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निठ्ठला चिंतन शिक्षा के गिरते स्तर का मुख्य कारक कौन ? : आचार्य रमेश सचदेवा

शिक्षा के गिरते स्तर का मुद्दा समाज, सरकार और शिक्षा प्रणाली के सभी हितधारकों के लिए गंभीर चिंता का विषय है। यह केवल किसी एक क्षेत्र तक सीमित नहीं है; इसके दुष्प्रभाव व्यापक हैं और देश के समग्र विकास को प्रभावित करते हैं।
अक्सर देखा व पाया गया है कि शिक्षा के गिरते स्तर का मुख्य कारण यह है कि ऊपर वाला नीचे वाले पर ठीकरा फोड़ रहा है और हर कोई जिम्मेदार अधिकारी अथवा नेता स्वयं को पाक साफ समझता है और ट्रकों के द्वारा स्वयं को पाक सिद्ध कर बच निकलता है ।

वर्तमान में देखा जाए तो शिक्षा के गिरते स्तर का एक बड़ा कारण यही है कि हर पक्ष (स्कूल संचालक, अभिभावक, शिक्षक, सरकार) अपनी जिम्मेदारी निभाने के बजाय दूसरों को दोषी ठहराने में व्यस्त रहता है। यह दोषारोपण की प्रवृत्ति समस्या का समाधान ढूंढ़ने के बजाय इसे और जटिल बना देती है।

यह मानसिकता क्यों खतरनाक है? आओ इसे जानने की कोशिश करें ।

मुख्य रूप से देखा जाए तो दूसरे विभागों की तरह शिक्षा के क्षेत्र में भी जवाबदेही का अभाव है। जब हर पक्ष दूसरों को दोषी ठहराता है, तो कोई अपनी जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं होता। यह एक ऐसी स्थिति पैदा करता है, जिसमें असली मुद्दों को अनदेखा कर दिया जाता है।

समस्या के मूल कारणों की अनदेखी की जा रही है। दोषारोपण के चलते शिक्षा प्रणाली की संरचनात्मक समस्याओं पर ध्यान नहीं दिया जाता, जैसे—शिक्षक प्रशिक्षण, पाठ्यक्रम की प्रासंगिकता, बच्चों की मानसिक स्थिति, और अभिभावकों की भागीदारी।

समाज का हो रहा नुकसान नहीं कर रहा है कोई ध्यान। शिक्षा स्तर में गिरावट का सबसे बड़ा नुकसान समाज को होता है। इस प्रणाली से निकले छात्र भविष्य में समाज के लिए उपयोगी योगदान देने में असमर्थ होते हैं।

ट्रकों की तरह "पाक सिद्ध" करने का प्रयास करने की प्रथा भी इसके लिए बहुत हद तक जिम्मेदार है। ट्रकों की तरह पाक साफ सिद्ध करने का मतलब है कि लोग अपने हिस्से की जिम्मेदारी को सफाई से छुपा देते हैं। कुछ उदाहरण:सरकार कहती है कि बजट सीमित है और नीति ठीक से लागू नहीं हो रही।
स्कूल संचालक कहते हैं कि अभिभावक सहयोग नहीं करते।
अभिभावक कहते हैं कि स्कूल पर्याप्त ध्यान नहीं देते।
शिक्षक कहते हैं कि बच्चों में सीखने की इच्छा नहीं है।
बच्चे कहते हैं कि यह सिस्टम बोरिंग और प्रेशर देने वाला है।

समाधान की यदि बात करें तो सर्वप्रथम हर एक को अपनी-अपनी जिम्मेदारी सांझा करनी होगी।

हर पक्ष को यह समझना होगा कि शिक्षा एक सांझा प्रयास है। जहाँ एक ओर स्कूल शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार करें और मुनाफे से परे सोचें वहीं अभिभावक बच्चों को समय दें और उनके नैतिक विकास में भाग लें। सरकार शिक्षा पर खर्च बढ़ाए और इसे प्राथमिकता दे। शिक्षक शिक्षण को केवल नौकरी न मानें, बल्कि इसे एक मिशन के रूप में लें। और शिक्षा से जुड़े सभी पक्षों (अभिभावक, शिक्षक, प्रशासन) के बीच संवाद आवश्यक है ताकि समस्या की जड़ तक पहुंचा जा सके।

हम सब जानते ही हैं कि शिक्षा केवल स्कूलों तक सीमित ही नहीं है। इसके विकास के लिए समाज को भी सकारात्मक वातावरण बनाना होगा। स्थानीय समुदाय शिक्षा को समर्थन दें, चाहे वह सुविधाओं की बात हो या फिर नैतिक मार्गदर्शन की। शिक्षा प्रणाली के हर घटक को यह देखना होगा कि उनके काम का असर छात्रों पर क्या पड़ रहा है। किसी भी असफलता की जिम्मेदारी स्वीकार करने और उसे सुधारने की इच्छाशक्ति पैदा करनी होगी।

यह भी सत्य है कि दोषारोपण से किसी भी समस्या का कोई समाधान नहीं निकलता। शिक्षा का स्तर तभी सुधरेगा, जब हर पक्ष अपनी जिम्मेदारी मानेगा और समाधान के लिए सामूहिक प्रयास करेगा। "पाक साफ" साबित होने से बेहतर है कि हर पक्ष ईमानदारी से अपनी कमियों को स्वीकार करे और उन्हें दूर करने का प्रयास करे।

स्वतंत्र लेखक

आचार्य रमेश सचदेवा

निदेशक, ऐजू स्टेप फाउंडेशन

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