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'शाही ख्वाबों की दुनियां' पर टिकी है फर्जी फर्मों की बुनियाद!

जरूरतमंदों को फांसकर बनाया जाता है निशाना, दूसरों के नाम पर किया जाता है टैक्स चोरी का कारोबार
Dabwalinews.com
फर्जी फर्मों के कारोबार से अकूत संपत्ति अर्जित करने वालों द्वारा इस धंधे में दूसरों के कंधों का इस्तेमाल किया जाता है।
भोले-भाले और जरूरतमंद लोगों को फांसा जाता है और उनके नाम पर फर्जी फर्में खड़ी की जाती है। इन फर्मों के माध्यम से कारोबार दर्शाकर टैक्स चोरी का धंधा किया जाता है। कुछ समय तक टैक्स चोरी के इस कारोबार के संचालन के बाद सरगना अपना पल्ला झाड़ देते है और कागजों में फर्मों के मालिक जीवनभर अपराधी जैसा जीवन बीताने के लिए विवश हो जाते है।जानकारों के अनुसार फर्जी फर्मों के कारोबारियों द्वारा समाजसेवी का लबादा ओढ़ा गया है।
वे लोग भोले-भाले और जरूरतमंद व्यक्ति की ताक में रहते है। गरीब और जरूरतमंद व्यक्ति को ईलाज अथवा अन्य घरेलू कार्यों की जरूरत के लिए मदद की नौटंकी करते है। तब भोला-भाला व्यक्ति इन्हें 'देवताÓ दिखाई पडऩे लगता है। सरगनाओं की बोली और कृत्य से ऐसा प्रतीत होता है कि देवदूत ने उन्हें दुखों से उबारने के लिए ही भेजा है। ऐसे लोगों के अहसान तले दबे लोग जल्द ही इनके झांसे में आ जाते है। तब उनकी ओर से 10 से 20 हजार रुपये प्रतिमाह आय का झांसा दिया जाता है। सामान्यतया 8-10 हजार तनख्वाह के लिए दिनरात एक करने वाले को इसमें भी ईश्वरीय इच्छा प्रतीत होती है और वे आंख मूंदकर वहीं करते जाते है, जैसा सरगना चाहते है। परिणाम स्वरूप फर्जी फर्मों के लिए दस्तावेज हासिल कर लिए जाते है, बैंकों में खाते खुल जाते है, कोरे चैक पर साइन भी करवा लिए जाते है। बदले में कुछ माह तक 10-20 हजार रुपये भी दिए जाते है। बिना कुछ करें-धरे जब पैसा मिलता है, तब फंसने वाले के पैर भी जमीन पर नहीं टिकते। कुछ समय तक फर्जी फर्मों का संचालन करने के बाद सरगना अपना पल्ला झाड़ लेते है। इसके बाद सरकारी महकमे फर्म का अता-पता पूछते हुए पहुंच जाते है और लाखों रुपये टैक्स अदायगी का नोटिस थमाते है। इसके बाद बिना काम के पैसे बटोरने वालों की नींद टूटती है, तब कथित धर्मात्मा और ईश्वर का अवतार दिखाई देने वाले फर्जी फर्मों के सरगनाओं की असलियत सामने आ पाती है। लेकिन तब तक देर हो चुकी होती है। सिरसा में जो मामले सामने आ चुके, सो तो है।
अभी सैकड़ों मामले सामने आना बाकी है। क्योंकि ख्वाबों की दुनियां दिखाने वालों का धंधा बदस्तूर जारी है।

सरगनाओं के है लंबे हाथ!
फर्जी फर्मों का संचालन करने वालों के बड़े लंबे हाथ है। उन्हें कथित रूप से राजनीतिक संरक्षण भी प्राप्त है। चूंकि सरकार भले ही किसी भी दल की हो, न उनका कारोबार थमता है और न ही कार्यशैली। सरकार को टैक्स की चपत लगाकर कमाए गई राशि का कुछ हिस्सा जांच को प्रभावित करने पर भी व्यय किया जा सकता है। राजनीतिक लोगों से मेलमिलाप पर भी खर्च किया जा सकता है। इसलिए वे समाजसेवक का लबादा भी ओढ़े रहते है। जब-जब भी जांच की सुई इनकी ओर घूमती है, तब उन्हें बचाने के लिए प्रभावशाली लोग एकजुट हो जाते है। सूत्रों की मानें तो कुछेक मामलों में तो प्रभावशाली लोग स्वयं मोर्चे पर पहुुंच जाते है। फर्जी फर्मों के कारोबार से जुटाई गई अकूत संपत्ति के बलबूते उनका साम्राज्य आजतक खड़ा है। यदि सत्ताधारी लोगों से ऐसे तत्वों को संरक्षण प्राप्त न हो तो ऐसे तत्वों को सलाखों के पीछे भेजने में देर नहीं लगती। मगर, पैसे के बलबूते वे आज भी ताल ठोंकते हुए दिखाई पड़ते है।
जांच पर जम जाती है धूल!
यह कम आश्चर्यजनक तथ्य नहीं है कि फर्जी फर्मों के कारोबार से अकूत संपत्ति जुटाने वालों के खिलाफ आजतक कोई कार्रवाई नहीं हुई। छोटी मछलियों को तो यदा-कदा जाल में फांसा गया। मगर, फर्जी फर्मों के 'मगरमच्छोंÓ पर आजतक हाथ ही नहीं डाला गया। सैकड़ों मामले दर्ज होने के बाद भी कार्रवाई के नाम पर कुछ खास नहीं हुआ। जब-जब भी जिला में नया पुलिस कप्तान आता है, तब-तब फर्जी फर्मों के मामलों की अपने अंदाज से जांच शुरू करता है और इन मामलों की धूल एक बार तो झड़कती हुई नजर आने लगती है। मगर, जांच अंजाम तक पहुंचने से पहले ही थम जाती है। फिर धूल जमने का सिलसिला शुरू हो जाता है। इसके पीछे क्या वजह रहती है, यह आजतक रहस्य बना हुआ है। जब तक नया पुलिस कप्तान नहीं आता, तब तक जांच पर धूल चढ़ती ही रहती है!

देशभर में सिरसा का नेटवर्क!
फर्जी फर्मों के कारोबार की जड़े किस कदर फैली हुई है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जब-जब टैक्स चोरी के लिए जांच की जाती है, अमूमन उसमें सिरसा का नाम अवश्य आता है। मामले का खुलासा गुडगांव हो या पानीपत, सिरसा का नाम अवश्य आएगा। मामले की पड़ताल अबोहर हो या लुधियाना, सिरसा की संलिप्तता सामने आती है। मामला गुजरात का हो या दिल्ली-राजस्थान का, सिरसा से तार जुड़े हुए मिलते है। इस मामले में सिरसा को फर्जी फर्मों की 'राजधानीÓ कहा जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। जगह-जगह आपराधिक मामले दर्ज होने के बावजूद सिरसा के फर्जी फर्मों के सरगनाओं 'एमआरपीÓ का आजतक बाल तक बांका नहीं हुआ। 'एमआरपीÓ के खिलाफ कार्रवाई न होने के परिणाम स्वरूप उनकी तर्ज पर कई अनेक सरगना भी पनप चुके है और सिलसिला बदस्तूर जारी है। आबकारी एवं कराधान विभाग के उन भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ भी आजतक कोई बड़ी कार्रवाई अमल में नहीं लाई गई, जिनके खिलाफ मामले दर्ज किए गए?

कार्रवाई हो तो बकरी की भांति मिमियाते नजर आएंगे फर्जी फर्मों के शेर!

सरकारी जांच एजेंसियों को फर्जी फर्मों के नेक्सस को नेस्तनाबूत करने के लिए ऐसे लोगों की संपत्ति को कुर्क करना होगा। चूंकि धनबल के प्रभाव से ही वे जांच को प्रभावित करने में कामयाब हो पाते है। फर्जी फर्मों से कमाए धन को अपनी खाल बचाने पर आसानी से खर्च भी किया जा सकता है। लेकिन एकबार जांच एजेंसियों द्वारा संपत्ति को कुर्क करने की कार्रवाई अमल में लाई जाएगी तो फर्जी फर्मों के कारोबार के कथित 'शेरÓ बकरी की भांति मिमियाते हुए नजर आएंगें।


The foundation of fake firms rests on 'the world of royal dreams'!

The needy are targeted by hanging, the business of tax evasion is done in the name of others
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The shoulders of others are used in this business by those who have acquired huge wealth from the business of fake firms.
The gullible and needy people are implicated and fake firms are set up in their names. The business of tax evasion is done by showing business through these firms. After operating this business of tax evasion for some time, the kingpin throws himself away and the owners of the firms in the paper are forced to live like a criminal for life. According to the experts, the cloak of social worker has been worn by the businessmen of fake firms. . Those people keep looking for the innocent and needy person. They pretend to help the poor and needy person in need of treatment or other domestic work. Then the gullible person starts seeing them as 'gods'.
From the words and actions of the kings, it seems that the angel has sent them only to get them out of sorrows. People buried under the favor of such people soon fall in their trap. Then 10 to 20 thousand rupees per month income is given on their behalf. Generally, one who works day and night for 8-10 thousand salary also feels God's will in it and they blindly go on doing what the kingpin wants. As a result, documents are obtained for fake firms, accounts are opened in banks, blank cheques are also signed. In return, 10-20 thousand rupees are also given for a few months. When money is received without doing anything, even the feet of the trapped person do not stay on the ground. After operating the fake firms for some time, the gangsters get away from themselves. After this, the government departments arrive asking the whereabouts of the firm and issue a notice of payment of tax of lakhs of rupees. After this, the sleep of those who collect money without work breaks, then the realness of the kings of fake firms who appear to be the so-called godman and the incarnation of God comes to the fore. But by then it is too late. The cases which have come up in Sirsa are so. Hundreds of cases are yet to come to light. Because the business of those who show the world of dreams continues unabated.

Dons have long hands!
Those operating fake firms have long hands. He also reportedly enjoys political patronage. Since the government may be of whichever party, neither their business stops nor their working style. Some of the amount earned by evading taxes to the government can also be spent on influencing the investigation. It can also be spent on reconciliation with political people. That's why they also wear the cloak of a social worker. Whenever the needle of investigation turns towards them, influential people come together to save them. If sources are to be believed, in some cases, influential people themselves reach the front. His empire stands till date on the basis of the immense wealth raised from the business of fake firms. If such elements do not get protection from the people in power, then it does not take long to send such elements behind the bars. But, on the strength of money, they are still seen thrashing.
Dust accumulates on the probe!
It is no less surprising fact that till date no action has been taken against those who have raised huge wealth through the business of fake firms.
Sometimes small fish were caught in the net. However, till date the 'crocodile' of fake firms has not been caught. Even after registering hundreds of cases, nothing special happened in the name of action. Whenever a new police captain comes to the district, then he starts his own investigation into the cases of fake firms and once the dust of these cases starts to flinch. However, the investigation ends before reaching its conclusion. Then the process of collecting dust starts. What is the reason behind this, it remains a mystery till date. Until a new police captain arrives, the investigation keeps on gathering dust!

Sirsa's network across the country!
The extent to which the roots of the business of fake firms have spread can be gauged from the fact that whenever investigation is done for tax evasion, Sirsa's name usually appears in it. Be it Gurgaon or Panipat, Sirsa's name will definitely come to the fore. Be it Abohar or Ludhiana, Sirsa's involvement comes to the fore. Be it the matter of Gujarat or Delhi-Rajasthan, wires are found connected with Sirsa. In this case, it will not be an exaggeration to call Sirsa the 'capital' of fake firms. Despite the criminal cases being registered at various places, the kingpins of the fake firms of Sirsa 'MRP' have not been caught till date. As a result of not taking action against the 'MRP', many gangsters have also flourished on their lines and the process continues unabated. Till date no major action has been taken against those corrupt officials of Excise and Taxation Department, against whom cases have been registered?

If action is taken, the lions of fake firms will be seen mingling like a goat!

Government investigative agencies will have to attach the assets of such people to bust the nexus of fake firms. Because only with the influence of money power they are able to influence the investigation. Money earned from fake firms can also be easily spent on saving your skin. But once the action of attachment of the property is implemented by the investigating agencies, then the alleged 'lion' goat of the business of fake firms will be killed.

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