मंदी : राइस शैलर की धीमी रफ्तार,40 में से महज 15 ने पकड़ी रफ्तार, माल स्टॉक करने में जुटे शैलर

डबवाली न्यूज़ डेस्क
कृषि प्रधान सिरसा जिला में कृषि आधारित ही कारखाने संचालित है, जिनमें मुख्य रूप से राइस शैलर शुमार है। लेकिन वर्तमान हालात में इनकी हालत भी अधिक मजबूत नहीं है। दीपावली से पहले ही राइस शैलर रफ्तार पकड़ लेते थे, लेकिन इस बार त्यौहार बीत जाने पर भी महज एक तिहाई राइस शैलर शुरू हो पाए है। दो-तिहाई का तो शुरू होना ही शेष है। जानकारी के अनुसार जिला में और आसपास के एरिया में धान का उत्पादन होने की वजह से लगभग 40 राइस शैलर संचालित किए जा रहे है। लेकिन इनमें से अब तक 15 ही शुरू हो सकें है। इनमें भी सैला (बासमती) किस्म के धान वाले कारखाने ही शुमार है। सिरसा शहरी एरिया में 8 राइस मिल है, जबकि रानियां में 5 कारखाने है। इनमें से 4 कारखाने चालू हो चुके है। डबवाली और कालांवाली एरिया में 9-9 कारखाने है, जिनमें से एक भी शुरू नहीं हुआ है। इसी प्रकार जीवननगर में दो कारखाने है और इनमें से एक ही शुरू हुआ है। रोड़ी में तीन कारखाने है और दो ही शुरू हुए है। ऐलनाबाद में आधा दर्जन राइस शैलर है, इनमें से एक भी शुरू नहीं हुआ है। सिरसा जिला में राइस शैलर आर्थिक धुरी का केंद्र है। चूंकि इन राइस शैलर के संचालित होने से ही किसानों को उनकी उपज का समुचित मूल्य प्राप्त हो पाता है। बढिय़ा क्वालिटी के लिए अधिक कीमत प्राप्त हो पाती है और उनकी उपज को घर-द्वार पर ही खरीददार मिल पाते है। अन्यथा उन्हें अपनी उपज बेचने में दिक्कत आती। शैलर मालिकों को क्षेत्र में धान के उत्पादन की वजह से कच्चा माल प्राप्त होता है। इसलिए इस एरिया में राइस शैलर का भविष्य बना हुआ है। मगर, मंदी की मार इस सेक्टर पर भी दिखाई देती है। जहां राइस शैलर का संचालन करना महंगा होने लगा है, वहीं अनेक प्रकार की औपचारिकताओं ने व्यापारियों को बांध दिया है। सूत्र बताते है कि नोटबंदी के कारण भी व्यापार का संचालन कठिन हुआ है। चंूकि इस कारोबार में उचंति खरीद की अधिक भरमार होती है। किसान से सीधे धान खरीदकर माल इकट्ठा किया जाता है और चावल को भी दो नंबर में ही आगे बेचा जाता है। लेकिन नोटबंदी के कारण दो नंबर के पैसे पर अंकुश लग गया। एक नंबर में काम करने पर मुनाफा नगण्य रह जाता है। ऐसे में कारोबारियों का राइस शैलर से मोहभंग भी होने लगा है। इसके अलावा सरकार द्वारा लादी गई अनेक औपचारिकताएं भी कारोबारियों के लिए सिरदर्द बनी हुई है। हालांकि करोड़ों रुपये का निवेश करने वाले कारोबारी धीमी गति से ही सही कारोबार को गति देने की कोशिश कर रहे है।
सख्त नियम और भ्रष्टाचार हावी
राइस शैलर के कारोबार के मंदा होने की एक वजह सरकार के सख्त नियम है। इसके अलावा सरकारी विभागों में व्याप्त भ्रष्टाचार भी है। दरअसल, सरकार की ओर से राइस शैलर को हर वर्ष धान देकर चावल निकलवाया जाता है। बदले में राइस शैलर को मेहनताना अदा किया जाता है। लेकिन सरकार द्वारा चावल वापस लेते समय अनेक प्रकार के नियम-कायदे लागू कर दिए जाते है। जिसमें चावल के दाने का डैमेज होना, उसके रंग में बदलाव, चावल में माऊश्चर की मात्रा की शर्त लगा दी जाती है। इन शर्तों पर खरा उतरना मुश्किल होता है। तमाम शर्तों को पूरा करने पर भी सूत्रों के अनुसार व्यापारियों से मोटी रिश्वत की मांग की जाती है। रिश्वत न देने पर लॉट ही रिजेक्ट कर दिया जाता है। ऐसे में व्यापारियों के लिए यह अधिक मुनाफे का कारोबार नहीं बन पाता।
हजारों परिवार को मिलता है रोजगार
राइस शैलर प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से हजारों परिवारों को रोजगार प्रदान करते है। राइस शैलर की वजह से ही किसान धान का उत्पादन करता है, यदि उसकी उपज का खरीददार नहीं होगा, तब वह फसल ही नहीं बोएगा। राइस शैलर के संचालन के लिए सैकड़ों लोगों की प्रत्यक्ष रूप से आवश्यकता पड़ती है। इस कार्य के लिए भारी भरकम मशीनरी की आश्यकता होती है, जिसके संचालन के लिए विशेष कारीगरों की जरूरत होती है। धान से निकलने वाले चावल और छिलका तक की बिक्री के कार्य में हजारों लोगों को रोजगार प्राप्त होता है। यानि राइस शैलर क्षेत्र की आर्थिक धुरी में अपना अहम योगदान अदा कर रहे है।

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