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दीपावली मनाने के पीछे भगवान राम के लंका जीतकर अयोध्‍या लौटने पर नगरवासियों द्वारा उनकी जीत की खुशी के साथ और भी कई मान्‍यताएं हैं। आइए जानते हैं इन सभी के बारे में। आचार्य रमेश सचदेवा

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दीपावली मनाने के पीछे भगवान राम के लंका जीतकर अयोध्‍या लौटने पर नगरवासियों द्वारा उनकी जीत की खुशी के साथ और भी कई मान्‍यताएं हैं। आइए जानते हैं इन सभी के बारे में। आचार्य रमेश सचदेवा

दीपावली क्यों मनाई जाती है, इस बारे में कई कहानियां प्रचलित हैं। सबसे प्रसिद्ध मान्यता है कि भगवान राम के वनवास से लौटने पर अयोध्या में उनका भव्य स्वागत किया गया और खुशियों के दीप जलाए गए। तभी से यह त्योहार मनाया जाता है। लेकिन इसके अलावे भी कई कहानियां हैं, जिनके बारे में कम लोग जानते हैं। आज मै आपको दीपावली मनाने के पीछे की कहानियां बताऊँगा ताकि आप इस दिन की महता को और अधिक सरलता से व गहनता से जान सकें।

श्रीराम के वनवास से लौटने की खुशी

यह वह कहानी है जो लगभग सभी भारतीय को पता है। कहा जाता है कि मंथरा की बातों में आकर कैकई ने दशरथ से राम को वनवास भेजने का वचन मांग लिया। इसके बाद श्रीराम को वनवास जाना पड़ा। 14 वर्षों का वनवास बिताकर जब भगवान राम अयोध्या लौटे तो नगरवासियों ने उनका भव्य स्वागत किया। तभी से दीपावली मनाई जाती है।

पांडवों का अपने राज्य लौटना

महाभारत काल में कौरवों ने, शकुनी मामा की मदद से शतरंज के खेल में पांडवों को हराकर छलपूर्वक उनका सबकुछ ले लिया और उन्हें राज्य छोड़कर 13 वर्ष के लिए वनवास जाना पड़ा। कार्तिक अमावस्या को 5 पांडव (युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव) 13 वर्ष का वनवास पूरा कर अपने राज्य लौटे। उनके लौटने की खुशी में राज्य के लोगों नें दीप जलाए। माना जाता है कि तभी से कार्तिक अमावस्या को दीपावली मनाई जाती है।

राजा विक्रमादित्य का राज्याभिषेक

राजा विक्रमादित्य प्राचीन भारत के महान सम्राट थे। वह आदर्श राजा थे। उन्हें उनकी उदारता, साहस के लिए जाना है। कहा जाता है कि कार्तिक अमावस्या को ही उनका राज्याभिषेक हुआ था। ऐसे धर्मनिष्ठ राजा की याद में तभी से दीपावली का त्योहार मनाया जाता है।

मां लक्ष्मी का अवतार

दीपावली का त्यौहार हिंदी कैलंडर के अनुसार कार्तिक महीने की अमावस्या को मनाया जाता है। कहा जाता है कि इसी दिन समुद्र मंथन के दौरान मां लक्ष्मी जी ने अवतार लिया था। मां लक्ष्मी को धन और समृद्धि की देवी माना जाता है। इसलिए हर घर में दीप जलने के साथ-साथ हम माता लक्ष्मी जी की पूजा भी करते हैं।

छठवें सिख गुरु की आजादी

इस त्यौहार को सिख समुदाय के लोग अपने छठवें गुरु श्री हरगोविंदजी की याद में मनाते हैं। गुरु श्री हरगोविंदजी मुगल सम्राट जहांगीर की कैद में ग्वालियर जेल में थे। जहां से मुक्त होने पर खुशियां मनाई गईं। तभी से इस दिन त्यौहार मनाया जाता है।

नरकासुर वध

दीपावली का त्यौहार मनाने के पीछे एक और सबसे बड़ी कहानी है। कहा जाता है कि इसी दिन प्रभु श्रीकृष्ण ने नरकासुर राक्षस का वध किया था। नरकासुर उस समय प्रागज्योतिषपुर का राजा था। वह इतना क्रूर था कि उसने देवमाता अदिति की बालियां छीन ली। देवमाता अदिति श्रीकृष्ण की पत्नी सत्यभामा की संबंधी थीं। श्रीकृष्ण की मदद से सत्यभामा ने नरकासुर का वध किया था। यह भी दीपावली मनाने का एक प्रमुख कारण बताया जाता है।

जैन धर्म में दिवाली

जैन धर्म में भी दिवाली का विशेष महत्त्व है। यह दिन भगवान महावीर के निर्वाण का दिन माना जाता है। जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर ने कार्तिक अमावस्या के दिन पावापुरी में निर्वाण प्राप्त किया था। उनके अनुयायियों ने उनके निर्वाण की खुशी में दीप जलाए और तभी से जैन समुदाय दिवाली को महावीर निर्वाणोत्सव के रूप में मनाता है।

राजा बलि और वामन अवतार

दिवाली की एक अन्य पौराणिक कथा राजा बलि और भगवान विष्णु के वामन अवतार से जुड़ी है। राजा बलि एक पराक्रमी और धर्मनिष्ठ असुर राजा थे, जिनकी शक्ति और साम्राज्य ने देवताओं को चिंतित कर दिया था। देवताओं ने भगवान विष्णु से सहायता मांगी। भगवान विष्णु ने वामन अवतार धारण किया और राजा बलि के पास भिक्षा मांगने पहुंचे। उन्होंने बलि से तीन पग भूमि दान में मांगी। राजा बलि ने यह भिक्षा सहर्ष स्वीकार की।

वामन ने पहले पग में पूरी पृथ्वी नाप ली, दूसरे पग में स्वर्ग लोक को नाप लिया, और जब तीसरे पग की बारी आई, तब बलि ने अपनी भक्ति और वचन को निभाते हुए अपना सिर वामन के सामने रख दिया। वामन ने बलि को पाताल लोक का राजा बना दिया और उसके त्याग की सराहना की। इस कथा से राजा बलि की भक्ति और वचनबद्धता की महिमा प्रकट होती है। दक्षिण भारत में इस दिन को बलिप्रतिपदा या ओणम के रूप में भी मनाया जाता है, जो राजा बलि के सम्मान में होता है।

इस लिए हम कह सकते हैं कि दिवाली केवल मात्र एक धार्मिक त्योहार ही नहीं, बल्कि यह सांस्कृतिक और सामाजिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। इसकी उपरोक्त पौराणिक कथाओं से यह स्पष्ट होता है कि दिवाली अच्छाई की बुराई पर, प्रकाश की अंधकार पर, और सत्य की असत्य पर विजय का प्रतीक है। हर कथा अपने आप में एक महत्वपूर्ण संदेश देती है—धर्म का पालन, सत्य की रक्षा, और अपने कर्तव्यों का निर्वहन। यही कारण है कि दिवाली को संपूर्ण भारत में बड़े उत्साह और धूमधाम से मनाया जाता है।

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