शहर के भीतर सख्ती, बाहर ढिलाई ,रिहायशी कालोनियों में दिनभर बदस्तूर जारी रहती है आर्थिक गतिविधियां

Dabwalinews.com
कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए लगाए गए लॉकडाऊन के अपेक्षित परिणाम सामने नहीं आ पा रहें। प्रदेशभर में तमाम आर्थिक गतिविधियां एक मई से ठप पड़ी है। केवल जरूरी चीजों की ही बिक्री के लिए समय निर्धारित किया गया है। लॉकडाऊन की कड़ाई से पालना के लिए पुलिस व प्रशासन की ओर से सख्ती भी की जा रही है। चौक-चौराहों पर तो आने-जाने वालों को रोका जा रहा है, वहीं बाजार में खरीददारी के लिए निकले लोगों से भी पूछताछ की जा रही है। छूट अवधि में भी पुलिस व प्रशासन के अधिकारी पड़ताल कर रहे है। लॉकडाऊन की उल्लंघना करने वालों पर लाठियां भी भांजी जा रही है। हालांकि पिछले 20 दिनों में कोरोना संक्रमण की रफ्तार में कुछ कमी आई है लेकिन अपेक्षित परिणाम सामने नहीं आए। लॉकडाऊन को तीन सप्ताह का समय होने को आया है। लॉकडाऊन की वजह से लोगों का बजट डगमगा चुका है। दिहाड़ीदार मजदूर व छोटे दुकानदारों के लिए लॉकडाऊन ब्रज के समान बना हुआ है। एक तरफ उन्हें किराए, बैंक ब्याज, बिजली के बिल का सिरदर्द बना हुआ है, वहीं उन्हें घर खर्च तथा ईलाज के खर्च की चिंता सता रही है।पुलिस व प्रशासन का हरसंभव प्रयास है कि लॉकडाऊन को सफल बनाया जाए ताकि संक्रमण की चेन टूट सकें। लेकिन प्रशासन की सख्ती केवल और केवल सिरसा शहर तक ही सिमट कर रह गई है। क्योंकि शहर के रिहायशी एरिया में लॉकडाऊन का कोई प्रभाव दिखाई नहीं देता। इन एरिया में कभी भी ऐसा नहीं लगता कि लॉकडाऊन लगा हुआ है। लोग बेफ्रिक है और सावधानी तक नहीं बरत रहें। लोगों का आना-जाना, मिलना-जुलना, गप्पे मारना, ताश खेलना। सबकुछ पहले की भांति चल रहा है।अचरज की बात तो यह है कि शहर के भीतरी एरिया में प्रशासन द्वारा निर्धारित समय की पालना की जा रही है, जबकि बाहरी कालोनियों में दिनभर आर्थिक गतिविधियां बदस्तूर जारी है। इन कालोनियों में हर प्रकार के कामकाज सामान्य गति से चल रहे है। बाजार में भले ही फल व सब्जी बेचने के लिए सुबह 6 से 10 बजे तक का, किरयाणा स्टोर के लिए सुबह 10 से दोपहर 12 बजे तक का समय निर्धारित किया हुआ है। लेकिन बाहरी कालोनियों में दिनभर ये दुकानें खुली रहती है। इसके अलावा सैलून, चाट वाले, फास्ट फूड वालों का कारोबार भी यथावत बना हुआ है। यानि बाहरी कालोनियों में दिनचर्या में कोई बदलाव दिखाई नहीं देता। इसके साथ ही न तो मास्क पहनने का किसी में डर दिखाई देता है और न ही सोशल डिस्टेंसिंग का कोई अर्थ ही जानता है। परिणाम स्वरूप लॉकडाऊन के अपेक्षित परिणाम हासिल नहीं हो पा रहें। चूंकि एकबारगी भी पुलिस प्रशासन की ओर से बाहरी कालोनियों में लोगों को आगाह नहीं किया गया है?

 खोखों से खतरा!

 सिविल अस्पताल हो या शहर के प्राइवेट अस्पताल। इनके आसपास चाय के खोखे कोरोना संक्रमण का बड़ा खतरा बने हुए है। चूंकि अस्पताल में आने वाले रोगियों और उनके तिमारदारों को इन खोखों से ही चाय की सप्लाई होती है। संक्रमित लोगों द्वारा डिस्पोजल बर्तनों में चाय-पानी नहीं पिया जाता। बल्कि उनके द्वारा इस्तेमाल बर्तन ही लौटकर आते है और दूसरे कपों के साथ ही उनकी धुलाई होती है। कोरोना से बचाव के लिए जब 6 फुट की दूरी के निर्देश दिए गए है, मगर खोखों पर बगैर सेनेटाइज किए गए कपों को लोग मुंह पर लगाकर चुस्की लेते है। ऐसे में कैसे बचाव होगा? इसके साथ ही खोखों पर लोगों को साथ बैठकर बतियाते और चाय पीते हुए देखा जा सकता है। इस दौरान मास्क गले में लटका रहता है। बड़ा सवाल यह है कि आखिर कैसे संक्रमण थमेगा? लापरवाही कुछ लोग करेंगे और लॉकडाऊन का चाबुक हरेक को सहना पड़ेगा। बेहतर होगा यदि पुलिस व प्रशासन इस ओर भी ध्यान दें।

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