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बेम़तलब सी इस दुनिया में वो ही हमारी शाऩ है, किसी शख्स़ के वजूद की ‘पिता’ ही पहली पहचान है


16 जून : पिता दिवस पर विशेष
आचार्य रमेश सचदेवा
मोटिवेशनल स्पीकर एवं पेरेंटिंग कोच

कहते हैं कि पिता का साया जब तक किसी भी बच्चे के सिर पर होता है तब तक वह बच्चा बूढ़ा नहीं होता है। पिता के न रहने पर ही उसे पिता की असली अहमियत और कमी का आभास होता है। मां और बाप हर बच्चे की ज़िंदगी में दो ऐसे स्तंभ होते हैं जिनके ऊपर ज़िंदगी की पूरी नींव टिकी होती है। जीवन के हर संघर्ष का सामना करने का पहला कदम जो बच्चा पिता के साए में सीखता है, वह जीवन की हर चुनौती को पार कर लेता है।

विज्ञान के अनुसार भी बच्चों के जीवन में पिता का बहुत ही महत्व होता है। बच्चों की ज़िंदगी में पिता, सौतेला पिता या पिता के जैसा व्यवहार करने वाला कोई भी शख्स यदि मौजूद है तो बेशक कानूनी तौर पर भी मुश्किलों का सामना वह हंसकर कर लेता है। साथ–ही-साथ ऐसे बच्चों की स्कूलिंग भी अच्छी होती है और वह जॉब के समय उनकी जॉब को बनाए रखने में भी मददगार सिद्ध होते हैं।

पिता का साथ होने पर जीवन में बहुत तरह के फायदे हैं । सबसे पहले जिस बच्चे के जीवन में पिता का साथ है वे बच्चे अपेक्षाकृत कम अपराधी बनते हैं अर्थात् उनके अपराधी बनने की आशंका कम हो जाती है और जिन बच्चों के पिता नहीं होते या कोई अटैंटिव नहीं होता उन पर यह खतरा तीन गुणा अधिक हो जाता है और यदि बच्चे के जीवन में माता और पिता दोनों हैं तो दोनों के होने से बच्चों की प्रॉब्लम सॉल्विंग स्किल दूसरों से कहीं ज्यादा होती है।

पिता का होना बच्चों को जीवन में रिस्क लेने और स्वतंत्र सोच के लिए सीख प्रदान करता है। यही सीख उसके जीवन भर काम आती है। अनेकों स्टडीज़ में पाया गया है कि पिता का साथ जिन बच्चों को मिलता है, उन बच्चों में खेलने की क्षमता बढ़ती है, बच्चों को छुट्टियां का मजा अधिक आता है और ऐसे बच्चे जिंदगी में बहुत अच्छा तालमेल बना पाते हैं।

अक्सर देखा गया है कि अधिकतर बच्चों को पिता के द्वारा घर में बनाया गया अनुशासन का माहौल पसंद नहीं आता है और बच्चे माता-पिता को विशेषकर पिता को अपना दुश्मन मानने लगते हैं परंतु हकीकत इससे कतई भिन्न होती है।

सच मानों यदि बच्चे का पूरा विकास करने और जीवन में आगे बढ़ने का कोई मुख्य स्रोत या मुख्य शिक्षक है, तो वह है उसका पिता। पिता होने का मतलब केवल जन्म देना ही नहीं होता है बल्कि पिता होने का अर्थ होता है कि जन्म देने के साथ-साथ पितृत्व के कर्तव्य को भी निभाना अर्थात् अपने बेटे या बेटी को समय देना, उसके साथ खेलना, उसके साथ मनोरंजन करना, उसके साथ व्यापारिक बातें सांझा करना और समाज में जीने की कलाएं सिखलाना होता है तो ही वह एक आदर्श पिता कहलाता है और ऐसे पिता के बच्चे विशेष दर्जे के बच्चे बनते हैं, जो सफल होने के साथ-साथ अधिकतर खुश भी रह पाते हैं और व दूसरों के लिए भी प्रेरक बनते हैं और दूसरे बच्चों से अधिक प्यार भी पाते हैं।

इसीलिए तो कहा जाता है कि यदि कोई किसी का सच्चा और पक्का दोस्त होता है तो वह केवल और केवल पिता ही होता है क्योंकि बार-बार आवश्यकता पड़ने पर न केवल वह बच्चे को अच्छी सलाह देता है बल्कि आशीर्वाद स्वरुप उसे आगे बढ़ाने की प्रेरणा भी देता है और इसे ही खुश-किस्मती कहा जाता है।

इन्हीं तार्किक तथ्यों के आधार पर अक्सर कहा जाता है कि एक पिता सौ शिक्षकों के बराबर होता है। बेम़तलब सी इस दुनिया में वो ही हमारी शाऩ है, किसी शख्स़ के वजूद की ‘पिता’ ही पहली पहचान है ।
हर किसी पर पिता का वृहद-हस्त बना रहे। सब अपने पिता के साथ खेलते हुए और मौज-मस्ती करते हुए जीवन में आगे बढ़ें, यही आज पितृ दिवस पर मेरी ओर से सब के लिए शुभकामनाएं हैं।

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