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नुकसान की बजाए कांडा को लाभ पहुंचा सकता है विरोध ! वोटों का हो सकता है धु्रवीकरण, मुखर विरोध नुकसानदेह

Dabwalinews.com
भौतिकी का नियम है कि जिस वस्तु को दबाने के लिए जितनी शक्ति लगाई जाएगी, वह वस्तु भी उतनी ही शक्ति से उसका विरोध करेगी।भौतिकी का यह नियम राजनीति में भी कहीं सटीक न बैठ जाए। ऐसा हुआ तो किसानों के विरोध की वजह से कांडा को नुकसान की बजाए लाभ हो सकता है। लगातार किए जा रहे विरोध के कारण वोटों का धु्रवीकरण होने से भी इंकार नहीं किया जा सकता। जिसके कारण विरोध करने वाले तो शायद बंट जाए लेकिन दूसरा पक्ष कांडा के समर्थन में न उतर आए। वर्णनीय है कि कृषि बिलों को लेकर किसान संगठनों द्वारा केंद्र व भाजपा सरकारों का विरोध किया जा रहा है। लगभग एक वर्ष से किसान दिल्ली बार्डर पर धरना दिए हुए है। कई दौर की बातचीत बेनतीजा रहने के बाद किसान धरना-प्रदर्शन की राह पर है। पिछले एक साल के दौरान किसान संगठनों की ओर से बंद, रोड जाम किए जा चुके है। अनेक बार घेराव, नेताओं-मंत्रियों का घेराव किया जा चुका है। सत्तारूढ़ दलों के नेताओं पर हमले और धक्कामुक्की की घटनाएं भी घटित हो चुकी है।इस एक साल के दौरान बार्डर एरिया के लोग तो परेशान है ही, आमजन भी टोल पर जाम, शहर बंद व अन्य कारणों से परेशान हो चुका है। ऐलनाबाद उपचुनाव में किसान संगठनों की ओर से सत्तारूढ़ भाजपा और जजपा नेताओं का विरोध किया जा रहा है। भाजपा-जजपा की ओर से इन चुनाव में गोबिंद कांडा को उम्मीदवार बनाया गया है।
उनके नामांकन दाखिल करने के दिन किसानों ने काले झंडे दिखाकर विरोध किया।इसके साथ ही उन्होंने प्रचार सामग्री भी आग के हवाले कर दी। उन्होंने गांवों में जनसभा, रैली न करने की भी चेतावनी दी है। जिसके कारण लॉ एंड आर्डर की स्थिति बनाए रखने की जिम्मेवारी पुलिस व प्रशासन की है। मगर, ऐसी स्थिति के लिए न तो ऐलनाबाद की जनता तैयार है और न ही आमजन। लोकतंत्र में वोट की ताकत से बढ़कर कुछ नहीं। लोकतंत्र में जनता जर्नादन ही सर्वोपरि है। जनता जो फैसला सुनाती है, उसे स्वीकार करना ही पड़ता है। अब चूंकि 30 अक्टूबर को चुनाव होने है। सभी दल अपनी-अपनी बात रखेंगे। पब्लिक को जो पसंद होगा, उसे विजयश्री का ताज पहना देंगे।कृषि बिलों को लेकर विरोध जताने वाले किसानों को लोकतंत्र द्वारा यह अधिकार प्रदत्त किया गया है कि वे अपनी बात जन-जन तक पहुंचाए। मगर, उन्हें यह अधिकार कदापि नहीं है कि वे दूसरे को रोकें। जनसभा न करने दें, रैली न करने दें। ऐसा होने से ऐलनाबाद क्षेत्र का माहौल बिगड़ेगा, जो कोई नहीं चाहता। जानकार मानते है कि जिस प्रकार विरोध की राजनीति को हवा दी जा रही है, उसकी वजह से भाजपा प्रत्याशी गोबिंद कांडा को नुकसान की बजाए लाभ मिल सकता है। चूंकि रोजाना के धरने-प्रदर्शन, रोड जाम, शहर बंद से आमजन परेशान हो चुका है। चुनाव के समय भी उन पर बंधन लगाया जाना उन्हें बर्दाश्त नहीं होगा। दबाव के सिद्धांत के अनुसार ऐसी स्थिति में वोटों का धु्रवीकरण हो सकता है। जो लोग किसान बिलों के विरोध में है, वे विरोधी दलों के पक्ष में मतदान करेंगे। जो लोग किसान बिलों के समर्थक है, वे सत्तारूढ़ दल के पक्ष में मतदान करेंगे। लेकिन जो लोग तटस्थ है, वे विरोध की नीति के फलस्वरूप सत्तारूढ़ दल के पक्ष में जा सकते है। ऐसे में भौतिकी का सिद्धांत यदि ऐलनाबाद उपचुनाव में लागू हो गया तो परिणाम चौंकाने वाले हो सकते है। बेहतर होगा कि लोकतंत्र के इस उत्सव में जनता जर्नादन को ही निर्णय सुनाने का मौका दिया जाए। चुनाव को शांतिपूर्वक और निष्पक्ष रूप से करवाने में मदद करके लोकतंत्र को मजबूत किया जाना चाहिए। लोकतंत्र ही हमें यह अधिकार देता है कि हम सड़के जाम, विरोध-प्रदर्शन कर पा रहे है, अन्यथा यह सब स्वप्र होता।

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