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नगर परिषद की प्रधानगी के चुनाव पर स्टे का मामला,पार्षद के निलंबन और चुनाव पर स्टे तोडऩे की मांग

डबवाली न्यूज़ डेस्क
सिरसा। पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय में वीरवार को नगर परिषद के प्रधान के चुनाव पर हुए स्टे मामले की सुनवाई हुई। मामले में पक्षकार वीडियो कान्फे्रंसिंग के जरिए पेश हुए। इस मौके पर नगर परिषद सिरसा के कुछ पार्षदों की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता गौरव अग्रवाल ने स्टे याचिका दाखिल करने वाली पार्षद बलजीत कौर को निलंबित किए जाने और प्रधान के चुनाव हुए स्टे को तोडऩे की मांग की। मामले की सुनवाई के समय सरकार की ओर से एडवोकेट जनरल और याचिकाकत्र्ता की ओर से उनके वकील पेश हुए। नगर पार्षदों की ओर से पेश हुए वकील गौरव अग्रवाल ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि पहले चुनाव पर स्टे मांगा जाता है, फिर स्टे याचिका से ही इंकार किया जाता है। कानून का खिलवाड़ बना दिया गया है। पूरे मामले में बेईमानीपूर्ण व्यवहार किया गया है। प्रधान का पद रिक्त रहने की वजह से सिरसा का विकास बाधित हो रहा है। इसलिए प्रधान के चुनाव पर स्टे को तोड़ा जाए। मामले में याचिकाकत्र्ता की नगर परिषद की सदस्यता निलंबित की जाए। इसके साथ ही पूरे मामले की गहन पड़ताल के लिए उच्च स्तरीय जांच कमेटी का गठन किया जाए। यह कमेटी जांच करें कि किस प्रकार बेईमानीपूर्ण तरीके से जनता और कानून से खिलवाड़ किया गया है। मामले में दोषी पाए जाने पर दंडात्मक कार्रवाई अमल में लाई जाए। मामले की सुनवाई करते हुए अदालत ने नगर पार्षदों के वकील गौरव अग्रवाल के आग्रह पर राज्य व स्टे की याचिकाकत्र्ता को नोटिस जारी किया है। इसके साथ ही कोर्ट ने सरकार की ओर से पेश एडवोकेट जनरल को पूरे मामले में साक्ष्य के रूप में पैनड्राइव पेश करने की हिदायत दी। मामले की अगली सुनवाई के लिए 16 अक्टूबर का दिन तय किया गया है।

याचिकाकत्र्ता के वकील पर भी आंच!

नगर परिषद के प्रधान के चुनाव पर स्टे याचिका दाचिका दाखिल करने के मामले में याचिकाकत्र्ता के वकील पर भी आंच आने लगी है। चूंकि अदालत ने पूरे मामले में याचिकाकत्र्ता के वकील को शपथपत्र पेश करने के लिए कहा है। कोर्ट ने निर्देश दिए कि याचिकाकत्र्ता के वकील यह स्पष्ट करें कि याचिका दाखिल करने वाली पार्षद बलजीत कौर द्वारा उनकी उपस्थिति में साइन किए गए या नहीं? बगैर उपस्थिति के याचिका अदालत में कैसे दाखिल कर दी गई?

मामले पर एक नजर

शीला सहगल के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पारित होने के बाद नगर परिषद के अध्यक्ष का पद लगभग दो वर्षों से रिक्त पड़ा था। नगर पार्षदों की ओर से प्रधान के चुनाव करवाने के लिए दबाव बनाया गया। प्रशासन की ओर से पहले 4 अगस्त को और फिर 11 अगस्त को चुनाव का समय निर्धारित किया गया। इसी दौरान बीजेपी और हलोपा की ओर से अपना उम्मीदवार भी घोषित कर दिया गया। लेकिन 10 अगस्त की रात्रि को उच्च न्यायालय से चुनाव पर स्टे होने की जानकारी सामने आई। प्रशासन की ओर से चुनाव टाल दिया गया और बताया गया कि पार्षद बलजीत कौर की ओर से 7 अगस्त को स्टे हासिल किया गया।
11 अगस्त को चुनाव के दिन पार्षद बलजीत कौर कई कांग्रेसी नेताओं के साथ नगर परिषद कार्यालय पहुंची और उसने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल करने से इंकार किया और इसे विरोधियों का षड्यंत्र करार दिया। आरोप लगाए कि उनके नाम से किसी ने स्टे याचिका दाखिल की है क्योंकि न तो उन्होंने याचिका पर हस्ताक्षर किए और न ही वह कभी वकील से मिलीं और न ही कभी चंडीगढ़ ही गई। मामला अदालत से जुड़ा होने की वजह से पूरा मामला पेचिदा बन गया। जब शक की सुई पार्षद बलजीत कौर और उनके पति हरदास सिंह रिंकू की ओर घूमीं तो उन्होंने सपरिवार धार्मिक स्थल पर इस आशय की सौगंध खाई कि उन्होंने स्टे याचिका दाखिल नहीं की। उन्होंने याचिका के लिए अपनी आईडी और अन्य दस्तावेज मुहैया नहीं करवाए। इसलिए पूरे मामले में नया मोड़ आ गया और हरेक को इस आश्य की उत्सुकता बनी रहीं कि आखिर याचिका किसने दाखिल की? लेकिन यह रहस्य अधिक दिनों तक रहस्य नहीं रह पाया। चूंकि 27 अगस्त को उनकी ओर से स्टे याचिका वापस लेने का कोर्ट से आग्रह किया गया। तब कुछ नगर पार्षदों की ओर से अधिवक्ता गौरव अग्रवाल व सरकार की ओर से एडवोकेट जनरल ने याचिका लौटाने का विरोध किया और पूरे मामले की जांच की मांग की। कोर्ट ने याचिका लौटाने से इंकार कर दिया। बीती 5 अक्टूबर को कोर्ट ने मामले में साक्ष्य पेश करने के लिए कहा था। सरकार की ओर से साक्ष्य सीडी में पेश किए गए। कोर्ट ने सरकार को पैनड्राइव में साक्ष्य देने की हिदायत दी है। जबकि पार्षदों के वकील की ओर से विभिन्न समाचार पत्रों की कटिंग और अन्य दस्तावेज कोर्ट में पेश किए गए।

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