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डिजिटल युग में सुलेख की प्रासंगिकता : आचार्य रमेश सचदेवा
आज का युग डिजिटल युग है, जिसमें कंप्यूटर, स्मार्टफोन, और टैबलेट जैसे उपकरणों का प्रयोग आम बात हो गई है। इस तकनीकी विकास के चलते लेखन का कार्य अधिकतर डिजिटल माध्यमों से होने लगा है। ईमेल, सोशल मीडिया, और ऑनलाइन नोट्स ने हमें कागज और कलम के इस्तेमाल से दूर कर दिया है। ऐसे में, यह सवाल उठता है कि क्या सुलेख जैसे पारंपरिक कौशल की अब भी कोई प्रासंगिकता है? इस लेख में हम जानेंगे कि डिजिटल युग में भी सुलेख का महत्व क्यों बना हुआ है।
बच्चों के लिए सुलेख का महत्व
बच्चों के विकास में सुलेख का विशेष स्थान है। जब बच्चे हाथ से लिखते हैं, तो उनका मस्तिष्क और हाथों के बीच एक तालमेल बनता है, जो उनकी एकाग्रता और स्मरणशक्ति को मजबूत करता है। सुलेख का अभ्यास बच्चों को धैर्य, अनुशासन, और नियमितता सिखाता है। इसके अलावा, अच्छे सुलेख से बच्चों में सौंदर्यबोध और सृजनात्मकता का विकास होता है।
बच्चों की शिक्षा में सुलेख एक बुनियादी कौशल है। हाथ से लिखने से वे अपनी पढ़ाई को बेहतर तरीके से समझ पाते हैं और याद रख पाते हैं। रिसर्च से यह साबित हुआ है कि जो बच्चे हाथ से लिखते हैं, वे डिजिटल माध्यमों से टाइप करने वाले बच्चों की तुलना में विषय को अधिक गहराई से समझते हैं और लंबे समय तक याद रखते हैं। इस तरह सुलेख बच्चों के मानसिक और शारीरिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
अध्यापकों के लिए सुलेख का महत्व
अक्सर हम सब सुलेख का महत्व विद्यार्थियों के लिए ही जरूरी व उपयोगी मानते हैं। अध्यापकों के लिए भी इसका उतना ही महत्व है जितना कि विद्यार्थियों के लिए। अध्यापकों का मुख्य उद्देश्य बच्चों को समग्र शिक्षा देना है, जिसमें सुलेख का अभ्यास एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। अध्यापक बच्चों की भाषा की नींव को मजबूत बनाने के लिए सुलेख का प्रयोग करते हैं। जब बच्चे साफ और सुंदर अक्षरों में लिखना सीखते हैं, तो उनके शब्दों की समझ और वर्तनी में भी सुधार होता है। इसके अलावा, सुलेख सिखाते समय बच्चों को अनुशासन, एकाग्रता, और मेहनत की आदत पड़ती है, जो उन्हें जीवन में आगे बढ़ने के लिए तैयार करती है।
अध्यापकों के लिए सुलेख का एक अन्य महत्वपूर्ण पहलू यह है कि इससे बच्चों का हस्तलेखन भी सुंदर बनता है, जिससे उनके व्यक्तिगत पहचान का विकास होता है। हस्तलेखन के माध्यम से अध्यापक बच्चों को जान सकते हैं और उनके लेखन के माध्यम से उनकी सोच, दृष्टिकोण, और व्यक्तित्व को समझ सकते हैं।
डिजिटल युग में सुलेख क्यों है प्रासंगिक?
डिजिटल युग में सुलेख की प्रासंगिकता इसलिए भी है क्योंकि यह बच्चों को डिजिटल उपकरणों से एक संतुलन की ओर ले जाता है। अधिक समय तक स्क्रीन का उपयोग बच्चों की आंखों और मानसिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है। सुलेख के अभ्यास से बच्चे कागज पर लिखना सीखते हैं, जो उन्हें डिजिटल थकान से बचाने में मदद करता है।
सुलेख का अभ्यास मस्तिष्क और हाथ के समन्वय को भी बेहतर बनाता है, जिससे बच्चों में मोटर स्किल्स का विकास होता है। टाइपिंग में यह पहलू नहीं मिलता, क्योंकि सुलेख में हर अक्षर को ध्यानपूर्वक बनाना पड़ता है। सुलेख बच्चों की रचनात्मकता को भी प्रेरित करता है, क्योंकि वे अपनी लेखनी को सुंदर बनाने के लिए रचनात्मक तरीकों का उपयोग करते हैं।
यद्यपि डिजिटल उपकरणों से शिक्षा में सरलता आई है, लेकिन सुलेख का अभ्यास बच्चों को अधिक सृजनात्मक, धैर्यशील और आत्मविश्वासी बनाता है। इससे स्पष्ट होता है कि आधुनिक तकनीकी साधनों के बावजूद सुलेख की प्रासंगिकता बनी रहेगी, और यह शैक्षणिक विकास का एक अहम हिस्सा रहेगा।
आचार्य रमेश सचदेवा
स्वतंत्र लेखाकार
मोटिवएशनल स्पीकर एवं पेरेंटिंग कोच
डायरेक्टर, ऐजू स्टेप फाउंडेशन
Labels:
education
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Reviewed by DabwaliNews
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