गुरुकुल से गूगल तक: शिक्षा की बदलती तस्वीर

आचार्य रमेश सचदेवा, मोटिवेशनल स्पीकर एवं पेरेंटिंग कोच
शिक्षा का तंत्र, जो कभी गुरुकुल की साधारण व्यवस्था से संचालित होता था, आज गूगल की आधुनिकता तक पहुंच चुका है। शिक्षा के इस सफर में विद्यार्थी, शिक्षक, अभिभावक, कोचिंग संस्थान और अब ऑनलाइन शिक्षा ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

**शिक्षा का बदलता ढांचा**

अतीत में, शिक्षा तीन स्तंभों - अध्यापक, अभिभावक और विद्यार्थी - पर आधारित थी। आज इसमें कोचिंग सेंटर और ऑनलाइन शिक्षा भी शामिल हो गए हैं। यह परिवर्तन शिक्षा को साक्षर बनाने में असफल रहा है, लेकिन व्यापारिक दृष्टिकोण से इसे व्यापक रूप से सफल बना दिया है।

**स्कूलों और कोचिंग सेंटरों की भूमिका**

आज स्कूलों का कार्य केवल बच्चों को छह घंटे तक संभालना और होमवर्क देना रह गया है। कोचिंग सेंटरों का उद्देश्य केवल अंक दिलाना बन गया है। ऑनलाइन शिक्षा बच्चों को सपने दिखाने और उनसे पैसे लेने तक सीमित हो गई है। भविष्य में, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस भी शिक्षा के इस क्षेत्र में प्रमुख भूमिका निभाने लगेगा, जो मानव समाज पर गहरा प्रभाव डालेगा।

**शिक्षा की गुणवत्ता और सामाजिक प्रभाव**

शिक्षा का मूल उद्देश्य अब गौण हो गया है और इसका दुष्प्रभाव परिवार और समाज पर पड़ रहा है। परिवारों और समाज को संजोने के लिए अब लाइफ स्किल एजुकेशन का सहारा लिया जा रहा है। माता-पिता भी अब पेरेंटिंग के लिए कॉर्पोरेट जगत पर निर्भर हो रहे हैं।

**विद्यार्थी का दृष्टिकोण**

विद्यार्थी अब केवल ग्राहक बन गए हैं, जो गुरुकुल परंपरा में "मां भिक्षां देहि" की जगह गूगल से अपने सवालों के जवाब मांगते हैं। माता-पिता के पैसे केवल दिखावटी अंकों के लिए खर्च हो रहे हैं और विद्यार्थी विदेशों में भी शिक्षा का संरक्षण ढूंढ रहे हैं।

**शिक्षा की गिरावट के कारण**

शिक्षा की इस बदहाली के लिए सरकार, सरकारी तंत्र, अभिभावक, शिक्षक और स्कूल प्रबंधक सभी जिम्मेदार हैं। सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग, विद्यालयों का औपचारिक निरीक्षण, प्रॉक्सी एड्मिशन और कोचिंग का बढ़ता प्रचलन शिक्षा की गुणवत्ता को प्रभावित कर रहा है।

*सुधार की दिशा**

शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के लिए आवश्यक है कि सरकारी और निजी विद्यालयों में समान रूप से गुणवत्तापूर्ण शिक्षा दी जाए। सरकारी स्कूलों में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के बच्चों की शिक्षा पर ध्यान दिया जाए। शिक्षा को ग्राहक दृष्टिकोण से हटाकर गुण ग्रहण करने की दृष्टि से देखा जाए ताकि विद्यार्थी राष्ट्र के निर्माण में भागीदार बन सकें।




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