राज्यपाल के हस्तक्षेप से हरकत में आया प्रशासनिक तंत्र

सूचना आयोग के आदेश की भी नहीं की जा रही थी पालना, एसीएस ने उपायुक्त को दिए कार्रवाई के निर्देश
Dabwalinews.com
आखिरकार महामहिम राज्यपाल के समक्ष लगाई गई गुहार से प्रशासनिक तंत्र के तार झंकृत हुए। कीर्तीनगर की गली नंबर-दो निवासी मनोहर लाल जांगड़ा ने आरटीआई के एक मामले की पालना न होने पर राज्यपाल का द्वार खटखटाया था। राज्यपाल हरियाणा के सचिव की ओर से मामला हरियाणा सरकार के राजस्व एवं आपदा प्रबंधन विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव एवं वित्तायुक्त के पास पहुंचा। अतिरिक्त मुख्य सचिव (एसीएस) की ओर से मामले में जिला उपायुक्त को पत्र लिखकर कार्रवाई करने के निर्देश दिए गए है। कहा गया है कि राज्य सूचना आयोग के आदेश की पालना करवाकर अपीलार्थी मनोहर लाल जांगड़ा तथा सरकार को इस बारे अवगत करवाएं। मनोहर लाल जांगड़ा ने तहसील कार्यालय सिरसा से आरटीआई में मांगी गई सूचना दिलवाए जाने को लेकर राज्य सूचना आयोग में आरटीआई एक्टिविस्ट पवन पारिक एडवोकेट के माध्यम से अपील दाखिल की थी। सूचना आयोग ने श्री जांगड़ा के पक्ष में फैसला सुनाते हुए तहसीलदार सिरसा को वांछित सूचना प्रदान करने के निर्देश भी दिए। जांगड़ा ने राज्यपाल हरियाणा को लिखे पत्र में बताया कि तहसील कार्यालय द्वारा सूचना आयोग के आदेश के बावजूद उन्हें पिछले दो वर्षों में सूचना प्रदान नहीं की गई। उन्हें रिकार्ड का अवलोकन करवाने की बात कहकर परेशान किया गया। उन्हें सही व पूरी सूचना प्रदान न करके वरिष्ठ नागरिक को तंग किया जा रहा है। मामले में राज्यपाल हरियाणा द्वारा संज्ञान लिए जाने पर एसीएस ने उपायुक्त सिरसा को कार्रवाई करने के निर्देश दिए है, जिसके बाद तहसील कार्यालय से वांछित सूचना मिलने की उम्मीद जगी है।

क्या था मामला
 दरअसल, वर्ष 2007 में तत्कालीन उपायुक्त की ओर से लंबरदार की गवाही को गैर-जरूरी कर दिया गया था। प्रोपर्टी की खरीद-बेच के समय लंबरदार की गवाही की मांग की जाती है। उपायुक्त ने लंबरदार की अनुपलब्धता तथा गवाही की एवज में वसूली जाने वाली फीस के दृष्टिगत खरीद-बेच करने वालों के लिए दस्तावेज प्रस्तुत करने के लिए कहा गया था। जिसके तहत पासपोर्ट, वोटरकार्ड, राशनकार्ड तथा सरकारी महकमे द्वारा जारी आईडी कार्ड प्रस्तुत करने पर लंबरदार की गवाही की जरूरत नहीं थी। व्हीस्ल ब्लोअर मनोहर लाल जांगड़ा ने तत्कालीन उपायुक्त के इस आदेश को चैलेंज करते हुए आरटीआई का सहारा लिया था। उनकी ओर से कुछ वर्ष पूर्व आरटीआई में इस आशय की जानकारी मांगी। उन्हें सूचना नहीं मिली, जिस पर उन्होंने सूचना आयोग का द्वार खटखटाया। वर्ष 2018 में सूचना आयोग ने सूचना देने के आदेश दिए, मगर तहसील कार्यालय द्वारा उन्हें अब तक वांछित सूचना प्रदान नहीं की गई थी।

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