Join Us On What'apps 09416682080

?? Dabwali ????? ?? ???? ????, ?? ?? ?? ??? ???? ??????? ???? ?? ??? ?? ??????? ?? ?????????? ?? ?? ??????, ?? ????? ?? ???? ???????? ???? ???? dblnews07@gmail.com ?? ???? ??????? ???? ?????? ????? ????? ?? ????? ?????????? ?? ???? ???? ??? ?? ???? ?????? ????? ???? ????? ??? ?? 9416682080 ?? ???-??, ????-?? ?? ?????? ?? ???? ??? 9354500786 ??

Trending

3/recent/ticker-posts

Labels

Categories

Tags

Most Popular

Contact US

Powered by Blogger.

DO YOU WANT TO EARN WHILE ON NET,THEN CLICK BELOW

Subscribe via email

times deal

READ IN YOUR LANGUAGE

IMPORTANT TELEPHONE NUMBERS

times job

Blog Archive

टाईटल यंग फ्लेम ही क्यूं?

Business

Just Enjoy It

Latest News Updates

Followers

Followers

Subscribe

Lorem Ipsum is simply dummy text of the printing and typesetting industry. Lorem Ipsum has been the industry's.

Pages

Most Popular

फल उत्कृष्टता केंद्र मांगेआना में नींबू वर्गीय फसलों पर कैनोपी प्रबंधन प्रशिक्षण की हुई शुरुआत
मसाज सेंटर पर पुलिस का छापा ,पंजाब पुलिसकर्मी समेत चार दबोचे
 महिला थाना डबवाली ने दहेज उत्पीड़न मामले में आरोपी को किया शामिल जांच
सीआईए डबवाली स्टाफ टीम ने 15 बोतल नाजायज शराब हथकड़ सहित एक युवक को किया काबू
एएनसी स्टाफ की बड़ी  कार्यवाही,आरोपी 1,25,000 रूपये की 34.62 ग्राम  हेरोइन ( चिट्टा) सहित काबू
सीआईए डबवाली की अवैध नशा तस्करों के खिलाफ बड़ी कार्रवाई ,11 किलो 90 ग्राम डोडा चुरा पोस्त सहित एक को धरा
माल्टा वीजा धोखाधड़ी: तीन आरोपी काबू, ₹2.35 लाख बरामद
SP ने बैंक अधिकारियों, ज्वैलर्स शॉप व पेट्रोल पंप संचालकों की बैठक लेकर सुरक्षा के पुख्ता प्रबंध करने बारे दिए आवश्यक दिशा निर्देश
ग्रामीण सफाई कर्मचारियों ने बिज्जुवाली की एससी चौपाल में प्रधान प्रेम कुमार की अध्यक्षता में बैठक कर विचार विमर्श किया,बैठक में सफाई कर्मचारियों का वेतन बढ़ाने के ऐलान के लिए मुख्यमंत्री का धन्यवाद भी किया
CIA डबवाली की बड़ी कार्यवाही  अन्तर्राजीय लूट के गिरोह का भंडाफोड़ गांव खाई शेरगढ़ की लूट सुलझी  लूट की वारदात को सुलझाते हुए एक आरोपी काबू

Popular Posts

Secondary Menu
recent
Breaking news

Featured

Haryana

Dabwali

Dabwali

health

[health][bsummary]

sports

[sports][bigposts]

entertainment

[entertainment][twocolumns]

Comments

#Redfort - पर झंडा फहराने को लेकर दुनिया भर के अख़बारों में क्या छपा आइए डालते है एक नजर




इमेज स्रोत,REUTERS

न्यूयॉर्क टाइम्स ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राजधानी दिल्ली में एक ओर जहां सेना की भव्य परेड देख रहे थे, वहां से कुछ ही मील की दूरी पर शहर के अलग-अलग हिस्सों में अफ़रा-तफ़री की तस्वीरें नज़र आ रही थीं.


रिपोर्ट में लिखा है कि अधिकतर किसानों के पास लंबी तलवारें, तेज़धार ख़ंजर और जंग में इस्तेमाल होने वाली कुल्हाड़िया थीं जो उनके पारंपरिक हथियार हैं. किसानों ने उस लाल क़िले पर चढ़ाई की जो एक ज़माने में मुग़ल शासकों की रिहाइश रहा है.


कई जगहों पर दृश्य ऐसे थे जहां एक तरफ़ पुलिस राइफ़ल ताने खड़ी थी और दूसरी ओर किसानों का हुजूम था. ज़्यादातर किसान पहले से तयशुदा रास्तों पर चल रहे थे, लेकिन कुछ किसान अपने ट्रैक्टरों के साथ सुप्रीम कोर्ट के रास्ते पर बढ़े, जिन्हें पुलिस ने आंसू गैस के कई गोले दाग़कर रोका.


रिपोर्ट में उत्तर प्रदेश से आए हैप्पी शर्मा को ये कहते हुए उद्धृत किया गया है कि "एक बार हम दिल्ली के भीतर आ गए तो फिर हम तब तक कहीं नहीं जाने वाले, जब तक कि मोदी उन क़ानूनों को वापस नहीं ले लेते."


वहीं किसान आंदोलन के नेताओं में से एक बलवीर सिंह राजेवाल के हवाले से इस रिपोर्ट में लिखा गया है, ''इस आंदोलन की पहचान रही है कि ये शांतिपूर्ण रहा है. सरकार अफ़वाह फैला रही है, एजेंसियों ने लोगों को गुमराह किया है. लेकिन यदि हम शांतिपूर्ण रहे तो हम जीतेंगे लेकिन हिंसक हुए तो जीत मोदी की होगी.''


रिपोर्ट में इस बात को भी रेखांकित किया गया है कि केंद्र सरकार ने ट्रैक्टर मार्च को रोकने की भरसक कोशिश की, लेकिन वो इसमें नाकाम हुई, इससे पता चलता है कि किसानों के साथ जारी गतिरोध की जड़ें कितनी गहरी हैं. प्रधानमंत्री मोदी अपने राजनीतिक विपक्ष को एक तरह से तहस-नहस करने के बाद सबसे प्रभावशाली शख़्सियत बने, लेकिन किसानों ने उनकी ज़रा भी परवाह नहीं की है.


रिपोर्ट में कहा गया है कि राजधानी दिल्ली में मंगलवार को तनाव का माहौल था, जहां कुछ अधिकारियों ने ये दावा किया था कि प्रदर्शनकारियों में उग्रवादी तत्व शामिल हैं जो किसानों के दिल्ली में दाख़िल होने पर हिंसक हो जाएंगे.



इमेज स्रोत,EPA/RAJAT GUPTA
'मोदी अब हमें सुनेंगे'


ऑस्ट्रेलिया के सिडनी मॉर्निंग हेराल्ड में छपी ख़बर में कहा गया है कि हज़ारों किसान उस ऐतिहासिक लाल क़िले पर जा पहुंचे, जिसकी प्राचीर से प्रधानमंत्री मोदी साल में एक बार देश को संबोधित करते हैं.


ख़बर में पंजाब के 55 वर्षीय किसान सुखदेव सिंह के हवाले से कहा गया है, "मोदी अब हमें सुनेंगे, उन्हें अब हमें सुनना होगा.'' सुखदेव सिंह उन सैकड़ों किसानों में से एक थे जो ट्रैक्टर परेड के तय रास्ते से हटकर अलग रास्ते पर चल पड़े थे. इनमें से कुछ लोग घोड़ों पर भी सवार थे.


अख़बार ने दिल्ली के एक थिंक टैंक ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउँडेशन के विश्लेषक अंबर कुमार घोष के हवाले से लिखा है, "किसान संगठनों की पकड़ बड़ी मज़बूत है. उनके पास अपने जनसमर्थकों को सक्रिय करने के लिए संसाधन हैं और वे लंबे समय तक विरोध-प्रदर्शन कर सकते हैं. किसान संगठन अपने विरोध को केंद्रित रखने में काफी सफल रहे हैं."


ख़बर के मुताबिक, भारत की 1.3 अरब आबादी में लगभग आधी आबादी खेती-किसानी पर निर्भर है और एक अनुमान के मुताबिक, करीब 15 करोड़ किसान इस समय सरकार के लिए सिरदर्द बने हुए हैं.


अख़बार ने केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर का बयान याद दिलाया है जिसमें उन्होंने कहा था कि 'किसान अपनी ट्रैक्टर रैली के लिए 26 जनवरी के अलावा कोई दूसरा दिन चुन सकते थे.'



इमेज स्रोत,EPA/RAJAT GUPTA
'सुरक्षा इंतज़ामों को ठेंगा दिखाया'


अलजज़ीरा ने अपनी ख़बर की शुरुआत कुछ इस तरह की है- "भारत के हज़ारों किसानों ने नए कृषि क़ानूनों को वापस लेने की मांग करते हुए राजधानी में मुग़ल काल की इमारत लाल क़िले के परिसर पर एक तरह से धावा बोल दिया, हिंसक विरोध प्रदर्शनों में कम से कम एक व्यक्ति की मौत हुई."


ख़बर में कहा गया है कि "गणतंत्र दिवस की परेड के मद्देनज़र किए गए व्यापक सुरक्षा इंतज़ामों को ठेंगा दिखाते हुए प्रदर्शनकारी लाल क़िले में दाख़िल हुए, जहां सिख किसानों ने एक धार्मिक ध्वज भी लगाया.''


ख़बर में इस तथ्य की ओर ध्यान दिलाया गया है कि ये वही लाल क़िला है जहां भारत के प्रधानमंत्री हर साल 15 अगस्त को मनाए जाने वाले स्वतंत्रता दिवस के मौके पर तिरंगा फहराते हैं.


ख़बर के साथ प्रकाशित एक तस्वीर में दिखाया गया है कि सड़क पर एक शव है, जिसे तिरंगे से ढका गया है और उसके आसपास प्रदर्शनकारी बैठे हुए हैं. साथ ही एक पोस्टर का ज़िक्र किया गया है जिसमें लिखा है- "हम पीछे नहीं हटेंगे, हम जीतेंगे या मरेंगे."


ख़बर में 52 वर्षीय किसान वीरेंद्र भीरसिंह के हवाले से लिखा गया है, "पुलिस ने हमें रोकने की भरपूर कोशिश की, लेकिन रोक नहीं पाई." इसी तरह 73 साल के किसान गुरबचन सिंह के हवाले से लिखा गया है, "उन्होंने जो क़ानून बनाए हैं, हम उन्हें हटाकर रहेंगे."



इमेज स्रोत,REUTERS/DANISH SIDDIQUI
'लाल क़िले पर खालिस्तान का झंडा'


पाकिस्तान के अंग्रेज़ी अख़बार डॉन की ख़बर में कहा गया है कि ऐतिहासिक स्मारक लाल क़िले की एक मीनार पर कुछ प्रदर्शनकारियों ने खालिस्तान का झंडा लगा दिया.


ख़बर में कहा गया है कि "कृषि सुधारों का विरोध कर रहे हज़ारों किसान मंगलवार को बैरिकेड्ट हटाकर ऐतिहासिक लाल क़िले के परिसर में घुसे और वहां अपने झंडे लगा दिए.''


ख़बर में कहा गया है कि निजी ख़रीदारों की मदद करने वाले कृषि क़ानूनों से नाराज़ किसान दिल्ली के बाहर बीते दो महीने से डेरा डाले हुए हैं, जो साल 2014 में सत्ता में आने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है.


इस ख़बर के साथ डॉन ने कई तस्वीरें लगाई हैं जिनमें दिखाया गया है कि प्रदर्शनकारी रस्सी के सहारे लाल क़िले की मीनार पर चढ़कर झंडे लगा रहे हैं जहां एक प्रदर्शनकारी के हाथ में तलवार भी है.


कुछ तस्वीरों में किसानों को बैरिकेड्स हटाते दिखाया गया है जहां पुलिस उन पर आंसू गैस के गोले दाग़ रही है.



इमेज स्रोत,REUTERS/ADNAN ABIDI
'नरेंद्र मोदी के लिए बहुत बड़ी चुनौती'


सीएनएन ने अपनी ख़बर में कहा है कि एक ओर जहाँ सरकारी परेड आयोजन कोविड-19 की वजह से पहले जितना बड़ा नहीं था, वहीं दूसरी ओर किसानों ने गणतंत्र दिवस की परेड के दौरान ही अपना मार्च निकालने की योजना बनाई.


ख़बर में कहा गया है कि 'इतना बड़ा विरोध प्रदर्शन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए बहुत बड़ी चुनौती है.'


ख़बर में संयुक्त किसान मोर्चे के बयान के हवाले से कहा गया है कि ''असामाजिक तत्वों ने प्रदर्शन के दौरान घुसपैठ की, वरना आंदोलन शांतिपूर्ण ही रहा है.''


सीएनन का कहना है कि दशकों से भारत सरकार कुछ फसलों की कीमत को लेकर किसानों को गारंटी देती रही है, जिससे किसान अगली फसल के लिए निश्चिंत होकर अपना पैसा ख़र्च कर पाते थे. बीते साल सितंबर में मोदी सरकार ने जो नए कृषि क़ानून बनाए हैं, उसमें किसानों को अपनी फसल सीधे किसी को भी बेचने की आज़ादी दी गई है.


लेकिन किसानों का तर्क है कि ये नए क़ानून किसानों के बजाए कार्पोरेट्स के पक्ष में हैं. भारत में ये क़ानून इसलिए विवादों में रहे हैं क्योंकि देश की लगभग 58 प्रतिशत आबादी की आजीविका का प्राथमिक स्रोत खेती-किसानी है. ये वो वर्ग है जो सबसे बड़ा वोट बैंक है.



इमेज स्रोत,EPA/HARISH TYAGI
'हमारे पूर्वजों ने इस क़िले पर कई बार चढ़ाई की है'


गार्डियन के मुताबिक, "लाल क़िले की प्राचीर पर चढ़कर सिख धर्म का झंडा 'निशान साहिब' फहराने वाले पंजाब के किसान दिलजेंदर सिंह का कहना था कि हम बीते छह महीने से प्रदर्शन कर रहे हैं, लेकिन सरकार के कान पर जूं तक नहीं रेंगी. अतीत में हमारे पूर्वजों ने इस क़िले पर कई बार चढ़ाई की है. ये संदेश है सरकार के लिए कि अगर हमारी मांगें नहीं मानी गईं तो हम ऐसा दोबारा कर सकते हैं."


गार्डियन के मुताबिक, गुरदासपुर से आए 50 वर्षीय किसान जसपाल सिंह का कहना था कि "प्रदर्शनकारी किसानों को कोई डिगा नहीं सकता, इससे फ़र्क नहीं पड़ता कि मोदी सरकार कितना ज़ोर लगाती है, हम घुटने नहीं टेकने वाले. सरकार हिंसा कराने के लिए प्रदर्शनकारियों के बीच अपने लोगों को भेजकर किसानों को बदनाम करने की कोशिश कर रही है. लेकिन हम इस आंदोलन को शांतिपूर्वक आगे बढ़ाएंगे."


किसानों का कहना है कि उनकी हालत को दशकों से नज़रअंदाज़ किया गया है और जो बदलाव किया गया है, उसका मकसद खेती-किसानी में निजी निवेश को लाना है, इससे किसान बड़े कार्पोरेशंस की दया पर निर्भर हो जाएंगे.


गार्डियन ने इस ख़बर में पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह का भी ज़िक्र किया है, जो पहले किसानों के आंदोलन का समर्थन कर रहे थे. लेकिन लाल क़िले की घटना के बाद उन्होंने किसानों से दिल्ली खाली करने का आग्रह किया है.



इमेज स्रोत,EPA/HARISH TYAGI
मोदी की चुनौतियों की बानगी


कनाडा से प्रकाशित होने वाले अख़बार द स्टार ने इस ख़बर को छापते हुए लिखा है - 'मोदी को चुनौती देते हुए भारत के लाल किले में घुसे नाराज़ किसान'


द स्टार ने न्यूज़ एजेंसी एपी की ख़बर को छापा है जिसमें 72वें गणतंत्र दिवस के दिन दिल्ली में जो कुछ हुआ है, वो सब बयां किया है.


अख़बार में छपी ख़बर में पाँच लोगों के परिवार के साथ दिल्ली आने वाले सतपाल सिंह कहते हैं, "हम मोदी को अपनी ताकत दिखाना चाहते थे. हम आत्मसमर्पण नहीं करेंगे." वहीं, एक अन्य युवा मनजीत सिंह ने कहा, "हम जो चाहेंगे वो करेंगे. आप अपने क़ानूनों को हम पर नहीं थोप सकते."
Source Link - #Redfort - Let's see what is printed in newspapers around the world to hoist the flag

No comments:

IMPORTANT-------ATTENTION -- PLEASE

क्या डबवाली में BJP की इस गलती को नजर अंदाज किया जा सकता है,आखिर प्रशासन ने क्यों नहीं की कार्रवाई