8 माह से टाले जा रहे सिरसा क्लब के चुनाव जून-2020 में समाप्त हो चुका कार्यकारिणी का कार्यकाल, चुनाव में इतना विलंब क्यों?
Dabwalinews.com
देशभर में चुनावी प्रक्रिया जारी है। विभिन्न राज्यों में चुनावी रैलियां आयोजित की जा रही है। तमाम बंदिशें हटा ली गई है, लेकिन सिरसा क्लब के चुनाव का रास्ता आठ माह बाद भी प्रशस्त नहीं हुआ है। जून-2020 में समाप्त हुए कार्यकाल के बावजूद सिरसा क्लब में लोकतांत्रिक व्यवस्था की बहाली नहीं की जा रही, जिसके कारण इसके सदस्यों में रोष भड़क रहा है। रोष की वजह यह है कि सिरसा क्लब की कार्यकारिणी का तीन वर्ष का कार्यकाल जून-20 में समाप्त हो गया। किन्हीं परिस्थितियों में यदि चुनाव को टाला भी जाता, तो केवल सचिव को कार्यवाहक सचिव की जिम्मेवारी सौंपी जानी चाहिए थी। लेकिन सिरसा क्लब के मामले में तो पूरी कार्यकारिणी को ही विस्तार दे दिया गया। वर्णनीय है कि जिला उपायुक्त सिरसा क्लब के पदेन अध्यक्ष है, इसलिए अध्यक्ष को छोड़कर शेष पदाधिकारियों का चयन क्लब के सदस्यों द्वारा किया जाता है। तीन वर्ष पहले क्लब सदस्यों ने जिन्हें चुना था, उनका कार्यकाल आठ माह पहले समाप्त हो चुका है लेकिन वे आज भी पद पर बने हुए है और क्लब के मामलों के फैसले ले रहे है। अचरज की बात तो यह है कि सिरसा क्लब के सदस्यों में शहर के जानेमाने बुद्धिजीवी, व्यवसायी, वकील, डाक्टर, नेता सदस्य है। ऐसे लोगों के चुनाव के अधिकार को छीन लिया गया है। सिरसा क्लब के उत्थान और मामलों का निर्णय क्लब सदस्यों द्वारा निर्वाचित पदाधिकारियों द्वारा ही लिया जाना चाहिए। लेकिन जिला प्रशासन द्वारा चुनाव न करवाकर पूरी कार्यकारिणी को ही विस्तार दिए जाने से कार्यकाल पूरा कर चुके पदाधिकारी ही निर्णय ले रहे है, जोकि सदस्यों को नागवार गुजर रहा है।
क्लब के वरिष्ठ सदस्य सुरेश गोयल, नकुल मोहंता, राजेश मोहंता, संजीव कुमार, राजकुमार, अनिल जैन, अमर सिंह, प्रवीण नरूला व अन्य सदस्यों द्वारा जिला उपायुक्त से सिरसा क्लब के चुनाव करवाए जाने की मांग काफी समय पहले की जा चुकी है। इसके बावजूद क्लब सदस्यों की इस मांग को अनसुना कर दिया गया है। जिस प्रकार से मामले को लटकाया जा रहा है, उससे प्रशासन की मंशा पर सवालिया निशान लगने लगे है कि आखिर चुनाव टालने की वजह क्या है? प्रशासनिक अधिकारियों की इसमें क्या रूचि है? आखिर क्यों पूरी कार्यकारिणी को ही विस्तार दिया गया? आखिर वो कौन चहेता है, जिसे पद पर बैठाए रखने के लिए लोकतांत्रिक व्यवस्था को ताक पर धरा जा रहा है? जिस प्रकार के हालात बने हुए है, उससे सिरसा क्लब में भाईचारा बढऩे की बजाए दूरियां ही बढ़ेगी और इसके लिए जिला प्रशासन जिम्मेवार होगा? सिरसा क्लब के कामकाज में पारदर्शिता लाने के लिए क्लब सदस्यों द्वारा निर्वाचित पदाधिकारियों द्वारा ही निर्णय लिए जाने चाहिए, न कि थोंपे हुए पदाधिकारियों द्वारा। ऐसे में यदि जल्द ही मामले का पटाक्षेप नहीं किया गया, तो सिरसा क्लब का मामला विवादों में फंस जाएगा और इसमें जिला प्रशासन भी लपेटे में आएगा।
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