबर-2019 में दिए गए पत्रों का हवाला देते हुए आपराधिक मामला दर्ज किया गया है। ऐसे में पुलिस विभाग पर सवालिया निशान लगते है कि आखिर जिला पुलिस किसके दबाव में काम कर रही थी? उसने एक सरकारी महकमे द्वारा जारी शिकायत पर ही संज्ञान लेने में 10-11 महीने का समय लगा दिया, आखिर क्यों? एफआईआर दर्ज करने में किसका स्वार्थ था? एफआईआर देरी से दर्ज होने से किसे लाभ होना था? वो कौन था जो पुलिस के हाथ रोके हुए था? सवाल अनेक है, जिनका पुलिस महकमे को जवाब देना होगा। अब यदि गृहमंत्री अनिल विज ने संज्ञान न लिया होता तो करोड़ों की चपत लगाने वाली फर्मों के खिलाफ एफआईआर ही दर्ज नहीं होती?

सबूत मिटाने का मिला मौका

पुलिस द्वारा यदि आबकारी एवं कराधान विभाग की शिकायत पर त्वरित कार्रवाई की होती तो फर्जी फर्मों का खेल खेलने वालों को बच निकलने का मौका नहीं मिलता। इसके साथ ही पिछले 10-11 माह में उन्होंने जो नई-नई फर्जी फर्में बनाकर चूना लगाने का कार्य किया है, वह न हो पाता। अब 10-11 माह की अवधि में तो फर्जी फर्मों के कारोबारियों ने सबूत मिटाने का काम कर डाला होगा। ऐसे में एफआईआर में देरी फर्जी फर्म संचालकों के हित में रहीं। 

नवनियुक्त पुलिस अधीक्षक से बड़ी अपेक्षा

कराधान विभाग की ओर से जिला पुलिस के पास पिछले वर्ष नवंबर-दिसंबर में दर्जनों फर्मों के खिलाफ मामला दर्ज करने के लिए शिकायत पहुंचीं लेकिन पुलिस ने इन शिकायतों को ठंडे बस्ते में डाल दिया। नवनियुक्त पुलिस अधीक्षक भूपेंद्र सिंह के संज्ञान में जैसे ही मामला आया, उनकी ओर से बिना देरी के लिए फर्जीबाड़ा करने वालों के खिलाफ मामला दर्ज करवाने के निर्देश दिए गए। हकीकत तो यह है कि फर्जी फर्मों का कारोबार करने वालों के हाथ बड़े लंबे है, इसलिए वे कोई भी कार्रवाई को ठंडे बस्ते में डलवा देते है। मगर, पुलिस अधीक्षक भूपेंद्र सिंह द्वारा जिस प्रकार का स्टेंड लिया गया है, उसकी वजह से उनसे अब अपेक्षाएं भी बढ़ गई है। यदि दर्ज किए गए मामलों को अंजाम तक पहुंचाया जाएगा, तभी समाज को ऐसे कंटकों से मुक्ति मिलेगी, जोकि जनता के खून-पसीने के पैसे को चपत लगा रहे है।

सिरसा है फर्जी फर्मों की राजधानी

जिस प्रकार से सिरसा को एक समय मादक पदार्थों की तस्करी की वजह से शुष्क बंदरगाह कहा जाता था, उसी प्रकार फर्जी फर्मों के मामले में सिरसा को इसकी राजधानी कहा जाता है। चूंकि फर्जी फर्मों के सरगनाओं का ठिकाना सिरसा ही है। पूरे देश में फर्जी फर्मों का काला कारोबार सिरसा से ही संचालित किया जाता है। हरियाणा ही नहीं बल्कि कई प्रदेशों की पुलिस इनके खिलाफ मामले भी दर्ज कर चुकी है, लेकिन फर्जी फर्मों के काले कारोबार से जुटाई अकूत संपत्ति के बल पर वे खुले घूम रहे है। 'एमआरपीÓ के नाम से कुख्यात महेश बांसल, पदम बांसल और रमेश कुमार द्वारा ही फर्जी फर्मों का खेल शुरू किया गया। इस काले धंधे से ही उन्होंने अल्प समय में अकूत संपत्ति जुटाई और अपना साम्राज्य खड़ा कर दिया। यदि मामले में अकेले महेश बांसल से ही पूछताछ की जाए तो पूरे मामले का पटाक्षेप हो सकता है। लेकिन पुलिस द्वारा दर्ज मामले में नामजद होने के बावजूद आजतक उसका कुछ नहीं बिगड़ा और उसका कारोबार आज भी बदस्तूर जारी है, वह नामजद होने के बावजूद खुलेआम घूम रहा है।

एसआईटी पर सवालिया निशान

पुलिस महानिरीक्षक हिसार रेंज द्वारा फर्जी फर्मों के मामले में विशेष जांच टीम (एसआईटी) का गठन किया गया। सहायक उपनिरीक्षक प्रह्लाद को इसका इंचार्ज बनाया गया। सिरसा सहित विभिन्न जिलों में टैक्स चोरी के मामलों की जांच इस एसआईटी को सौंपी गई। लेकिन आज यह एसआईटी पर सवालिया निशान लग रहे है। चूंकि एसआईटी इंचार्ज द्वारा आईजी हिसार के नाम से 5 लाख रुपये मांगने का आडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ। जिसमें फर्म संचालक से पैसे का तकाजा किया जा रहा है। यह मामला अब पुलिस महानिदेशक के पास पहुंच चुका है। ऐसे में जिस एसआईटी से यह उम्मीद की जा रही थी कि वह फर्जी फर्मों के मक्कडज़ाल को ध्वस्त करेगा, उस पर धन उगाही के ही आरोप लगने लगें। एसआईटी अपने परिणाम को लेकर भी सवालों के घेरे में है, चूंकि जो भी मामले एसआईटी को सौंपे गए, उन पर कोई निर्णायक परिणाम सामने नहीं आया। या तो मामले में आरोपियों को क्लीन चिट दे दी या क्लीन चिट देने की तैयारी कर दी। एएसआई प्रह्लाद की वजह से आईजी हिसार द्वारा गठित एसआईटी इन दिनों सवालों के घेरे में है।

'गब्बर' के तेवर से मची खलबली

प्रदेश के गृहमंत्री अनिल विज अपनी बेबाक शैली और जनहित में उठाए जाने वाले कड़े कदमों की वजह से अलग पहचान रखते है। पूरे प्रदेश की जनता की उनसे ही उम्मीद है। यही वजह है कि पूरे हरियाणा में लोग न्याय के लिए उनकी ओर निहारते है। प्रदेश में फर्जी फर्मों का भंडाफोड़ तो लोकायुक्त हरियाणा द्वारा गठित तत्कालीन आईजी श्रीकांत जाधव की अगुवाई वाली एसआईटी द्वारा किया गया था। करोड़ों रुपये के घोटाले को एक्सपोज किया गया, लेकिन मामले में कोई कार्रवाई नहीं हुई। कराधान विभाग के भ्रष्ट अधिकारियों की मिलीभगत से फर्जी फर्में बनीं, जिन्होंने कागजों में कारोबार दर्शाकर टैक्स की चोरी की और सरकारी खजाने से करोड़ों रुपये का रिफंड भी लिया। वर्षों से टैक्स चोरी के मामले दबे हुए थे, बीते दिनों उन्होंने अपने तेवर कड़े किए तो सिरसा में दो दिनों में 17 एफआईआर दर्ज कर दी गई और फरीदाबाद में भी दर्जनभर से अधिक एफआईआर दर्ज की गई है। पूरे प्रदेश में हड़कंप मचा हुआ है। उम्मीद जगी है कि फर्जी फर्मों के कारोबार पर अब अंकुश लग पाएगा। बेहतर होगा यदि फर्जी फर्मों के मामले आईजी हिसार द्वारा गठित एसआईटी की बजाए संबंधित जिला पुलिस को ही सौंपे जाए। जिला पुलिस द्वारा कार्रवाई करने पर अपेक्षित परिणाम आ सकते है।

अधिकारियों पर मामले दर्ज होना शेष

आबकारी एवं कराधान आयुक्त हरियाणा की नवंबर-2019 में डीईटीसी (टैक्स)सिरसा को अपने ही महकमे के आधा दर्जन से अधिक अधिकारियों के खिलाफ पुलिस में एफआईआर दर्ज करवाने के आदेश दिए थे। मगर, इन अधिकारियों के खिलाफ आजतक पुलिस द्वारा मामले दर्ज नहीं किए गए। कराधान आयुक्त की ओर से 22 नवंबर 2019 को तत्कालीन ईटीओ डीपी बैनीवाल, ईटीओ अनिल मलिक, ईटीओ अशोक सुखीजा, एईटीओ ओपीएस अहलावत, टीआई हनुमान सैनी, ईटीओ मालाराम के खिलाफ मामला दर्ज करवाने के लिए कहा गया था। सवाल यह है कि कहीं फर्जी फर्मों की भांति पुलिस द्वारा इन अधिकारियों के खिलाफ मामला दर्ज करने में देरी की जा रही है? यदि पुलिस के पास इन अधिकारियों के खिलाफ मामला दर्ज करवाने बारे आबकारी एवं कराधान विभाग से शिकायत नहीं पहुंची है, तब कराधान विभाग के अधिकारी इसके लिए जवाबदेह होंगे कि उन्होंने 11 माह का लंबा अरसा बीत जाने पर भी कराधान आयुक्त के आदेशों की पालना क्यों नहीं? अब कराधान विभाग के इन अधिकारियों के खिलाफ मामला दर्ज होने में अधिक देरी नहीं की जा सकती क्योंकि मामला अब गृहमंत्री के संज्ञान में है।

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