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बदलते समय में बच्चों की परवरिश के असंतुलन की ओर ध्यान देने की आवश्यकता

हमारे समय में शिक्षक का स्थान पूजनीय था। वे केवल पढ़ाई ही नहीं, बल्कि जीवन के मूल्यों को सिखाने वाले मार्गदर्शक थे। उनकी वैल्यू इसलिए नहीं थी कि वे गुस्सा करते थे, डांटते थे, या कभी-कभी अनुशासन के लिए सजा देते थे। उनकी अहमियत इसलिए थी कि वे बच्चों की भलाई के लिए कठोर फैसले लेते थे। उस दौर में माता-पिता भी शिक्षकों का पूरा समर्थन करते थे। अगर कोई बच्चा उनकी बात नहीं सुनता, तो माता-पिता खुद उसे स्कूल ले जाकर कहते, “मास्टर जी, इसका थोड़ा ख्याल रखना।”
लेकिन आज यह तस्वीर पूरी तरह बदल गई है। अब अगर शिक्षक किसी बच्चे को अनुशासन में लाने की कोशिश करते हैं, तो माता-पिता तुरंत शिकायत लेकर स्कूल पहुंच जाते हैं। कई बार तो वे शिक्षकों को बच्चों के सामने ही डांटते, अपमानित करते, और यहां तक कि मारपीट पर भी उतर आते हैं। इस तरह की घटनाओं ने न केवल शिक्षक का सम्मान घटाया है, बल्कि बच्चों को यह संदेश भी दिया है कि कोई उनकी गलतियों को लेकर उनसे सवाल नहीं कर सकता।
इस बदलते रवैये ने बच्चों को इस हद तक "पैम्पर" कर दिया है कि वे छोटी-छोटी कठिनाइयों को भी सहन नहीं कर पाते। माता-पिता अपने बच्चों को हर चुनौती से बचाने के चक्कर में उन्हें जीवन के जरूरी सबक सिखाने में असफल हो रहे हैं। बच्चों को ऐसी परवरिश मिल रही है जिसमें जीवन की कठिनाइयों का कोई स्थान नहीं है। परिणामस्वरूप, बच्चे किसी भी प्रकार की असफलता या मुश्किल स्थिति का सामना करने में अक्षम हो गए हैं।

आज स्थिति यह है कि बच्चों को अगर कुछ मिनटों के लिए बिजली चली जाने का सामना करना पड़ जाए या पंखा बंद हो जाए, तो वे इसे "सबसे बड़ी परेशानी" मान लेते हैं। यह वही बच्चे हैं जो जीवन की छोटी-छोटी समस्याओं से अनभिज्ञ हैं, क्योंकि उन्हें कभी इनसे निपटने का मौका ही नहीं दिया गया। जीवन की हर कठिनाई से बचने की यह आदत उन्हें मानसिक रूप से कमजोर बना रही है।

इसके गंभीर परिणाम अब हमारे सामने आ रहे हैं। बच्चे तेजी से तनाव, अकेलेपन और आत्महत्या की प्रवृत्ति का शिकार हो रहे हैं। जब वे जीवन में असली कठिनाइयों का सामना करते हैं, तो उन्हें उनसे बाहर निकलने का रास्ता समझ नहीं आता। हर छोटी समस्या उनके लिए बड़ी चुनौती बन जाती है।

यह समस्या केवल बच्चों की नहीं है। यह माता-पिता और समाज का सामूहिक दायित्व है। बच्चों को हर समय "पैम्पर" करने और उनके लिए हर समस्या का समाधान तैयार रखने के बजाय, उन्हें जीवन के संघर्षों का सामना करना सिखाना चाहिए। बच्चों को यह समझाना जरूरी है कि असफलता और चुनौतियां जीवन का हिस्सा हैं। जीवन की मुश्किलें हमें मजबूत बनाती हैं और उनके समाधान ढूंढ़ने की ताकत हमें भीतर से आती है।

आज हमें यह समझने की जरूरत है कि बच्चों की परवरिश में अनुशासन और सहनशीलता का सही संतुलन आवश्यक है। शिक्षकों को उनका सम्मान लौटाना होगा और माता-पिता को यह समझना होगा कि शिक्षक हमेशा बच्चों की भलाई के लिए काम करते हैं।

अगर हम बच्चों को हर समस्या से बचाते रहेंगे, तो हम उन्हें वह सबसे जरूरी सबक नहीं सिखा पाएंगे जो जीवन में सबसे अहम है—संघर्ष करना और उससे उभरना। हमें यह बदलाव लाना होगा, क्योंकि यही एक रास्ता है जिससे हम बच्चों को मजबूत बना सकते हैं और एक बेहतर समाज का निर्माण कर सकते हैं।

आचार्य रमेश सचदेवा
निदेशक ऐजू स्टेप फाउंडेशन, मंडी डबवाली (हरियाणा)

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