**डॉ. इन्द्र चंद्र शास्त्री: डबवाली के गौरव, संस्कृत विद्वान और स्वतंत्रता सेनानी**
** डबवाली,26 मई:** महान स्वतंत्रता सेनानी, विख्यात लेखक और संस्कृत के विद्वान डॉ. इन्द्र चंद्र शास्त्री का जन्म 27 मई 1912 को गांव डबवाली, जिला सिरसा, हरियाणा में लाला बीरबल दास सिंगला और माता आशा कौर के घर हुआ था। उनके उल्लेखनीय योगदान के लिए उन्हें मरणोपरांत 28 मार्च 1986 को भारत के राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह द्वारा 'सर्टिफिकेट ऑफ ऑनर' से सम्मानित किया गया था।
#### डॉ. इन्द्र चंद्र शास्त्री के सम्मान में स्थान और स्मृतियाँ
दिल्ली विश्वविद्यालय के पास शक्ति नगर में नागिया पार्क से गुजरने वाले मुख्य मार्ग का नाम डॉ. इन्द्र चंद्र शास्त्री मार्ग रखा गया है, जिसका उद्घाटन 6 अगस्त 1994 को दिल्ली के मुख्यमंत्री मदन लाल खुराना ने किया था। इसी क्षेत्र में एक पार्क का नाम भी डॉ. इन्द्र चंद्र शास्त्री पार्क रखा गया। भारत सरकार के डाक विभाग द्वारा 27 मई 2004 को उनकी स्मृति में 5 रुपये का एक विशेष डाक टिकट जारी किया गया।
#### डॉ. शास्त्री का जीवन और कार्य
डॉ. इन्द्र चंद्र शास्त्री का जीवन ज्ञानशक्ति और तेजस्विता का प्रतीक था। वे एक दार्शनिक, असाधारण लेखक और काव्यशास्त्र, दर्शन, धर्म, संस्कृति, भाषा विज्ञान, और व्याकरण में पारंगत थे। उनके महत्त्वपूर्ण योगदान पालि, प्राकृत, दर्शन (पूर्वी और पश्चिमी), भारतीय इतिहास और यूरोपीय भाषाओं के क्षेत्रों में भी मिलते हैं।
उन्होंने बीकानेर, राजस्थान में संस्कृत और प्राकृत का अध्ययन किया और आगरा विश्वविद्यालय से संस्कृत में स्नातकोत्तर और बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से वेदांत में शास्त्राचार्य की उपाधि प्राप्त की। पंजाब विश्वविद्यालय से शास्त्री और कलकत्ता से न्यायतीर्थ की उपाधि भी प्राप्त की। पंडित बाल कृष्ण मिश्र के मार्गदर्शन में उन्होंने पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। उनके शोध निबंध 'एपिस्टेमॉलॉजी ऑफ जैन अगम्स' की व्यापक सराहना की गई।
#### स्वतंत्रता संग्राम में योगदान
वर्ष 1940 में महात्मा गांधी के विचारों से प्रभावित होकर डॉ. शास्त्री ने स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय रूप से योगदान दिया। 1942 में बाल दीक्षा के खिलाफ उन्होंने अभियान चलाया, जिसके परिणामस्वरूप बीकानेर विधानसभा में एक विधेयक प्रस्तुत हुआ। विभाजन के समय उन्होंने सहायता शिविर भी लगाए।
#### संगठनात्मक और शैक्षिक भूमिका
डॉ. शास्त्री वर्ष 1954 से 1958 तक अखिल भारतीय संस्कृत साहित्य सम्मेलन के सचिव रहे और 1957 में ऑल इंडिया ओरिएंटल कॉन्फ्रेंस के दिल्ली सत्र का आयोजन भी किया। वे उज्जैन, राजगीर और दिल्ली में आयोजित विश्व धर्म सम्मेलन में मुख्य वक्ता रहे। 1959 में वे दिल्ली विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर अध्ययन संस्थान में संस्कृत के पहले विभागाध्यक्ष नियुक्त हुए, लेकिन 1961 में ग्लूकोमा के कारण दृष्टिहीनता की वजह से इस पद से त्यागपत्र दे दिया।
इसके बाद उन्हें विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की योजना के तहत प्रोफेसर एमेरिटस नियुक्त किया गया। दृष्टिहीनता के बावजूद उन्होंने 1967 से 1969 तक 'धर्म और आधुनिक मनुष्य' पर शोध किया और अनेक विभागों में आमंत्रित वक्ता के रूप में अपनी सेवाएं दीं।
सम्मान और स्मृतियाँ
दिल्ली विश्वविद्यालय के पास शक्ति नगर में नागिया पार्क से गुजरने वाले मुख्य मार्ग का नाम डॉ. इन्द्र चंद्र शास्त्री मार्ग रखा गया है, जिसका उद्घाटन 6 अगस्त 1994 को दिल्ली के मुख्यमंत्री मदन लाल खुराना ने किया था। इसी क्षेत्र में एक पार्क का नाम भी डॉ. इन्द्र चंद्र शास्त्री पार्क रखा गया। भारत सरकार के डाक विभाग द्वारा 27 मई 2004 को उनकी स्मृति में 5 रुपये का एक विशेष डाक टिकट जारी किया गया।
लेखन और विद्वता
डॉ. शास्त्री ने अपने जीवनकाल में लगभग 70 पुस्तकें और 600 शोध पत्र लिखे, जिनमें उन्होंने प्राचीन शास्त्रीय ग्रंथों के ज्ञान का सार निकालकर उसे आधुनिक संदर्भ में प्रस्तुत किया। उनकी पालि भाषा और साहित्य में तीन प्रस्तावनाओं की श्रृंखला, विजहेम गाईगर की जर्मन कृति 'पालि लिट्राटर एंड स्प्राशे' की भूमिका का अनुवाद, और उनकी कृतियाँ 'रिलीजियस शॉप्स' और 'घोस्ट्स ऑफ थ्री कल्चर' इस बात के प्रमाण हैं। उनकी अन्य महत्वपूर्ण कृतियों में 'संस्कृत काव्यशास्त्र का इतिहास', 'महाभारत के सूक्ति रत्न', 'आलोक और उन्माद', 'हमारी परम्परा', 'जैनिज्म एंड डेमोक्रेसी', 'धर्म और राष्ट्र निर्माण', और 'भारतीय आर्य भाषाएं' शामिल हैं।
श्रद्धांजलि
डॉ. शास्त्री का 3 नवंबर 1986 को निधन हो गया। डॉ. इन्द्र चंद्र शास्त्री की प्रतिमा मंडी डबवाली के स्वतंत्रता सेनानी पार्क में 27 मई 2014 को अंतर्राष्ट्रीय वैश्य महासम्मेलन और सिंगला परिवार डबवाली फाउंडेशन के सहयोग से स्थापित की गई।
जीवन और योगदान पर विद्वानों की राय
नेहरू विश्वविद्यालय के कुलपति और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के पूर्व अध्यक्ष डॉ. दौलत सिंह कोठारी, राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के सहयोगी काका साहेब कालेलकर, दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. नगेन्द्र, सुप्रसिद्ध लेखक और विचारक जैनेन्द्र कुमार, न्यायविद डॉ. लक्ष्मी मल्ल सिंघवी, लोकसभा के पूर्व अध्यक्ष अनन्तशयनम आयंगर, और अन्य गणमान्य व्यक्तियों ने डॉ. शास्त्री के कार्यों की प्रशंसा की है।
डॉ. इन्द्र चंद्र शास्त्री के योगदान और उनके जीवन की प्रेरणा हमें सदा मार्गदर्शन देती रहेगी। उनका जीवन सत्य का तीर्थाटन था, जिसे सभी सादर स्मरण करते हैं।
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