15 हजार क्विंटल गेहूं घोटाले का मामला गबन राशि से खरीदी बेनामी संपत्तियां!

Dabwalinews.com 
करोड़ों रुपये के गेहूं घोटाले से खाद्य एवं आपूर्ति विभाग सिरसा के अधिकारियों द्वारा बेनामी संपत्तियां बनाई गई।
किसी ने कई एकड़ कृषि भूमि खरीदी और किसी ने दूसरे शहरों में प्रोपर्टी में निवेश किया। कुछ ने महंगी गाडिय़ां खरीदने का शौक पूरा किया। मामले में अब तक पुलिस की ओर से विभाग के आधा दर्जन अधिकारियों व तीन डिपू होल्डरों को गिरफ्तार किया जा चुका है। बाकी आरोपियों की धरपकड़ के लिए प्रयास किए जा रहे है। पुलिस गिरफ्त से बचने के लिए कुछेक ने अग्रिम जमानत हासिल करने के लिए प्रयास शुरू कर दिए है।वर्णनीय है कि वर्ष 2015-16 के दौरान विभागीय अधिकारियों ने बड़े ही सुनियोजित तरीके से 15 हजार क्विंटल गेहूं घोटाले को अंजाम दिया। तत्कालीन डीएफएससी अशोक बांसल की शिकायत पर वर्ष 2017 में 4 डीएफएससी, 2 एएफएसओ और 6 इंस्पेक्टर सहित 58 डिपू होल्डरों के खिलाफ 15 हजार क्विंटल गेहूं के गबन का मामला दर्ज किया गया था। जिला पुलिस ने 9 दिसंबर को कार्रवाई करते हुए सहायक खाद्य एवं आपूर्ति अधिकारी नरेंद्र सरदाना, एएफएसओ जगतपाल, संजीव कुंडू, सेवानिवृत्त अशोक कुमार, कान्फेड के स्टोर कीपर रविंद्र कुमार व सेवानिवृत्त स्टोर कीपर महेंद्र मेहता को गिरफ्तार किया था। इसके बाद 21 दिसंबर को डिपू होल्डर नरेश सैनी, उसके भाई गोपी सैनी व विजय को गिरफ्तार किया है। 
सूत्रों के अनुसार लगभग तीन करोड़ के इस घोटाले में विभागीय अधिकारियों की ओर से गबन राशि से बेनामी संपत्ति अर्जित की गई। बताया जाता है कि एक अधिकारी की ओर से ओढां खंड के एक गांव में पिछले वर्ष 6 एकड़ कृषि भूमि अपनी पत्नी के नाम से खरीदी गई। इसके साथ ही राजस्थान में भी लाखों रुपये कीमत की प्रोपर्टी की खरीद की है। इसी प्रकार न्यायिक हिरासत में जेल में कैद एक अधिकारी द्वारा दूसरे शहरों में बेनामी संपत्ति अर्जित की गई। इसके साथ ही कुछेक अधिकारियों ने महंगी गाडिय़ां खरीदी गई है। 
मामले में यदि पुलिस की ओर से जब इस पहलू की भी जांच की जाएगी कि किन अधिकारियों ने पिछले वर्षों में चल-अचल संपत्ति अर्जित की है, तब बड़ा खुलासा हो पाएगा। इसके साथ ही पुलिस को मामले में गबन राशि की रिकवरी करने में भी आसानी हो पाएगी। 
फर्जी राशनकार्ड बनें विभाग के गले की फांस
खाद्य एवं आपूर्ति विभाग द्वारा साहुवाला-प्रथम के डिपू होल्डर मुकेश कुमार के खिलाफ वष 2018 में फर्जी राशनकार्ड बनाने का मामला दर्ज करवाया गया। हालांकि यह मामला अभी तक सिरे नहीं चढ़ा है। लेकिन माममा विभागीय अधिकारियों के गले में फांस बन गया है। क्योंकि राशनकार्ड बनाने का कार्य विभागीय अधिकारियों द्वारा ही किया जाता है। ऐसे में डिपू होल्डर पर फर्जी राशनकार्ड बनाने के आरोप में अधिकारियों की गर्दन भी फंसती है। बताया तो यह जाता है कि डिपू होल्डर मुकेश कुमार को पहले से बने राशनकार्डों के आधार पर ही डिपू अलॉट किया गया था। ऐसे में सवाल यह है कि डिपू होल्डर मुकेश कुमार से पहले डिपू का संचालन करने वाले को कथित फर्जी राशनकार्ड किसने बनाकर दिए? और फर्जी राशनकार्ड पर विभाग ने राशन अलॉट क्यों किया?
मामले में एक ओर पेंच यह भी बताया जाता है कि साहुवाला-प्रथम के जिस डिपू होल्डर मुकेश को गेहूं गबन मामले में आरोपी बनाया गया है, उसके डिपू संबंधी दस्तावेज ही कार्यालय से गायब है। विभाग से जो 17 फाइले गायब बताई जाती है, उनमें एक फाइल मुकेश कुमार से संबंधित है। सूचना आयोग हरियाणा के आदेश के बावजूद विभागीय अधिकारी आज तक पुलिस में इन गायब फाइलों की गुमशुदगी अथवा चोरी होने की शिकायत तक दर्ज नहीं करवा सकें। 
यूनिट में धांधली का मामला अब तक लंबित 
गेहूं घोटाला करने के लिए विभागीय अधिकारियों ने पीले यानि बीपीएल कार्ड धारकों को गुलाबी यानि अन्त्योदय (एएवाई)बना डाला। विभाग की ओर से पीले राशनकार्ड धारक को प्रति सदस्य 5 किलो गेहूं दी जाती है, जबकि गुलाबी राशनकार्ड धारक को 35 किलो गेहूं प्रति परिवार। पीले कार्डधारकों को उनके परिवार के सदस्यों के अनुसार ही गेहूं वितरित की गई लेकिन रिकार्ड में एक परिवार को 35 किलो गेहूं जारी दर्शा दी। इस मामले में विभाग की ओर से कालांवाली में तथा सिरसा में तत्कालीन एएफएसओ नरेंद्र सरदाना और जगतपाल के खिलाफ मामला भी दर्ज करवाया गया। दोनों को विभाग ने निलंबित भी कर दिया। लेकिन पुलिस जांच पूरी होने तक उन्हें पुन: बहाल कर दिया गया। यह मामला आजतक लंबित है।
तेल घोटाले से जुड़े कईयों के तार
अब तक गेहूं घोटाले को लेकर ही जांच पड़ताल चल रही है। लेकिन जब मिट्टी के तेल में किए गए घोटाले की जांच की जाएगी, तब इसमें कई अन्य चेहरे भी बेनकाब होंगे। दरअसल, विभागीय अधिकारियों ने बड़े शातिराना अंदाज से लाखों लीटर मिट्टी का तेल हर माह डकारा। कागजों में इसे गरीब परिवारों को वितरित किया जाना दर्शाया गया, जबकि इसे मार्केट में बेच डाला गया। ऐसे में जब जांच मिट्टी के तेल की ओर घूमेगी, तब विभाग के अन्य अधिकारियों और इसमें संलिप्त अन्य लोगों की गर्दन भी फंसना माना जा रहा है!

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