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नगर परिषद में 63 लाख की जीएसटी चोरी मामले में दो साल बाद भी कार्रवाई का इंतजार
सिरसा। नगर परिषद के भ्रष्ट अधिकारियों व कर्मचारियों द्वारा जीएसटी के 63 लाख रुपये का गबन करने वालों के खिलाफ दो वर्ष का लंबा अरसा बीत जाने पर भी कोई कार्रवाई अमल में नहीं लाई गई है।जीएसटी विभाग के एडिशनल डायरेक्टर जनरल की ओर से आधा दर्जन अधिकारियों-कर्मचारियों को बकायदा नोटिस दिया गया था। मगर, इस अवधि में कुछ आरोपी कर्मचारी तमाम बेनिफिट लेकर सेवानिवृत्ति भी प्राप्त कर चुके है। नगर परिषद की ओर से किराए के रूप में होने वाली आमदन पर टैक्स की अदायगी करनी होती है। विभागीय कर्मियों ने फर्जी बैंक चालान प्रस्तुत कर 63 लाख रुपये डकार लिए। नगर परिषद द्वारा अपनी दुकानों से जो किराया अर्जित किया जाता है, उस किराए पर कई प्रकार के टैक्स देय होते है। दुकानदारों से किराए के साथ-साथ इन टैक्स की भी वसूली की जाती है, जिसे जीएसटी के रूप में जमा करवाना होता है। जिसमें सेलटैक्स के रूप में 12 प्रतिशत तक टैक्स की वसूली की जाती है। इसके अलावा आय पर अन्य प्रकार के सैस भी लगाए जाते है। इस वसूली गई राशि को सरकारी खजाने में जमा करवाना होता है। नगर परिषद सिरसा में बड़े सुनियोजित तरीके से टैक्स जमा करवाने के कार्य में गोलमाल किया गया। सरकारी खजाने में टैक्स की अदायगी बैंक चालान के माध्यम से की गई। नगर परिषद के कर्मियों ने बैंक में चालान 2067 रुपये का भरा और इस चालान पर एक लाख 2 हजार 67 रुपये अंकित कर दिया। अंकों में 2067 के आगे 10 लिख दिया। शब्दों में भी एक लाख आगे अंकित कर दिया गया। इस प्रकार महज 2067 रुपये की जमा करवाई गई राशि को एक लाख 2067 रुपये दर्शाकर एक बार में ही एक लाख रुपये डकार लिए। कई वर्षों तक यह सिलसिला चला और लगभग 63 लाख रुपये का गबन कर डाला गया। माल और सेवाकर आसूचना महानिदेशालय ने गोलमाल पकड़ा और अक्टूबर-2018 में नगर परिषद के अधिकारियों-कर्मचारियों को नोटिस जारी किया। लगभग दो वर्ष पहले हुए इस भंडाफोड के बाद जांच कमेटी बनाई गई। जांच कमेटी ने क्या जांच की और क्या रिपोर्ट दी, किसी को नहीं मालूम? जांच किसने दबा दी और क्यों दबा दी? यह भी खुलासा नहीं किया गया है? भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टोलरेंस का दावा करने वाली सरकार में 63 लाख के गबन करने वालों का आज तक बाल बांका नहीं हुआ। कई आरोपी तमाम बेनिफिट लेकर से सेवानिवृत्त भी हो चुके है। ऐसे में सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि सरकारी खजाने को चपत लगाने वालों के खिलाफ कितनी ढिलाई बरती गई?
इन्हें भेजा गया था नोटिस
माल और सेवाकर (जीएसटी) विभाग के आसूचना महानिदेशालय की ओर से 5 अक्टूबर 2018 को जो नोटिस भेजा गया था उसमें नगर परिषद को पार्टी बनाया गया था। यानि नगर परिषद की ओर से ईओ, राजेंद्र मिढ़ा, तत्कालीन अकाऊंटेंट केसरी सिंह, तत्कालीन कैशियर बृजलाल, तत्कालीन कैशियर नरेश कुमार को नोटिस दिया गया था। इनमें राजेंद्र मिढ़ा नगर परिषद के कर्मचारी अथवा अधिकारी नहीं है। नगर परिषद द्वारा उसे सीए के रूप में दर्शाया गया था और जीएसटी भरने के लिए उसकी सेवाएं ली गई थी।
कैसे खेला गया था खेल
दरअसल, नगर परिषद द्वारा किराएदारों से हर माह जो किराया वसूला जाता है, उस राशि पर देय टैक्स को सरकारी खजाने में जमा करवाना होता है। नगर परिषद सिरसा का रोड़ी बाजार स्थित पंजाब नेशनल बैंक की मुख्य शाखा में खाता है। नगर परिषद के तत्कालीन ईओ द्वारा इस बैंक खाते से टैक्स की अदायगी के लिए नगदी की निकासी की जाती थी। उस नगदी को टैक्स के रूप में जमा करवाने के लिए सुपुर्द किया जाता था। पीएनबी में ही चालान जमा करवाया जाता था। बैंक से प्राप्त चालान कापी में सुनियोजित ढंग से छेड़छाड़ करके अधिक राशि अंकित कर दी जाती और उसे नगर परिषद के रिकार्ड में दर्शा दिया जाता। यानि नगर परिषद का रिकार्ड यह बताता कि टैक्स के रूप में एक लाख 2 हजार 67 रुपये जमा करवा दिए गए है। जबकि बैंक में महज 2067 रुपये ही जमा करवाए जाते थे। यह सिलसिला अप्रैल-2013 से शुरू हुआ और मामले का भंडाफोड़ होने तक यानि जून-2017 तक चला। इस अवधि में 72 लाख 84 हजार 398 रुपये टैक्स के रूप में अदा किए जाने थे, जबकि नगर परिषद के अधिकारियों व कर्मचारियों ने महज 9 लाख 77 हजार 599 रुपये ही जमा करवाए और 63 लाख 23 हजार 244 रुपये का गबन कर डाला।
ऐसे पकड़ में आया गबन
नगर परिषद द्वारा टैक्स के रूप में लगातार कम राशि जमा करवाने और मई-2015 के बाद तो टैक्स के रूप में शून्य टैक्स की अदायगी की वजह से जीएसटी विभाग सक्रिय हुआ। विभाग की ओर से पड़ताल की गई और इस बारे में नगर परिषद के अधिकारियों से जवाब तलबी की। पूछा गया कि आखिर जीएसटी की अदायगी क्यों नहीं की जा रही। नगर परिषद के अधिकारियों ने कोई जवाब नहीं दिया। जिस पर जीएसटी की विजिलेंस टीम ने सिरसा नगर परिषद का दौरा किया। यह जांचने की कोशिश की कि क्या नगर परिषद की आय के स्त्रोत सूख गए है? क्या किराया आना बंद हो गया है? यदि किराया आ रहा है तब जीएसटी को अदा नहीं किया जा रहा? जब जीएसटी विभाग की विजिलेंस ने मामले की तहकीकात की तब इसका खुलासा हुआ।
पीएनबी पर फोडऩा चाहा था ठीकरा
नगर परिषद सिरसा के भ्रष्ट अधिकारियों व कर्मचारियों ने टैक्स चोरी के मामले में ठीकरा पीएनबी पर फोडऩे की कोशिश की थी। चूंकि नगर परिषद का रिकार्ड दर्शा रहा था कि पूरा टैक्स अदा कर दिया गया है। कर्मियों की ओर से बकायदा बैंक के चालान सबूत के रूप में पेश किए गए। यह चालान पंजाब नेशनल बैंक के थे। उधर, जीएसटी विभाग के खातों में नगर परिषद की मामूली राशि ही जमा हुई थी। ऐसे में जीएसटी विभाग के जांच अधिकारी भी चकरा गए। विचार किया गया कि जब पीएनबी ने पूरी राशि की वसूली का चालान दिया है, तब खजाने में पूरी राशि जमा क्यों नहीं हुई? बाद में जीएसटी विभाग की टीम ने बैंक से पूछताछ की और बैंक के चालान की जांच की। जांच में पाया कि बैंक के पास चालान कापी में रकम कम थी, जबकि नगर परिषद के पास चालान कॉपी में अधिक रकम दर्शा रखी थी। जांच में यह सामने आया कि जुलाई-2013 में बैंक में 8101 रुपये की राशि जमा की गई। बैंक ने इसका चालान जारी कर दिया। नगर परिषद के भ्रष्ट कर्मियों ने बैंक के इस चालान राशि 8101 के आगे 9 अंकित करके इसे 98101 कर दिया। यानि 8 हजार एक सौ एक रुपये की जगह उसे 98 हजार एक सौ एक बना दिया और सीधे-सीधे 90 हजार रुपये का गबन कर दिया। इसी प्रकार अक्टूबर-2013 में 8719 रुपये बैंक में जमा करवाए और अपने रिकार्ड में इसे 108719 दर्शा दिया। यानि सीधे एक लाख का गबन। नंबबर-13 में 9358 जमा किए और दर्शाए 89358, दिसंबर-13 में जमा करवाए 6641 और दर्शाए 106641। इसी प्रकार यह सिलसिला अप्रैल-2013 से लेकर जून-2017 तक चला।
आधा दर्जन ईओ की संलिप्तता?
63 लाख रुपये से अधिक के गबन के इस मामले में नगर परिषद के तत्कालीन आधा दर्जन कार्यकारी अधिकारियों (ईओ) की कथित संलिप्तता रहीं। इसलिए पूरे मामले को आज दो वर्ष का लंबा अंतराल बीतने पर भी दबाया गया है। आज तक किसी अधिकारी अथवा कर्मचारी के खिलाफ कोई मामला तक दर्ज नहीं किया गया। न जिला प्रशासन के स्तर पर और न ही सरकार के स्तरा पर। अचरज की बात तो यह है कि जीएसटी विभाग भी लाखों की इस चोरी के मामले में आज तक मौन साधे हुए है। दरअसल, नगर परिषद को टैक्स की अदायगी करने के लिए नगद निकासी की जरूरत ही नहीं थी। पंजाब नेशनल बैंक में नगर परिषद का खाता है। बैंक के नाम चैक काटकर दिया जा सकता था और बैंक चैक के आधार पर चालान जमा कर देता। ऐसे में गबन की कोई गुंजाइश ही शेष नहीं रहती। मगर, किया क्या गया? ईओ के हस्ताक्षरित चैक से पीएनबी से नगदी की निकासी की गई? नगदी को चालान जमा करवाने के लिए फिर पीएनबी में जमा करवाया गया। इस चालान में छेड़छाड़ की गई और 63 लाख रुपये का गबन हुआ। यह जांच का विषय है कि अप्रैल 2013 से जून-2017 की अवधि में कार्यरत रहें ईओ ने बैंक से कैश निकलवाकर कैश से ही चालान भरने में रूचि क्यों दर्शाई? यह भी कैसे संभव हो सकता है कि नगर परिषद के कैशियर स्तर के कर्मचारी अथवा बाहरी व्यक्ति 63 लाख रुपये का गबन कर जाए? यह भी कैसे संभव है कि लगभग सवा चार साल तक गबन का सिलसिला चलता रहें और ईओ स्तर के अधिकारी इससे अनभिज्ञ रहें। नगर परिषद के कार्यकारी अधिकारियों की कथित संलिप्तता की वजह से ही मामला हाई प्रोफाइल हो गया और आज तक उसे दबाया गया है। अन्यथा कैशियर स्तर के कर्मचारियों को कब का मसल दिया गया होता?
आरटीआई पर भी पड़ी है बर्फ
चत्तरगढ़पट्टी निवासी आरटीआई एक्टिविस्ट इंद्रजीत अधिकारी की ओर से नगर परिषद के इस घोटाले में संलिप्त लोगों को अंजाम तक पहुंचाने के लिए आरटीआई का सहारा लिया गया। लेकिन दो वर्षों से आरटीआई भी ठंडे बस्ते में डाल दी गई है। उनकी ओर से नगर परिषद के कार्यकारी अधिकारी से सूचना मांगी गई थी। जीएसटी चोरी के मामले में अनेक जानकारी मांगी गई थी। नगर परिषद ने कोई सूचना प्रदान नहीं की। इंद्रजीत की ओर से प्रथम अपीलीय अधिकारी-सह-नगराधीश के समक्ष अपील की गई। वर्ष-2019 में नगराधीश ने नगर परिषद को मांगी गई सूचना प्रदान करने के आदेश दिए। मगर, नगर परिषद ने कोई सूचना प्रदान नहीं की। मामले में राज्य सूचना आयोग में दिसंबर-2019 द्वितीय अपील दाखिल की। मामले में दो मार्च 2020 का दिन तय किया गया। लेकिन कोविड-19 की वजह से सुनवाई टाल दी गई। अब मामले की सुनवाई के लिए 9 अप्रैल 2021 का दिन तय किया गया है। राज्य सूचना आयुक्त जय सिंह बिश्नोई मामले की सुनवाई करेंगे। यानि सूचना आयोग में मामले की सुनवाई के लिए 13 माह बाद का समय दिया गया है।
इन्हें भेजा गया था नोटिस
माल और सेवाकर (जीएसटी) विभाग के आसूचना महानिदेशालय की ओर से 5 अक्टूबर 2018 को जो नोटिस भेजा गया था उसमें नगर परिषद को पार्टी बनाया गया था। यानि नगर परिषद की ओर से ईओ, राजेंद्र मिढ़ा, तत्कालीन अकाऊंटेंट केसरी सिंह, तत्कालीन कैशियर बृजलाल, तत्कालीन कैशियर नरेश कुमार को नोटिस दिया गया था। इनमें राजेंद्र मिढ़ा नगर परिषद के कर्मचारी अथवा अधिकारी नहीं है। नगर परिषद द्वारा उसे सीए के रूप में दर्शाया गया था और जीएसटी भरने के लिए उसकी सेवाएं ली गई थी।
कैसे खेला गया था खेल
दरअसल, नगर परिषद द्वारा किराएदारों से हर माह जो किराया वसूला जाता है, उस राशि पर देय टैक्स को सरकारी खजाने में जमा करवाना होता है। नगर परिषद सिरसा का रोड़ी बाजार स्थित पंजाब नेशनल बैंक की मुख्य शाखा में खाता है। नगर परिषद के तत्कालीन ईओ द्वारा इस बैंक खाते से टैक्स की अदायगी के लिए नगदी की निकासी की जाती थी। उस नगदी को टैक्स के रूप में जमा करवाने के लिए सुपुर्द किया जाता था। पीएनबी में ही चालान जमा करवाया जाता था। बैंक से प्राप्त चालान कापी में सुनियोजित ढंग से छेड़छाड़ करके अधिक राशि अंकित कर दी जाती और उसे नगर परिषद के रिकार्ड में दर्शा दिया जाता। यानि नगर परिषद का रिकार्ड यह बताता कि टैक्स के रूप में एक लाख 2 हजार 67 रुपये जमा करवा दिए गए है। जबकि बैंक में महज 2067 रुपये ही जमा करवाए जाते थे। यह सिलसिला अप्रैल-2013 से शुरू हुआ और मामले का भंडाफोड़ होने तक यानि जून-2017 तक चला। इस अवधि में 72 लाख 84 हजार 398 रुपये टैक्स के रूप में अदा किए जाने थे, जबकि नगर परिषद के अधिकारियों व कर्मचारियों ने महज 9 लाख 77 हजार 599 रुपये ही जमा करवाए और 63 लाख 23 हजार 244 रुपये का गबन कर डाला।
ऐसे पकड़ में आया गबन
नगर परिषद द्वारा टैक्स के रूप में लगातार कम राशि जमा करवाने और मई-2015 के बाद तो टैक्स के रूप में शून्य टैक्स की अदायगी की वजह से जीएसटी विभाग सक्रिय हुआ। विभाग की ओर से पड़ताल की गई और इस बारे में नगर परिषद के अधिकारियों से जवाब तलबी की। पूछा गया कि आखिर जीएसटी की अदायगी क्यों नहीं की जा रही। नगर परिषद के अधिकारियों ने कोई जवाब नहीं दिया। जिस पर जीएसटी की विजिलेंस टीम ने सिरसा नगर परिषद का दौरा किया। यह जांचने की कोशिश की कि क्या नगर परिषद की आय के स्त्रोत सूख गए है? क्या किराया आना बंद हो गया है? यदि किराया आ रहा है तब जीएसटी को अदा नहीं किया जा रहा? जब जीएसटी विभाग की विजिलेंस ने मामले की तहकीकात की तब इसका खुलासा हुआ।
पीएनबी पर फोडऩा चाहा था ठीकरा
नगर परिषद सिरसा के भ्रष्ट अधिकारियों व कर्मचारियों ने टैक्स चोरी के मामले में ठीकरा पीएनबी पर फोडऩे की कोशिश की थी। चूंकि नगर परिषद का रिकार्ड दर्शा रहा था कि पूरा टैक्स अदा कर दिया गया है। कर्मियों की ओर से बकायदा बैंक के चालान सबूत के रूप में पेश किए गए। यह चालान पंजाब नेशनल बैंक के थे। उधर, जीएसटी विभाग के खातों में नगर परिषद की मामूली राशि ही जमा हुई थी। ऐसे में जीएसटी विभाग के जांच अधिकारी भी चकरा गए। विचार किया गया कि जब पीएनबी ने पूरी राशि की वसूली का चालान दिया है, तब खजाने में पूरी राशि जमा क्यों नहीं हुई? बाद में जीएसटी विभाग की टीम ने बैंक से पूछताछ की और बैंक के चालान की जांच की। जांच में पाया कि बैंक के पास चालान कापी में रकम कम थी, जबकि नगर परिषद के पास चालान कॉपी में अधिक रकम दर्शा रखी थी। जांच में यह सामने आया कि जुलाई-2013 में बैंक में 8101 रुपये की राशि जमा की गई। बैंक ने इसका चालान जारी कर दिया। नगर परिषद के भ्रष्ट कर्मियों ने बैंक के इस चालान राशि 8101 के आगे 9 अंकित करके इसे 98101 कर दिया। यानि 8 हजार एक सौ एक रुपये की जगह उसे 98 हजार एक सौ एक बना दिया और सीधे-सीधे 90 हजार रुपये का गबन कर दिया। इसी प्रकार अक्टूबर-2013 में 8719 रुपये बैंक में जमा करवाए और अपने रिकार्ड में इसे 108719 दर्शा दिया। यानि सीधे एक लाख का गबन। नंबबर-13 में 9358 जमा किए और दर्शाए 89358, दिसंबर-13 में जमा करवाए 6641 और दर्शाए 106641। इसी प्रकार यह सिलसिला अप्रैल-2013 से लेकर जून-2017 तक चला।
आधा दर्जन ईओ की संलिप्तता?
63 लाख रुपये से अधिक के गबन के इस मामले में नगर परिषद के तत्कालीन आधा दर्जन कार्यकारी अधिकारियों (ईओ) की कथित संलिप्तता रहीं। इसलिए पूरे मामले को आज दो वर्ष का लंबा अंतराल बीतने पर भी दबाया गया है। आज तक किसी अधिकारी अथवा कर्मचारी के खिलाफ कोई मामला तक दर्ज नहीं किया गया। न जिला प्रशासन के स्तर पर और न ही सरकार के स्तरा पर। अचरज की बात तो यह है कि जीएसटी विभाग भी लाखों की इस चोरी के मामले में आज तक मौन साधे हुए है। दरअसल, नगर परिषद को टैक्स की अदायगी करने के लिए नगद निकासी की जरूरत ही नहीं थी। पंजाब नेशनल बैंक में नगर परिषद का खाता है। बैंक के नाम चैक काटकर दिया जा सकता था और बैंक चैक के आधार पर चालान जमा कर देता। ऐसे में गबन की कोई गुंजाइश ही शेष नहीं रहती। मगर, किया क्या गया? ईओ के हस्ताक्षरित चैक से पीएनबी से नगदी की निकासी की गई? नगदी को चालान जमा करवाने के लिए फिर पीएनबी में जमा करवाया गया। इस चालान में छेड़छाड़ की गई और 63 लाख रुपये का गबन हुआ। यह जांच का विषय है कि अप्रैल 2013 से जून-2017 की अवधि में कार्यरत रहें ईओ ने बैंक से कैश निकलवाकर कैश से ही चालान भरने में रूचि क्यों दर्शाई? यह भी कैसे संभव हो सकता है कि नगर परिषद के कैशियर स्तर के कर्मचारी अथवा बाहरी व्यक्ति 63 लाख रुपये का गबन कर जाए? यह भी कैसे संभव है कि लगभग सवा चार साल तक गबन का सिलसिला चलता रहें और ईओ स्तर के अधिकारी इससे अनभिज्ञ रहें। नगर परिषद के कार्यकारी अधिकारियों की कथित संलिप्तता की वजह से ही मामला हाई प्रोफाइल हो गया और आज तक उसे दबाया गया है। अन्यथा कैशियर स्तर के कर्मचारियों को कब का मसल दिया गया होता?
आरटीआई पर भी पड़ी है बर्फ
चत्तरगढ़पट्टी निवासी आरटीआई एक्टिविस्ट इंद्रजीत अधिकारी की ओर से नगर परिषद के इस घोटाले में संलिप्त लोगों को अंजाम तक पहुंचाने के लिए आरटीआई का सहारा लिया गया। लेकिन दो वर्षों से आरटीआई भी ठंडे बस्ते में डाल दी गई है। उनकी ओर से नगर परिषद के कार्यकारी अधिकारी से सूचना मांगी गई थी। जीएसटी चोरी के मामले में अनेक जानकारी मांगी गई थी। नगर परिषद ने कोई सूचना प्रदान नहीं की। इंद्रजीत की ओर से प्रथम अपीलीय अधिकारी-सह-नगराधीश के समक्ष अपील की गई। वर्ष-2019 में नगराधीश ने नगर परिषद को मांगी गई सूचना प्रदान करने के आदेश दिए। मगर, नगर परिषद ने कोई सूचना प्रदान नहीं की। मामले में राज्य सूचना आयोग में दिसंबर-2019 द्वितीय अपील दाखिल की। मामले में दो मार्च 2020 का दिन तय किया गया। लेकिन कोविड-19 की वजह से सुनवाई टाल दी गई। अब मामले की सुनवाई के लिए 9 अप्रैल 2021 का दिन तय किया गया है। राज्य सूचना आयुक्त जय सिंह बिश्नोई मामले की सुनवाई करेंगे। यानि सूचना आयोग में मामले की सुनवाई के लिए 13 माह बाद का समय दिया गया है।
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नगर परिषद में 63 लाख की जीएसटी चोरी मामले में दो साल बाद भी कार्रवाई का इंतजार
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क्या डबवाली में BJP की इस गलती को नजर अंदाज किया जा सकता है,आखिर प्रशासन ने क्यों नहीं की कार्रवाई
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