क्यूआर कोड में सेंधमारी का मामला,जांच के घेरे में एसडीएम कार्यालय व रेडक्रास सोसायटी!

डबवाली न्यूज़ डेस्क 
ड्राइविंग लाईसेंस के लिए आवश्यक ट्रेनिंग सर्टिफिकेट के क्यूआर कोड में किए गए फर्जीबाड़े के मामले में शक की सुईयां एसडीएम कार्यालय और रेडक्रास सोसायटी की ओर घूमनी शुरू हो गई है। दोनों ही विभागों को जांच के घेरे में लिया गया है। फिलहाल आंतरिक स्तर पर की जा रही है। जबकि मामला पुलिस में दिए जाने पर ही इस मामले के सरगनाओं और गिरोह का पर्दाफाश हो पाएगा। प्रांरभिक जांच में सैकड़ों मामले तस्दीक हो चुके बताए जाते है। वर्णनीय है कि जिला में ड्राइविंग लाईसेंस के लिए पहले ट्रेनिंग सर्टिफिकेट लेना अनिवार्य किया गया है। ड्राइविंग लाईसेंस के लिए आवेदन करने वाले को पहले इसकी ट्रेनिंग लेने होगी। ट्रेनिंग जिला रेडक्रास सोसायटी द्वारा रानियां बाजार स्थित अपने पुराने कार्यालय भवन में दी जाती है। सोसायटी के प्रशिक्षण अधिकारी द्वारा प्रशिक्षणार्थियों को ट्रेनिंग दी जाती है। प्रशासन की ओर से रेडक्रास से ट्रेनिंग की एवज में 300 रुपये फीस तय की गई है, जोकि ऑनलाइन ली जाती है। ड्राइविंग लाईसेंस के लिए आवेदन करने वाले को ट्रेनिंग सर्टिफिकेट जारी किया जाता है, जिस पर क्यूआर कोड अंकित किया जाता है, ताकि पूरे मामले में पारदर्शिता रहें। इसके माध्यम से वसूली गई फीस की जानकारी भी जुट जाती है। यही से खेल शुरू हुआ। किन्हीं लोगों ने क्यूआर कोड से छेडख़ानी करके एक आवेदक द्वारा भरी गई फीस के क्यूआर कोड को कई आवेदकों को जारी कर दिया और जिला रेडक्रास सोसायटी को सीधे-सीधे चपत लगाई। मामला जिला प्रशासन के संज्ञान में आ चुका है। मामले की आंतरिक जांच भी शुरू कर दी गई बताई जाती है। सूत्र बताते है कि प्रांरभिक जांच में सैकड़ों मामले तस्दीक भी किए जा चुके है, जिसमें फर्जी क्यूआर कोड अंकित किया गया है। बताया जाता है कि क्यूआर कोड में फर्जीबाड़ा करने वालों को चिह्नित करने का प्रयास किया जा रहा है। इस आशय की भी जांच की जा रही है कि पूरे मामले में एसडीएम कार्यालय और रेडक्रास सोसायटीज के अधिकारियों-कर्मचारियों की कितनी संलिप्तता है? क्योंकि बिना विभागीय मिलीभगत के इतने बड़े स्तर पर फर्जीबाड़ा संभव नहीं है?बताया जाता है कि आंतरिक जांच की ही वजह से एसडीएम कार्यालयों के साथ-साथ जिला रेडक्रास सोसायटीज में भी हड़कंप मचा हुआ है। मामले में संलिप्त अथवा लापरवाह अधिकारियों व कर्मचारियों को चिह्नित करने की कोशिश की जा रही है। जिसकी वजह से सिफारिशों का दौर भी शुरू हो गया है। कोशिश यह भी की जा रही है कि जितने मामले सामने आए है, उनकी क्षतिपूर्ति करके मामले को दबा दिया जाए। संभवत: इसलिए फर्जीबाड़ा सामने आने के बाद भी पुलिस में इस आशय की शिकायत नहीं की गई है। जानकार बताते है कि मामला पुलिस के पास पहुंचने पर छोटे कर्मचारियों के साथ-साथ बड़े अधिकारियों तक जांच की आंच पहुंच सकती है। इसलिए मामले को पुलिस के हवाले नहीं किया गया है। जबकि पारदर्शिता के लिए मामला पुलिस को सौंपा जाना ही चाहिए?

गिरोह का किया जाना चाहिए पर्दाफाश

जिला में जिन चार जगहों पर ड्राइविंग लाईसेंस बनाए जाते है, उन सभी जगहों पर एक समान धोखाधड़ी व फर्जीबाड़ा किया गया है। यानि किसी गिरोह ने पूरे सुनियोजित ढंग से क्यूआर कोड से छेडख़ानी करके ट्रेनिंग फीस की चोरी की है। चूंकि ड्राइविंग लाईसेंस एसडीएम कार्यालय द्वारा जारी किए जाते है और एसडीएम कार्यालय के कर्मचारियों व अधिकारियों की यह जिम्मेववारी बनती है कि वे जांच-परख कर ही कार्रवाई करें। ऐसे में किस स्तर पर लापरवाही की गई, यह जांच का विषय बना हुआ है? कहीं क्यूआर कोड से छेडख़ानी करने वालों की एसडीएम कार्यालय में तो किसी प्रकार की सेटिंग नहीं है, यह भी जांच का विषय बना हुआ है। कुल मिलाकर इस गिरोह के पर्दाफाश किए जाने की नितांत आवश्यकता है और दोषियों को सलाखों के पीछे भेजना ही न्यायसंगत है। भले ही इसमें कितने ही प्रभावशाली लोगों की संलिप्तता क्यों न हों?

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