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नगर परिषद में जीएसटी गबन का मामला ,73 +12 लाख हुई घोटाला राशि

Dabwalinews.com
नगर परिषद सिरसा में वर्ष 2012 से लेकर 2017 तक की अवधि में गबन की गई बढ़कर 85 लाख रुपये पहुंच गई है। प्रशासन की ओर से अब तक 73 लाख रुपये का गबन मानकर मामले की छानबीन की जा रही है। लेकिन वर्ष 2012 की अवधि के तीन वाऊचरों को जांच में शामिल नहीं किया गया है। जिनके माध्यम से 12 लाख रुपये का गबन किया गया है। दरअसल, माल और सेवाकर आसूचना महानिदेशालय गुरुग्राम द्वारा नगर परिषद के अधिकारियों व कर्मचारियों द्वारा जीएसटी में किए गए गबन का पर्दाफाश किया था। जीएसटी की राशि न पहुंचने पर जीएसटी विभाग हरकत में आया और छानबीन कर उन्होंने घोटाले का पर्दाफाश किया। जीएसटी इंटेलिजेंस ने अप्रैल-2013 से जून-2017 तक के वाऊचरों की जांच की थी और जांच उपरांत 63 लाख 23 हजार 244 रुपये का गबन पाया। इंटेलिजेंस द्वारा मामले की जब पड़ताल की गई तो जांच का दायरा जुलाई-2012 तक बढ़ा दिया गया। इस अवधि में गबन की राशि बढ़कर 73 लाख 516 पहुंच गई।मामले में आरटीआई से जानकारी जुटाई गई, जिसमें वर्ष 2012 व वर्ष 2013 के दौरान नगर परिषद के खाते से अधिक राशि निकालकर जीएसटी के रूप में 12 लाख रुपये कम राशि जमा करवाया जाना सामने आया है। नगर परिषद की ऑडिट रिपोर्ट के क्रमांक 37 दिनांक 27 फरवरी 2019 के अनुसार नगर परिषद के खाते से 598352 रुपये की निकासी की गई, जबकि 98352 रुपये जीएसटी के रूप में जमा करवाए गए यानि सीधे-सीधे 5 लाख रुपये डकार लिए गए।इसी प्रकार 6 सितंबर 2013 को खाते से 401472 रुपये की निकासी की गई और 101472 रुपये जमा करवाए गए यानि 3 लाख का गबन किया गया। जबकि 11 अक्टूबर 2013 को 479923 की निकासी की गई और 79923 रुपये जमा करवाकर 4 लाख रुपये डकार लिए गए। हैरानी की बात यह है कि इन 12 लाख रुपये के गबन को जांच में शामिल नहीं किया गया है। इस प्रकार सीधे-सीधे 12 लाख रुपये के गबन के मामले को नजरअंदाज किया जा रहा है। वर्ष 2018 में उजागर हुए इस मामले में आजतक कोई बड़ी कार्रवाई अमल में नहीं लाई गई है। मामला ठंडे बस्ते में डाला गया है।






15 दिन में देनी थी रिपोर्ट, 18 महीने बीते


नगर परिषद के तत्कालीन कार्यकारी अधिकारी द्वारा 30 जनवरी 2019 को जीएसटी गबन मामले से उपायुक्त कार्यालय को अवगत करवाया गया था। बताया गया कि विभागीय कर्मियों की कथित संलिप्तता से 73 लाख रुपये से अधिक का गबन हुआ है। मामले में जिला उपायुक्त द्वारा 1 जनवरी 2020 को एसडीएम सिरसा की अगुवाई में चार सदस्यीय कमेटी के गठन के आदेश दिए और इस कमेटी को 15 दिन में अपनी रिपोर्ट देने के निर्देश दिए। कमेटी में एसडीएम सिरसा के अलावा डीपीसी, एसएसए के अकाऊंट ऑफिसर देसराज, नागरिक अस्पताल के अकाऊंट ऑफिसर प्रेम मेहता व नगर परिषद के अकाऊंट ऑफिसर सुरेंद्र अरोड़ा को शामिल किया गया था। जनवरी-2020 में दिए गए आदेश को जून-2021 का लंबा अंतराल बीत चुका है लेकिन मामले में आजतक किसी एक कर्मचारी के खिलाफ मामला दर्ज नहीं करवाया गया है।


मिढ़ा के खिलाफ भी नहीं दर्ज करवाया मामला


नगर परिषद की ओर से जिस राजेंद्र मिढ़ा नामक व्यक्ति को जीएसटी अदा करने के लिए नियुक्त किया हुआ था। जिसे नगर परिषद द्वारा नगद और चैक दिया जाता था। उसके द्वारा पूरी राशि बैंक में जमा नहीं करवाई गई। नगर परिषद के कार्यकारी अधिकारी द्वारा 30 जनवरी 2019 को राजेंद्र मिढ़ा के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने के लिए कानूनी सलाह लेने की बात कहीं गई। लेकिन दो साल 6 माह बीत जाने पर भी राजेंद्र मिढ़ा के खिलाफ नगर परिषद द्वारा पुलिस में आज तक कोई शिकायत नहीं दी गई।


48 लाख से अधिक हो चुके जमा


लाखों रुपये के गबन का मामला सिद्ध हो चुका है, चूंकि आरोपियों द्वारा मामले की पड़ताल किए जाने पर लगभग 48 लाख रुपये जमा करवाए जा चुके है। सूत्र बताते है कि जुलाई-2012 से जून-2017 की अवधि के देय सर्विस टैक्स के 73 लाख रुपये बकाया है। जिसमें से 48 लाख 57 हजार 367 रुपये जमा करवाए गए है। गबन राशि की वसूली से यह सिद्ध हो गया कि बड़े सुनियोजित ढंग से लाखों रुपये डकारे गए। सवाल यह है कि चोरी पकड़े जाने पर क्या चोरीशुदा माल की बरामदगी ही की जाती है या चोर के खिलाफ कार्रवाई भी की जाती है। नगर परिषद में जीएसटी के गबन मामले में पिछले तीन वर्षों से मामले को ठंडे बस्ते में ही रखने की कोशिश की जा रही है।


कैसे रचा गया षड्यंत्र


सरकारी खजाने में जीएसटी की रकम भरने में बड़े शातिराना ढंग से कार्य किया गया। बैंक के वाऊचर में 50052 रुपये अंकित किया। बैंक में इतनी ही राशि जमा करवाई। बैंक द्वारा प्रदत्त चालान कॉपी पर 250052 अंकित कर दिया और सीधे-सीधे 2 लाख रुपये डकार लिए। जुलाई 2012 से लेकर फरवरी-2015 तक तो आंकड़ों में ही खिलवाड़ किया गया। मार्च-2015 के बाद तो बैंक की फर्जी मोहर लगाकर नकली वाऊचर नगर परिषद में थमा दिए गए। अचरज की बात तो यह है कि नगर परिषद में एक वाऊचर कई हाथों से निकलता है। कैशियर, लेखाकार, ऑडिट सहित अन्य के पास पहुंचता है, मगर मार्च-2015 से जुलाई-2017 तक बैंक की फर्जी मोहर लगाकर वाऊचर जमा करवाए जाते रहें। मामले में किसी एक कर्मचारी या अधिकारी की संलिप्ता नहीं हो सकती। चूंकि 2012 से लेकर 2017 की पांच साल की अवधि में कई अधिकारी आए और गए, मगर गबन का सिलसिला चलता रहा। चूंकि इसमें दो दर्जन से अधिक अधिकारियों-कर्मचारियों की कथित संलिप्तता है, इसलिए तीन वर्ष बाद भी मामला अधर में लटका हुआ है। स्कैंडल एक्सपोज होने के बाद 48 लाख रुपये की वसूली होना भी यह दर्शाता है कि यह राशि किसी एक कर्मचारी द्वारा जमा नहीं करवाई गई है, बल्कि कई लोगों ने मिलकर इस राशि का भुगतान किया है? ऐसे में गबन मामले की पूरी पड़ताल आवश्यक है और दोषियों के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज किए जाने की जरूरत है।

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