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आरटीआई का चाबुक :डीएफएससी सुरेंद्र सैनी को 25 हजार जुर्माना, डिप्टी डीईओ बूटाराम को 17750 रुपये का जुर्माना
Dabwalinews.com
आरटीआई का मखौल बनाने वालों पर राज्य सूचना आयोग ने अपने तेवर कड़े कर दिए है ताकि आरटीआई एक्टिविस्ट को समय पर सूचना दिलवाया जाना सुनिश्चित किया जा सकें। आरटीआई के एक मामले में निर्धारित समयावधि में सूचना उपलब्ध न करवाने पर आयोग ने सिरसा के जिला खाद्य एवं आपूर्ति नियंत्रक सुरेंद्र सैनी को 25 हजार रुपये जुर्माना ठोंका है। जुर्माने की राशि उनके वेतन से काटकर सरकारी खजाने में जमा करवाने के आदेश दिए गए है।
आरटीआई एक्टिविस्ट पवन पारिक एडवोकेट ने जिला खाद्य एवं आपूर्ति विभाग सिरसा से कुछ जानकारी मांगी थी। समय पर सूचना न मिलने पर उनकी ओर से आयोग में इस आशय की शिकायत की गई। मामले राज्य सूचना आयुक्त भूपेंद्र धर्माणी के पास पहुंचा। उन्होंने डीएफएससी को शोकॉज नोटिस भेजा। राज्य जनसूचना अधिकारी-सह-डीएफएससी सुरेंद्र सैनी की ओर से अपना पक्ष रखते हुए बिना विलंब सूचना प्रदान किए जाने का दावा किया। बताया गया कि कोरोना की वजह से सूचना देने में देरी हुई। यह भी कहा कि आवेदक का पता सही नहीं था, इसलिए सूचना देने में देरी हुई।सूचना आयुक्त भूपेंद्र धर्माणी ने अपने फैसले में डीएफएससी सुरेंद्र सैनी की दलीलों को खारिज कर दिया। क्योंकि उनके द्वारा आवेदक के जिस पते को अधूरा बताया गया था, बाद में उसी पते पर भेजी गई सूचना पवन पारिक को प्राप्त हुई। इसके साथ ही डीएफएससी आयोग केे समक्ष आशय का तथ्य भी नहीं रख पाए कि उनके द्वारा पहले आरटीआई का जवाब भेजा गया था, जोकि पता अधूरा होने के कारण डिलीवर नहीं हो सका। सूचना आयुक्त ने इसे सूचना देने में देरी माना और इसके लिए डीएफएससी सुरेंद्र सैनी पर 25 हजार रुपये जुर्माना लगाया। उन्हें निर्देश दिए गए है कि वे जुर्माने की राशि 15 अप्रैल 2021 तक सरकारी खजाने में जमा करवा दें। इसके साथ ही विभाग के डीडीओ को निर्देश दिए गए है कि यदि डीएफएससी द्वारा जुर्माना जमा नहीं करवाया जाता है, तब जुर्माने की राशि उनके वेतन से काटें। आयोग के इस फैसले से शायद सरकारी तंत्र को सबक मिल पाएगा।
2. डिप्टी डीईओ बूटाराम को 17750 रुपये का जुर्माना
राज्य सूचना आयुक्त ने सुनाया फैसला, कंगनपुर निवासी कर्मजीत की शिकायत पर दिया फैसला
शिक्षा विभाग के डिप्टी डीईओ (उप जिला शिक्षा अधिकारी) बूटाराम पर राज्य सूचना आयोग ने 17750 रुपये का जुर्माना ठोंका है। सूचना देने में 71 दिन की देरी का उन्हें दोषी करार दिया गया है। गांव कंगनपुर निवासी सोशल वर्कर एक्टिविस्ट कर्मजीत सिंह की शिकायत पर आयोग ने यह फैसला सुनाया।
कर्मजीत ने 10 अगस्त 2020 में आरटीआई में राज्य जनसूचना अधिकारी-सह-डिप्टी डीईओ से कुछ जानकारी मांगी थी। लेकिन उसे विभाग से वांछित सूचना प्राप्त नहीं हुई। जिस पर आरटीआई एक्टिविस्ट पवन पारिक एडवाकेट के माध्यम से कर्मजीत ने राज्य सूचना आयोग में अपील की। मामला राज्य सूचना आयुक्त भूपेंद्र धर्माणी के पास सुनवाई के लिए गया। उनकी ओर से वांछित सूचना देने के निर्देश दिए गए। मगर, इन आदेशों की पालना नहीं हुई। जिस पर आयोग द्वारा शोकॉज नोटिस जारी किया गया। मामले की सुनवाई 17 मार्च को हुई।
सूचना आयुक्त भूपेंद्र धर्माणी ने अपने फैसले में डिप्टी डीईओ बूटाराम को देरी से सूचना देने का दोषी पाया और 71 दिन देरी से सूचना देने पर 17 हजार 750 रुपये का जुर्माना लगाया। आयुक्त ने मामले में विभाग के डीडीओ को जुर्माना राशि डिप्टी डीईओ के वेतन से काटने और आयोग को इस बारे में सूचित करने की हिदायत दी है।
क्या जुर्माने से सबक लेंगे अधिकारी?
राज्य सूचना आयोग द्वारा कड़े फैसले दिए जाने से आरटीआई एक्ट को मजबूती मिलेगी। अधिकांश मामलों में राज्य जनसूचना अधिकारियों द्वारा आरटीआई की परवाह नहीं की जाती। आवेदक सूचना न मिलने पर प्रथम अपील, फिर द्वितीय अपील और फिर शिकायत करने के लिए मजबूर होते है। आखिर में आयोग द्वारा चेतावनी देकर एसपीआईओ को छोड़ दिया जाता है। जिसके कारण आरटीआई एक्टिविस्ट हतोत्साहित होते है। आयोग द्वारा जब सूचना देने में देरी के लिए एसपीआईओ की जवाबदेही तय की जाएगी और उन पर जुर्माना लगाया जाएगा, तभी आरटीआई के प्रति अधिकारियों की जवाबदेही तय हो पाएगी।
सूचना आयुक्त धर्माणी हुए सेवानिवृत्त
राज्य सूचना आयुक्त भूपेंद्र धर्माणी बुधवार को इस पद से सेवानिवृत्त हो गए। उन्हें मनोहर-1 सरकार ने 2016 में सूचना आयुक्त नियुक्त किया था। श्री धर्माणी ने अपने कार्यकाल में आरटीआई की मजबूती के लिए कार्य किया और अधिकारियों की जवाबदेही तय करने का कार्य किया। उन्होंने आरटीआई के मामलों में कड़े फैसले सुनाए और संबंधित अधिकारियों के प्रति जरा भी कोमलता का भाव नहीं दर्शाया।
आरटीआई का मखौल बनाने वालों पर राज्य सूचना आयोग ने अपने तेवर कड़े कर दिए है ताकि आरटीआई एक्टिविस्ट को समय पर सूचना दिलवाया जाना सुनिश्चित किया जा सकें। आरटीआई के एक मामले में निर्धारित समयावधि में सूचना उपलब्ध न करवाने पर आयोग ने सिरसा के जिला खाद्य एवं आपूर्ति नियंत्रक सुरेंद्र सैनी को 25 हजार रुपये जुर्माना ठोंका है। जुर्माने की राशि उनके वेतन से काटकर सरकारी खजाने में जमा करवाने के आदेश दिए गए है।
आरटीआई एक्टिविस्ट पवन पारिक एडवोकेट ने जिला खाद्य एवं आपूर्ति विभाग सिरसा से कुछ जानकारी मांगी थी। समय पर सूचना न मिलने पर उनकी ओर से आयोग में इस आशय की शिकायत की गई। मामले राज्य सूचना आयुक्त भूपेंद्र धर्माणी के पास पहुंचा। उन्होंने डीएफएससी को शोकॉज नोटिस भेजा। राज्य जनसूचना अधिकारी-सह-डीएफएससी सुरेंद्र सैनी की ओर से अपना पक्ष रखते हुए बिना विलंब सूचना प्रदान किए जाने का दावा किया। बताया गया कि कोरोना की वजह से सूचना देने में देरी हुई। यह भी कहा कि आवेदक का पता सही नहीं था, इसलिए सूचना देने में देरी हुई।सूचना आयुक्त भूपेंद्र धर्माणी ने अपने फैसले में डीएफएससी सुरेंद्र सैनी की दलीलों को खारिज कर दिया। क्योंकि उनके द्वारा आवेदक के जिस पते को अधूरा बताया गया था, बाद में उसी पते पर भेजी गई सूचना पवन पारिक को प्राप्त हुई। इसके साथ ही डीएफएससी आयोग केे समक्ष आशय का तथ्य भी नहीं रख पाए कि उनके द्वारा पहले आरटीआई का जवाब भेजा गया था, जोकि पता अधूरा होने के कारण डिलीवर नहीं हो सका। सूचना आयुक्त ने इसे सूचना देने में देरी माना और इसके लिए डीएफएससी सुरेंद्र सैनी पर 25 हजार रुपये जुर्माना लगाया। उन्हें निर्देश दिए गए है कि वे जुर्माने की राशि 15 अप्रैल 2021 तक सरकारी खजाने में जमा करवा दें। इसके साथ ही विभाग के डीडीओ को निर्देश दिए गए है कि यदि डीएफएससी द्वारा जुर्माना जमा नहीं करवाया जाता है, तब जुर्माने की राशि उनके वेतन से काटें। आयोग के इस फैसले से शायद सरकारी तंत्र को सबक मिल पाएगा।
2. डिप्टी डीईओ बूटाराम को 17750 रुपये का जुर्माना
राज्य सूचना आयुक्त ने सुनाया फैसला, कंगनपुर निवासी कर्मजीत की शिकायत पर दिया फैसला
शिक्षा विभाग के डिप्टी डीईओ (उप जिला शिक्षा अधिकारी) बूटाराम पर राज्य सूचना आयोग ने 17750 रुपये का जुर्माना ठोंका है। सूचना देने में 71 दिन की देरी का उन्हें दोषी करार दिया गया है। गांव कंगनपुर निवासी सोशल वर्कर एक्टिविस्ट कर्मजीत सिंह की शिकायत पर आयोग ने यह फैसला सुनाया।
कर्मजीत ने 10 अगस्त 2020 में आरटीआई में राज्य जनसूचना अधिकारी-सह-डिप्टी डीईओ से कुछ जानकारी मांगी थी। लेकिन उसे विभाग से वांछित सूचना प्राप्त नहीं हुई। जिस पर आरटीआई एक्टिविस्ट पवन पारिक एडवाकेट के माध्यम से कर्मजीत ने राज्य सूचना आयोग में अपील की। मामला राज्य सूचना आयुक्त भूपेंद्र धर्माणी के पास सुनवाई के लिए गया। उनकी ओर से वांछित सूचना देने के निर्देश दिए गए। मगर, इन आदेशों की पालना नहीं हुई। जिस पर आयोग द्वारा शोकॉज नोटिस जारी किया गया। मामले की सुनवाई 17 मार्च को हुई।
सूचना आयुक्त भूपेंद्र धर्माणी ने अपने फैसले में डिप्टी डीईओ बूटाराम को देरी से सूचना देने का दोषी पाया और 71 दिन देरी से सूचना देने पर 17 हजार 750 रुपये का जुर्माना लगाया। आयुक्त ने मामले में विभाग के डीडीओ को जुर्माना राशि डिप्टी डीईओ के वेतन से काटने और आयोग को इस बारे में सूचित करने की हिदायत दी है।
क्या जुर्माने से सबक लेंगे अधिकारी?
राज्य सूचना आयोग द्वारा कड़े फैसले दिए जाने से आरटीआई एक्ट को मजबूती मिलेगी। अधिकांश मामलों में राज्य जनसूचना अधिकारियों द्वारा आरटीआई की परवाह नहीं की जाती। आवेदक सूचना न मिलने पर प्रथम अपील, फिर द्वितीय अपील और फिर शिकायत करने के लिए मजबूर होते है। आखिर में आयोग द्वारा चेतावनी देकर एसपीआईओ को छोड़ दिया जाता है। जिसके कारण आरटीआई एक्टिविस्ट हतोत्साहित होते है। आयोग द्वारा जब सूचना देने में देरी के लिए एसपीआईओ की जवाबदेही तय की जाएगी और उन पर जुर्माना लगाया जाएगा, तभी आरटीआई के प्रति अधिकारियों की जवाबदेही तय हो पाएगी।
सूचना आयुक्त धर्माणी हुए सेवानिवृत्त
राज्य सूचना आयुक्त भूपेंद्र धर्माणी बुधवार को इस पद से सेवानिवृत्त हो गए। उन्हें मनोहर-1 सरकार ने 2016 में सूचना आयुक्त नियुक्त किया था। श्री धर्माणी ने अपने कार्यकाल में आरटीआई की मजबूती के लिए कार्य किया और अधिकारियों की जवाबदेही तय करने का कार्य किया। उन्होंने आरटीआई के मामलों में कड़े फैसले सुनाए और संबंधित अधिकारियों के प्रति जरा भी कोमलता का भाव नहीं दर्शाया।
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