सावित्रीबाई फुले भारतीय इतिहास के पन्नों में एक चमकता हुआ नाम है:- लक्ष्मण दास नाहर

एनएसएस शिविर दौरान सावित्रीबाई फूले जयंती समारोह का आयोजन संपन्न
डबवाली -स्वतंत्रता सेनानी वैद्य रामदयाल राजकीय माडल संस्कृति वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय मंडी डबवाली में चल रहे सात दिवसीय एनएसएस शिविर के दौरान आज भारतीय इतिहास की प्रथम महिला शिक्षिका सावित्रीबाई फुले की जयंती मनाई गई। खंड शिक्षा अधिकारी लक्ष्मण दास नाहर जी व आरोही मॉडल स्कूल कालुआना की प्रधानाचार्या गीता नागपाल जी ने ज्योति प्रज्ज्वलित कर कार्यक्रम की शुरुआत की । खंड शिक्षा अधिकारी ने उपस्थित विद्यार्थियों व अध्यापकों को संबोधित करते हुए कहा कि सावित्रीबाई फुले एक असाधारण महिला थीं जिन्होंने अपना जीवन भारत में महिलाओं और दबे-कुचले समुदायों के अधिकारों के लिए संघर्ष करते हुए बिताया। सावित्रीबाई फुले का जन्म 3 जनवरी, 1831 को महाराष्ट्र के नायगांव गांव में हुआ था। उन्होंने 19वीं सदी में शिक्षा, लैंगिक समानता और सामाजिक सुधार को बढ़ावा देने के उनके अथक प्रयासों पर भी प्रकाश डाला। कार्यक्रम का संचालन करते हुए कृष्ण कायत अंग्रेजी प्रवक्ता ने सभा में बताया कि साल 1848 में सावित्रीबाई और उनके पति ज्योतिराव फुले ने पुणे, भारत में लड़कियों के लिए पहला स्कूल शुरू किया था। यह एक क्रांतिकारी कदम था, क्योंकि उस समय लड़कियों की शिक्षा को अक्सर नजरअंदाज किया जाता था और उन्हें शिक्षा ग्रहण करने की मनाही थी। ऐसा अंधविश्वास प्रचलित था कि शिक्षा ग्रहण करने वाली लड़कियां विधवा हो जाएंगी व अधर्म का प्रचार होगा।
इन चुनौतियों के बावजूद, उनका समर्पण अटूट रहा। उनका दृढ़ विश्वास था कि शिक्षा सशक्तिकरण की कुंजी है और हर लड़की को सीखने का अवसर मिलना चाहिए। लड़कियों की शिक्षा में अपने काम के लिए सावित्रीबाई को बहुत विरोध और दुश्मनी का सामना करना पड़ा। उन्हें और उनके विद्यार्थियों को अक्सर अपमान और यहां तक कि शारीरिक हमलों का सामना करना पड़ता था। लड़कियों को पढ़ाने इत्यादि समाजसेवा के कार्यों में लिप्त रहने के ज्योतिबा फुले के पिता ने धार्मिक पुरोहितों की नाराज़गी के चलते फुले दंपति को घर से निकाल दिया था। तब उस्मान शेख व उनके बहन फातिमा शेख ने उन्हें अपने घर में पनाह दी व अपने घर में ही लड़कियों को पढ़ाने के लिए स्थान उपलब्ध करवाया। बाद में फातिमा शेख ने सावित्रीबाई फुले के साथ मिलकर लड़कियों की शिक्षा के लिए दिन-रात मेहनत की । सावित्रीबाई फुले न केवल महिलाओं की शिक्षा की हिमायती थीं, बल्कि दलित और हाशिए पर रहने वाले समुदायों की भी प्रबल समर्थक थीं। सामाजिक सुधार के प्रति उनके समर्पण के कारण गर्भवती बलात्कार पीड़ितों के लिए एक आश्रय गृह की स्थापना हुई और एक अनाथालय की नींव रखी गई। उन्होंने निचली जातियों और अछूतोंके सामने आने वाले अन्याय को पहचाना और उनके उत्थान के लिए अथक प्रयास किए। प्रधानाचार्या गीता नागपाल जी ने कहा कि आज के समय में हमें सावित्रीबाई फुले के विचारों की नितांत आवश्यकता है व समाज में अभी भी व्याप्त बहुत सी कुरीतियों को उखाड़ फेंकने की जरूरत है। एनएसएस प्रभारी निर्मल कुमार व नरेन्द्र कुमार ने भी विद्यार्थियों को समाजसेवा की महत्ता बताते हुए कहा कि महापुरुषों के जीवन व उनके विचारों से हमें नित नई प्रेरणा व ऊर्जा मिलती है जिससे एक मनुष्य के रूप में हम समाज में अपनी भूमिका बेहतर तरीके से निभा सकते हैं। कार्यक्रम में विद्यार्थियों को सावित्रीबाई फुले के जीवन पर एक डाक्यूमेंट्री फिल्म भी दिखाई गई और महिला शिक्षिकाओं को "हां, मैं सावित्रीबाई!" शीर्षक पुस्तकें देकर सम्मानित किया गया। इस अवसर पर प्रवक्ता गुरप्रीत सिंह, गणित प्रवक्ता निशा जसूजा, सुभाष पूनिया, कृष्ण कायत, भीम आर्य, इंद्रजीत सिंह, प्रवीण कुमार व श्वेता गर्ग, सिमरन , बुलबुल छात्राध्यापिकाओं ने भी जयंती कार्यक्रम में सहयोगी भूमिका निभाई।

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